For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तस्वीर (लघुकथा)

छोटे के मन में यह बात घर कर गयी थी कि अम्माँ और बाबूजी उसका नहीं बड़े का अधिक ख़याल रखते हैं.
दोनों भाइयों की शादी होने के बाद यह भावना और बलवती हो गयी क्यूँ कि छोटे की बीवी को अपने तरीक़े से जीवन जीने की चाह थी. ऐसे में घर का बँटवारा अवश्यम्भावी था. बाबूजी ने छोटे को समझाने की बहुत कोशिश की , बड़े का हक़ मारकर भी वो दोनों को एक देखने पर राज़ी थे. बड़ा भी कुछ कुर्बानियों के लिए तैयार था अपने भाई के लिये लेकिन छोटे की ज़िद के आगे सब बेकार रहा.
आख़िरकार घर दो हिस्सों में बँट गया और एक हिस्से में दीवार खडी कर दी गयी. सदमे में बाबूजी ने खाट पकड़  ली और दिल में मलाल लिए चल बसे.
दीवार उठने के बाद भी दोनों घरों में आए दिन छोटी मोटी तू-तू, मैं मैं और लड़ाइयाँ होती रहती थी जिसे देख कर बड़े के बच्चों के मन में छोटे के बच्चों प्रति एक अजीब सा बैर भाव पनपने लगा.
वक़्त अपनी रफ़्तार से गुज़रता रहा..... 
आज अम्माँ जी ने  जब दीपावली की साफ-सफाई के  लिए जब अलमारी का सामन ख़ाली किया तो बड़े के बेटे ने तांक झाँक करते हुए उस में छोटे की एक तस्वीर लगी हुई देखी और देखते ही उबल पडा...
"क्या दादी-   इतना होने पर भी आप अब तक इन्ही की तरफ़ हो.. हमने  जो गँवाया वो आपके लिए कुछ भी नहीं? इन्ही के हठ के चलते दादाजी  गुज़र गए, आप का सुहाग उजड़ गया, घर बँट गया लेकिन आप को हम से ज़ियादा स्नेह शायद इनसे है... वहीँ जा कर क्यूँ नहीं  रहतीं आप?"
वाक्य पूरा होने से पहले एक ज़ोरदार तमाचा  उस के गाल पर पड़ा..
सामने माँ खड़ी थी जिसकी आँखों में ज्वाला थी- ख़बरदार जो दादी से इस लहजे में बात की तो... यह तस्वीर मैंने यहाँ लगाईं है ... और वो भी इसलिये कि जब कभी छोटे और  उसका परिवार यहाँ आयें   तो देख सकें कि हम आज भी उनके वापस आने के इंतज़ार में हैं.. हमारे दिल में आज  भी उनके लिए जगह है... हम आज भी एक साथ रहना चाहते हैं"
बेटा शर्मिंदा होकर बाहर जाते हुए बस इतना  ही सुन पाया कि - "इतनी नफ़रत मत करो कि जब ये दीवार गिरे तो छोटे का ठीक से स्वागत भी न कर पाओ"
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 805

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 4, 2018 at 7:21pm

धन्यववाद आ. नीलम जी 

Comment by Neelam Upadhyaya on May 8, 2018 at 3:47pm

आदरणीय नीलेश जी, नमस्कार । बहुत ही सुंदर लघुकथा की प्रस्तुति । हार्दिक बधाई ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 7, 2018 at 8:51pm

शुक्रिया आ. सुरेन्द्रनाथ जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 7, 2018 at 8:51pm

शुक्रिया आ. तेजवीर सिंह जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 7, 2018 at 8:51pm

शुक्रिया आ. समर सर 

Comment by नाथ सोनांचली on May 7, 2018 at 5:46pm

आद0 नीलेश भाई जी सादर अभिवादन। बहुत बेहतरीन कथा लिखी आपने। जीवन संस्कार और मूल्यों को इस कहानी में आपने अनुभव की चाशनी में डुबोकर हम पाठकों को बढिया कहानी से रूबरू कराया। वाकई में ऐसे हालत न केवल घर में अपितु समाज में भी देखने को मिल रहे हैं। आपकी पंचलाइन बहुत सटीक है। बहुत बहुत बधाई आपको।

Comment by TEJ VEER SINGH on May 6, 2018 at 11:10am

हार्दिक बधाई आदरणीय नीलेश जी।बेहतरीन लघुकथा।

Comment by Samar kabeer on May 6, 2018 at 10:41am

जनाब निलेश जी आदाब,बहुत अच्छी लगी आपकी लघुकथा,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2018 at 7:40am

धन्यवाद आ शेख शहज़ाद उस्मानी साहब।

आपको लघुकथा पसंद आई यह जानकर प्रसन्नता हुई। यह कहानी संयुक्त परिवार बचाए रखने की प्रेरणा देने के लिए नहीं कही है। कहानी में व्यापक मुद्दे पर महीन इशारा है।

पिछले तीन दिन के अख़बार पढ़ेंगे और प्राइम टाइम की TV डिबेट सुनेंगे तो तस्वीर, अलमारी, बापू, दीवार,छोटे आदि प्रत्यक्ष अनुभव कर लेंगे। तब शीर्षक भी उपयुक्त लगेगा।

इतनी हिंट और लीजिये की अलमारी AMU है।

सादर

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 6, 2018 at 7:20am

यही सकारात्मक रुख़ और आशावादिता ही हमारे हिन्दुस्तानी संयुक्त परिवार के चरित्र रहे हैं।‌‌‌‌ पश्चिमी शैली की आंधियां अभी भी कुछ परिवारों तक नहीं जा सकीं हैं! ऐसी ही एक कहानी किसी कक्षा की अंग़्रेज़ी की क़िताब में पढ़ी थी, जिसमें तीन भाइयों में छोटे वाले की वज़ह से बंटवारे में सुधीजन मदद करते हैं, लेकिन सबसे बड़ा वाला ज़मीन/खेत का परित्याग कर संयुक्त परिवार को बरकरार रखने में मदद करता है।  बहुत बढ़िया लघुकथा कहते हैं आप भी! तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब नीलेश शेव्गांवकर साहिब। शीर्षक भी बढ़िया है, लेकिन और शीर्षक भी हो सकते हैं फिट।‌

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
42 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
45 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
50 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
53 minutes ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
3 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service