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ग़ज़ल -- ज़ख़्म हँसते हैं लब नहीं हँसते ( दिनेश कुमार 'दानिश' )

2122--1212--22

ज़ख़्म हँसते हैं लब नहीं हँसते
लोग यूँ बे-सबब नहीं हँसते

ख़ुद में ही खोये खोये रहते हैं
महफ़िलों में भी सब नहीं हँसते

दर्दो-ग़म ने हमें ये सिखलाया
कब नहीं रोते कब नहीं हँसते

इस हँसी के भी कुछ म'आनी हैं
मसखरे रोज़ो-शब नहीं हँसते

पुर-तकल्लुफ़ है मेरा लहजा अब
वो भी अब ज़ेरे-लब नहीं हँसते

कैसे कह दूँ बहार आई है
फूल बाग़ों में जब नहीं हँसते

हम हैं इल्मो-अदब के राहनुमा
हम कभी बे-अदब नहीं हँसते

बोझ तहज़ीब का है बच्चों पर
खुल के 'दानिश' वे अब नहीं हँसते

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 12, 2016 at 9:55pm

ज़ख़्म हँसते हैं लब नहीं हँसते
लोग यूँ बे-सबब नहीं हँसते.......... सुन्दर गजल के लिए हार्दिक बधाई

Comment by Ravi Shukla on October 12, 2016 at 3:45pm

आदरणीय दिनेश जी सुन्दर गजल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 9, 2016 at 8:11pm
आदरणीय दिनेश भाई बहुत ही सुन्दर एवं सटीक रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें । सादर ।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 9, 2016 at 6:19pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय दिनेश जी, दाद कुबुल कीजिए

Comment by Samar kabeer on October 9, 2016 at 3:51pm
जनाब दिनेश'दानिश'साहिब आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 9, 2016 at 10:51am
दिलकश ग़ज़ल की हार्दिक बधाई।
Comment by नाथ सोनांचली on October 9, 2016 at 9:45am
आदरणीय श्री दिनेश कुमार दानिश जी मेरी बधाई स्वीकार करें इस रचना पर

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