For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल नूर की -तू जहाँ कह रहा है वहीं देखना

तू जहाँ कह रहा है वहीं देखना
शर्त ये है तो फिर.. जा नहीं देखना.
.
जीतना हो अगर जंग तो सीखिये
हो निशाना कहीं औ कहीं देखना.
.
खो दिया गर मुझे तो झटक लेना दिल
धडकनों में मिलूँगा..... वहीँ देखना.
.
देखता ही रहा... इश्क़ भी ढीठ है
हुस्न कहता रहा अब नहीं देखना.
.
कितना आसाँ है कहना किया कुछ नहीं
मुश्किलें हमने क्या क्या सहीं देखना.
.
एक पल जा मिली “नूर” से जब नज़र
मुझ को आया नहीं फिर कहीं देखना.
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 719

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 4, 2018 at 7:20pm

शुक्रिया आ. भाई लक्ष्मण जी 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 8, 2018 at 7:48pm

आ. भाई नीलेश जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 8, 2018 at 2:12pm

शुक्रिया आ. सुरेन्द्रनाथ जी 
आभार 

Comment by नाथ सोनांचली on May 8, 2018 at 10:22am

आद0 नीलेश भाई जी सादर अभिवादन। बढिया ग़ज़ल कही आपने। बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 7, 2018 at 8:50pm

शुक्रिया आ. रवि जी,
आभार 

Comment by Ravi Shukla on May 7, 2018 at 6:00pm

आदरणीय नीलेश जी अच्छी ग़ज़ल के लिए शेर दर शेर मुबारकबाद पेश करता हूं समर साहब का और आपका दोनों का नजरिया अपनी अपनी जगह सही है

Comment by Samar kabeer on May 7, 2018 at 12:27pm

अच्छा तर्क है ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 7, 2018 at 12:09pm

धन्यवाद आ. समर सर,
आपके मार्गदर्शन से ग़ज़ल जैसे तैसे पूरी हो पाई ..
अब परिस्थितियाँ बदल गयी हैं ... युद्ध मायावी लोग लड़ रहे हैं... पल में रात को दिन बता देते हैं... जाने   कहाँ कहाँ के कंकाल खोद लाते हैं और कंकालों से भी भाषण   करवा लेते हैं... इसलिये  माया से लड़ने के लिए माया का मश्विरा दे दिया मैंने भी ... आज नहीं तो कल मैं भी बुजुर्गों की गिनती   में आऊँगा तो ... -:)))) 
सादर 

Comment by Samar kabeer on May 7, 2018 at 12:01pm

जनाब निलेश 'नूर' साहिब आदाब, बहुत मुख़्तसर क़वाफ़ी में अच्छी ग़ज़ल कही आपने , दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

'जीतना हो अगर जंग तो सीखिये

हो निशाना कहीं औ कहीं देखना'

जंग जीतने का नया नुस्ख़ा बता रहे हैं आप,बुज़ुर्गों ने तो ये बताया था :-

'जीतना हो अगर जंग तो सीखिये

हो निशाना जहाँ पर वहीं देखना'

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 7, 2018 at 11:22am

शुक्रिया आ. मोहम्मद आरिफ़ साहब 
.
बस कल शाम को 'शाम वाला' स्प्राइट पीते पीते यह ग़ज़ल हो गयी है..
सुबह देखता हूँ तो लगता है की अभी सुधार की बहुत गुंजाइश है ... इस में भी और मुझ में भी ;))) 
आभार 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। दोहों पर मनोहारी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी , सहमत - मौन मधुर झंकार  "
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"इस प्रस्तुति पर  हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील  भाईजी|"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"विषय पर सार्थक दोहावली, हार्दिक बधाई, आदरणीय लक्ष्मण भाईजी|"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"आ. भाईसुशील जी, अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।  इसकी मौन झंकार -इस खंड में…"
Saturday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"दोहा पंचक. . . .  जीवन  एक संघर्ष जब तक तन में श्वास है, करे जिंदगी जंग ।कदम - कदम…"
Saturday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
Saturday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"उत्तम प्रस्तुति आदरणीय लक्ष्मण धामी जी ।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service