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तरही ग़ज़ल -- " तेरे बारे में जब सोचा नहीं था " ( दिनेश कुमार )

1222--1222--122

मेरे चेहरे पे जब चेहरा नहीं था
मैं उस आईने से डरता नहीं था

ग़मों से जब नहीं वाबस्तगी थी
मैं इतनी ज़ोर से हँसता नहीं था

नज़ाक़त... ताज़गी... कुछ बेवफ़ाई
किसी के हुस्न में क्या क्या नहीं था

नशेमन की उदासी बढ़ रही थी
परिन्दा शाम तक लौटा नहीं था

हवा से लड़ रहा था एक दीपक
अँधेरा चार सू फैला नहीं था

फ़िज़ा की शक़्ल में शय कौन सी थी
चमन में गुल कोई महका नहीं था

सभी रिश्तों पे हावी थी सियासत
कोई भाई कोई बेटा नहीं था

बचाया सर... गवाई साख जिसने
'दिनेश' उस भीड़ का हिस्सा नहीं था

( मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 18, 2016 at 10:55am
आदरणीय दिनेश भाई बहुत ही सुन्दर रचना । शेर दर शेर बधाई स्वीकार करें । सादर ।
Comment by Ravi Shukla on October 17, 2016 at 1:58pm

आदरणीय दिनेश जी बहुत ही बढि़या गजल कही है आपने दिली दाद कुबूल करें हर शेर बढि़या 

Comment by नाथ सोनांचली on October 16, 2016 at 4:50pm
बेहतरीन गजल के लिए दाद के साथ मुबारकबाद कबूल फरमाए

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