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ग़ज़ल "जिन्दगी इक अज़ब पहेली है"

2122 1212 22
ख़ुद उलझती है ख़ुद सुलझती है।
जिन्दगी इक अज़ब पहेली है।।

साथ तेरा मुझे मिला जबसे।
जिन्दगी मेरी मुस्कुराती है।।

सब्र करना व भूख से लड़ना।
मुफ़लिसी क्या नहीं सिखाती है।।

मैं बहुत चाहने लगा तुझको।
हर ग़ज़ल मेरी ये बताती है।।

बात कोई चुभे अगर दिल को।
तब ग़ज़ल ख़ुद मुझे बुलाती है।।

दुख घुटन दर्द आह मजबूरी।
ज़िन्दगी की यही कहानी है।।

मुस्कुराती हुई तेरी तस्वीर।
पास मेरे तेरी निशानी
है।।

जीतना हारना लगा रहता।
जिन्दगी ये सबक़ सिखाती है।।

दूर तू है बहुत मगर फिर भी।
ज़ेहन में याद तेरी रहती है।।

वो मुलाकात आपसे मेरी।
आज भी मुझको याद आती है।।

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by दिनेश कुमार on October 9, 2017 at 6:30am
वाह आ. सुरेंद्र भाई। ख़ूब
Comment by नाथ सोनांचली on October 8, 2017 at 7:24am
आद0 सुरेन्दर इंसान जी सादर अभिवादन, बढ़िया ग़ज़ल पर शेर दर शैर मुबारकबाद कबूल फरमायें,। मोहम्मद आरिफ भाई जी की बातों का भी संज्ञान लें।सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 7, 2017 at 9:55pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है सुरेन्द्र भैया बधाई 

Comment by Niraj Kumar on October 7, 2017 at 6:33pm

आदरणीय सुरेन्द्र जी,

आपकी ग़ज़ल की सादगी में भी एक तहदारी है. अच्छी लगी. दाद के साथ मुबारकबाद.

सादर

Comment by SALIM RAZA REWA on October 7, 2017 at 9:37am
जनाब सुरेन्द्र इंसान जी,अच्छी ग्गज़ल हुई है बधाई ।
Comment by Mohammed Arif on October 6, 2017 at 7:54pm
आदरणीय सुरेंद्र इंसान जी आदाब, बेहतरीन ग़ज़ल । अच्छे अश'आर । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
नोट:- कितना अच्छा हो अगर आप जैसे ग़ज़लगो साहित्य की अन्य विधाओं पर भी पनी रचनाधर्मिता का परिचय देने वालों को भी अपनी टिप्पणियों से पोषित करें ताकि उनका हौसला बढ़ सके ।
Comment by Afroz 'sahr' on October 6, 2017 at 4:35pm
आदरणीय सुरेंद्र जी इस ख़ूबसूरत रचना के लिए आपको ढेरों बधाई।
Comment by राज़ नवादवी on October 6, 2017 at 4:26pm

जनाब सुरेन्द्र इंसान जी, अच्छी ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए बधाई ! सादर 

Comment by Samar kabeer on October 6, 2017 at 3:32pm
जनाब सुरेन्द्र इंसान जी आदाब,अच्छी ग्गज़ल हुई है बधाई ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 6, 2017 at 3:09pm

आ. सुरेन्द्र जी,
अच्छी ग़ज़ल  हुई है ..
बधाई 

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