मेरी आँखों में तुम को ख़ाब मिला?
या निचोडे से सिर्फ आब मिला.
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सोचने दो मुझे समझने दो
जब मिला बस यही जवाब मिला.
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दिल ने महसूस तो किया उस को
पर न आँखों को ये सवाब मिला.
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मैकदे में था जश्न-ए-बर्बादी
जिस में हर रिन्द कामयाब मिला.
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इतना अच्छा जो मिल गया हूँ मैं
इसलिए कहते हो “ख़राब मिला.”
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“नूर” चलने से पहले इतना कर
अपने हर कर्म का…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 31, 2020 at 10:01am — 13 Comments
जो शेख़ ओ बरहमन में यारी रहेगी
जलन जलने वालों की जारी रहेगी.
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मियाँ जी क़वाफ़ी को समझे हैं नौकर
अना का नशा है ख़ुमारी रहेगी.
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गले में बड़ी कोई हड्डी फँसी है
अभी आपको बे-क़रारी रहेगी.
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हुज़ूर आप बंदर से नाचा करेंगे
अकड आपकी गर मदारी रहेगी.
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हमारे ये तेवर हमारे रहेंगे
हमारी अदा बस हमारी रहेगी.
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हुज़ूर इल्तिजा है न हम से उलझिये
वगर्ना यूँ ही दिल-फ़िगारी रहेगी.
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ग़ज़ल “नूर” तुम पर न ज़ाया करेंगे …
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 29, 2020 at 6:00pm — 15 Comments
जिन की ख़ातिर हम हुए मिस्मार; पागल हो गये
उन से मिल कर यूँ लगा बेकार पागल हो गये.
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सुन के उस इक शख्स की गुफ़्तार पागल हो गये
पागलों से लड़ने को तैयार पागल हो गये.
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छोटे लोगों को बड़ों की सुहबतें आईं न रास
ख़ुशबुएँ पाकर गुलों से ख़ार पागल हो गये.
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थी दरस की आस दिल में तो भी कम पागल न थे
और जिस पल हो गया दीदार; पागल हो गये.
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एक ही पागल था मेरे गाँव में पहले-पहल
रफ़्ता रफ़्ता हम सभी हुशियार पागल हो गये.
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इल्तिजा थी…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 15, 2020 at 3:00pm — 14 Comments
ख़ूब इतराते हैं हम अपना ख़ज़ाना देख कर
आँसुओं पर तो कभी उन का मुहाना देख कर.
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ग़ैब जब बख्शे ग़ज़ल तो बस यही कहता हूँ मैं
अपनी बेटी दी है उसने और घराना देख कर.
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साँप डस ले या मिले सीढ़ी ये उस के हाथ है,
हम को आज़ादी नहीं चलने की ख़ाना देख कर.
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इक तजल्ली यक-ब-यक दिल में मेरे भरती गयी
एक लौ का आँधियों से सर लड़ाना देख कर.
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ऐसे तो आसान हूँ वैसे मगर मुश्किल भी हूँ
मूड कब…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 3, 2020 at 12:37pm — 7 Comments
तुम्हें लगता है रस्ता जानता हूँ
मगर मैं सिर्फ चलना जानता हूँ.
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तेरे हर मूड को परखा है मैंने
तुझे तुझ से ज़ियादा जानता हूँ.
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गले मिलकर वो ख़ंजर घोंप देगा
ज़माने का इरादा जानता हूँ.
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मैं उतरा अपने ही दिल में तो पाया
अभी ख़ुद को ज़रा सा जानता हूँ.
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बहा लायी है सदियों की रवानी
मगर अपना किनारा जानता हूँ.
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बता कुछ भी कभी माँगा है तुझ से?
मैं अपना घर चलाना जानता हूँ.
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निलेश…
Added by Nilesh Shevgaonkar on September 30, 2020 at 1:46pm — 8 Comments
तर्क-ए-वफ़ा का जब कभी इल्ज़ाम आएगा
हर बार मुझ से पहले तेरा नाम आएगा.
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अच्छा हुआ जो टूट गया दिल तेरे लिए
वैसे भी तय नहीं था कि किस काम आएगा.
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अब रात घिर चुकी है इसे लौट जाने दे
यादों का क़ाफ़िला तो हर इक शाम आएगा.`
`
उर्दू की बज़्म में कभी हिन्दी चला के देख
तेरे कलाम में नया आयाम आएगा.
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उस सुब’ह धमनियों में ठहर जाएगा ख़िराम
जिस भोर मेरे नाम का पैग़ाम…
ContinueAdded by Nilesh Shevgaonkar on September 27, 2020 at 12:00pm — 12 Comments
वो कहता है मेरे दिल का कोना कोना देख लिया
तो क्या उस ने तेरी यादों वाला कमरा देख लिया?
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वैसे उस इक पल में भी हम अपनों ही की भीड़ में थे
जिस पल दिल के आईने में ख़ुद को तन्हा देख लिया.
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उस के जैसा दिल तो फिर से मिलता हम को और कहाँ
सो हमने इक राह निकाली, मिलता जुलता देख लिया.
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मैख़ाने में एक शराबी अश्क मिलाकर पीता है
यादों की आँधी ने शायद उसे अकेला देख लिया.
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महशर पर हम उठ आए उस की महफ़िल से ये कहकर
तेरी दुनिया तुझे मुबारक़!…
Added by Nilesh Shevgaonkar on September 14, 2020 at 5:30pm — 15 Comments
तू ये कर और वो कर बोलता है.
न जाने कौन अन्दर बोलता है
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मेरे दुश्मन में कितनी ख़ामियाँ हैं
मगर मुझ से वो बेहतर बोलता है.
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जुबां दिल की; मेरे दिल से गुज़रकर
मेरे दुश्मन का ख़ंजर बोलता है.
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मैं कट जाऊं मगर झुकने न देना
मेरे शानों धरा सर बोलता है.
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मैं हारा हर लड़ाई जीत कर भी
जहां सुन ले! सिकंदर बोलता है.
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बहुत भारी पडूँगा अब कि तुम पर
अकेलों से दिसम्बर बोलता है.
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नया मज़हब नई दुनिया बनाओ
ये…
Added by Nilesh Shevgaonkar on November 30, 2019 at 11:30pm — 10 Comments
उन के बंटे जो खेत तो कुनबे बिखर गए,
पंछी जो उड़ चले तो घरौंदे बिख़र गए.
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सरहद पे गोलियों ने किया रक्स रात भर,
कितने घरों के नींद में सपने बिखर गए.
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यादों की आँधियों ने रँगोली बिगाड़ दी
बरसों जमे हुए थे वो चेहरे बिखर गए.
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समझा था जिस को चोर गदागर था वो कोई
ली जब तलाशी रोटी के टुकड़े बिखर गए.
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तुम जो सँवार लेते तो मुमकिन था ये बहुत
उतना नहीं बिखरते कि जितने बिखर गए .
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मुझ में कहीं छुपे थे अँधेरों के क़ाफ़िले…
Added by Nilesh Shevgaonkar on November 16, 2019 at 8:30pm — 13 Comments
लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
जाने अब कैसे कटेंगी सर्दियाँ तेरे बिना.
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फैलता जाता है तन्हाई का सहरा ज़ह’न में
सूखती जाती हैं दिल की क्यारियाँ तेरे बिना.
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साथ तेरे जो मुसीबत जब पड़ी, आसाँ लगी
हो गयीं दुश्वार सब आसानियाँ तेरे बिना.
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तू कहीं तो है जो अक्सर याद करता है मुझे
क्यूँ सताती हैं वगर्ना हिचकियाँ तेरे बिना?
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वक़्त लेकर जा चुका आँखों से ख़ुशियों के गुहर
अब भरी हैं ख़ाक से ये सीपियाँ तेरे बिना.…
Added by Nilesh Shevgaonkar on July 2, 2019 at 7:30am — 7 Comments
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सोचिये फिर डूबने में कितनी आसानी रहे
उनकी आँखों में जो मेरे वास्ते पानी रहे.
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मैं किसी को जोड़ने में घट भी जाऊँ ग़म न हो
ज़िन्दगानी के गणित में इतनी नादानी रहे.
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क़त्ल होते वक़्त भी मैं मुस्कुराता ही रहूँ
ताकि क़ातिल को मेरे ता-उम्र हैरानी रहे.
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क़ाफ़िला यादों का गुज़रे रेगज़ार-ए-दिल से जब
आँखों में लाज़िम है सारी रात तुग़्यानी रहे.
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क्यूँ भला सोचूँ वो दुश्मन है मेरा या कोई दोस्त
मैं रहूँ…
Added by Nilesh Shevgaonkar on November 2, 2018 at 6:45pm — 29 Comments
सँभाले थे तूफ़ाँ उमड़ते हुए
मुहब्बत से अपनी बिछड़ते हुए.
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समुन्दर नमाज़ी लगे है कोई
जबीं साहिलों पे रगड़ते हुए.
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हिमालय सा मानों कोई बोझ है
लगा शर्म से मुझ को गड़ते हुए.
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“हर इक साँस ने”; उन से कहना ज़रूर
उन्हें ही पुकारा उखड़ते हुए.
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हराना ज़माने को मुश्किल न था
मगर ख़ुद से हारा मैं लड़ते हुए.
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ज़रा देर को शम्स डूबा जो “नूर”
मिले मुझ को जुगनू अकड़ते हुए.
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निलेश "नूर"
मौलिक/…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 28, 2018 at 10:30am — 22 Comments
मुझ को कहा था राह में रुकना नहीं कहीं
सदियों को नाप कर भी मैं पहुँचा नहीं कहीं.
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ज़ुल्फ़ें पलक दरख़्त सभी इक तिलिस्म हैं
इस रेग़ज़ार-ए-ज़ीस्त में साया नहीं कहीं.
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तुम क्या गए तमाम नगर अजनबी हुआ
मुद्दत हुई है घर से मैं निकला नहीं कहीं.
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अँधेर कैसा मच गया सूरज के राज में
जुगनू, चराग़ कोई सितारा नहीं कहीं.
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खेतों को आस थी कि मिटा देगा तिश्नगी
गरजा फ़क़त जो अब्र वो बरसा नहीं कहीं.
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ये और बात है कि अदू को चुना गया…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 23, 2018 at 12:00pm — 18 Comments
रफ़्ता रफ़्ता अपनी मंज़िल से जुदा होते गए,
राह भटके लोग जिनके रहनुमा होते गए.
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तज़र्बे मिलते रहे कुछ ज़िन्दगी में बारहा
कुछ तो मंज़िल बन गए कुछ रास्ता होते गए.
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चुस्कियाँ ले ले के अक्सर मय हमें पीती रही
वो नशा होती गयी हम पारसा होते गए.
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उन चिराग़ों के लिए सूरज ने माँगी है दुआ
सुब्ह तक जलते रहे जो फिर हवा होते गए.
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ज़िन्दगी की राहों पर जब धूप झुलसाने लगी
पल तुम्हारे साथ जो गुज़रे घटा होते गए.
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फिर मुहब्बत के सफ़र…
Added by Nilesh Shevgaonkar on August 8, 2018 at 1:46pm — 14 Comments
था उन को पता अब है हवाओं की ज़ुबाँ और
उस पर भी रखे अपने चिराग़ों ने गुमाँ और.
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रखता हूँ छुपा कर जिसे, होता है अयाँ और
शोले को बुझाता हूँ तो उठता है धुआँ और
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ले फिर तेरी चौखट पे रगड़ता हूँ जबीं मैं
उठकर तेरे दर से मैं भला जाऊँ कहाँ और?
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इस बात पे फिर इश्क़ को होना ही था नाकाम
दुनिया थी अलग उन की तो अपना था जहाँ और.
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आँखों की तलाशी कभी धडकन की गवाही
होगी तो अयाँ होगा कि क्या क्या है निहाँ और.
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करते हैं…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 13, 2018 at 9:12am — 13 Comments
कब है फ़ुर्सत कि तेरी राहनुमाई देखूँ?
मुझ को भेजा है जहाँ में कि सचाई देखूँ.
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ये अजब ख़ब्त है मज़हब की दुकानों में यहाँ
चाहती हैं कि मैं ग़ैरों में बुराई देखूँ.
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उन की कोशिश है कि मानूँ मैं सभी को दुश्मन
ये मेरी सोच कि दुश्मन को भी भाई देखूँ.
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इन किताबों पे भरोसा ही नहीं अब मुझ को,
मुस्कुराहट में फ़क़त उस की लिखाई देखूँ.
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दर्द ख़ुद के कभी गिनता ही नहीं पीर मेरा
मुझ पे लाज़िम है फ़क़त पीर-पराई देखूँ.
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अब कि बरसात में…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 10, 2018 at 8:43pm — 12 Comments
याद आया है गुज़रा पल कोई
लेगी अँगड़ाई फिर ग़ज़ल कोई.
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कोशिशें और कोई करता है
और हो जाता है सफल कोई.
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ज़िन्दगी एक ऐसी उलझन है
जिस का चारा नहीं न हल कोई.
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इश्क़ में हम तो हो चुके रुसवा
वो करें तो करें पहल कोई.
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हिज्र में आँसुओं का काम नहीं
ये इबादत में है ख़लल कोई.
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इक सिकंदर था और इक हिटलर
आज तू है तो होगा कल कोई.
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निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 9, 2018 at 7:54am — 11 Comments
तू जहाँ कह रहा है वहीं देखना
शर्त ये है तो फिर.. जा नहीं देखना.
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जीतना हो अगर जंग तो सीखिये
हो निशाना कहीं औ कहीं देखना.
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खो दिया गर मुझे तो झटक लेना दिल
धडकनों में मिलूँगा..... वहीँ देखना.
.
देखता ही रहा... इश्क़ भी ढीठ है
हुस्न कहता रहा अब नहीं देखना.
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कितना आसाँ है कहना किया कुछ नहीं
मुश्किलें हमने क्या क्या सहीं देखना.
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एक पल जा मिली “नूर” से जब नज़र
मुझ को आया नहीं फिर कहीं देखना.
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निलेश…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2018 at 8:30pm — 11 Comments
छोटे के मन में यह बात घर कर गयी थी कि अम्माँ और बाबूजी उसका नहीं बड़े का अधिक ख़याल रखते हैं.
दोनों भाइयों की शादी होने के बाद यह भावना और बलवती हो गयी क्यूँ कि छोटे की बीवी को अपने तरीक़े से जीवन जीने की चाह थी. ऐसे में घर का बँटवारा अवश्यम्भावी था. बाबूजी ने छोटे को समझाने की बहुत कोशिश की , बड़े का हक़ मारकर भी वो दोनों को एक देखने पर राज़ी थे. बड़ा भी कुछ कुर्बानियों के लिए तैयार था अपने भाई के लिये लेकिन छोटे की ज़िद के आगे सब बेकार रहा.
आख़िरकार घर दो हिस्सों में बँट गया और एक हिस्से…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2018 at 7:30am — 18 Comments
पड़ गयी जब से आपकी आदत,
फिर लगी कब मुझे नई आदत.
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ज़ाया कर दी गयीं कई क़समें
ज्यूँ की त्यूं ही मगर रही आदत.
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मुझ को तन्हा जो छोड़ जाती है
शाम की है बहुत बुरी आदत.
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पैरहन और कितने बदलेगी?
रूह को जिस्म की पड़ी आदत.
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चन्द साथी जो बेवफ़ा न हुए,
अश्क, ग़म, याद, बेबसी, आदत.
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ज़िन्दगी यूँ न तू लिपट मुझ से
पड़ न जाए तुझे मेरी आदत.
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आदतन याद जब तेरी आई
रात भर आँखों से बही आदत.
.
ये…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2018 at 3:19pm — 16 Comments
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