For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

साँझ होते ही सो जाता हूँ अतीत की चादर ओढ़ कर,

साँझ होते ही
सो जाता हूँ
अतीत की चादर
ओढ़ कर,
बेसुध
न जाने कब
चादर विरल होने लगती है
इतनी विरल कि
चादर तब्दील हो जाती है
एक खूबसूरत बाग़ में
जिसमे तुम मुस्कुराती हो
फूल बन कर
और मै मंडराता हूँ
भँवरे सा
तुम इठलाती,
इतराती रात भर,
तो कभी ऐसा भी हुआ
जब मै बृक्ष बन उग आता हूँ
और तुम, बेल बन लिपट जाती हो
मै हँसता हूँ तुम मुस्कुराती हो
फिर तुम चाँद बन जाती हो
और मै - चकोर
और मै लगाने लगता हूँ टेर
पिऊ , पिऊ की
और तभी, सारा जादुई आलम
फिर से सघन होकर
तब्दील हो जाता है चादर में
जिसे फिर से सहेज
रख देता हूँ सिरहाने
रात फिर ओढ़ सो जाने को

मुकेश इलाहाबादी --------

(मौलिक/अप्रकाशित)

Views: 607

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 28, 2014 at 11:17pm

क्या बात है ! आदरणीय बढ़िया कविता के लिये बधाई ।


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 27, 2014 at 12:21pm

बहुत खूब भाई मुकेश इलाहाबादी जी।

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on November 26, 2014 at 2:04pm

jee saraahnaa aur sujhaaw ke liye aabhaar  - muktibodh jee ko padhnaa apne aapme ek pyaraa aur achhaa anubhav hotaa hai - Dr.Gopal Narayan Srivastava jee

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 26, 2014 at 1:10pm

मुकेश जी

आपकी रचना  एक  फैंटेसी की तरह है i  हिन्दी मे  फैंटेसी कम है i आप मुक्ति बोध की कविता 'अँधेरे में ' पढ़िए i आप फैटे सी को गहनता से समझेंगे   और बेह्त र लिखेंगे i मुझे विशवास है i सादर i

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on November 26, 2014 at 11:26am

rachnaa pasandgee ke liye bahut bahut aabhaar Rajesh Kumari  jee, Laxman jee, Hari Prakash Dubey jee, Somesh kumar jee


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 26, 2014 at 11:13am

एहसासों की ,भावनाओं की चादर ....बहुत खूब ..बधाई आपको आ० मुकेश श्रीवास्तव जी 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 26, 2014 at 10:52am

अति सुंदर हार्दिक बधाई ।

Comment by Hari Prakash Dubey on November 26, 2014 at 2:07am

अतीत की चादर सुन्दर लगती है ,सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई मुकेश जी !

Comment by somesh kumar on November 25, 2014 at 7:23pm

सुंदर प्रस्तुति ,प्रेम का गोता ही ऐसा है जहाँ हर तरह उसे देखने की चाह बनी रहती है ,और समर्पण उसके अनुसार प्रेमी को भी ने रूपों मे ढालता है |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

रामबली गुप्ता posted a blog post

कुंडलिया छंद

सामाजिक संदर्भ हों, कुछ हों लोकाचार। लेखन को इनके बिना, मिले नहीं आधार।। मिले नहीं आधार, सत्य के…See More
yesterday
Yatharth Vishnu updated their profile
yesterday
Sushil Sarna commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"वाह आदरणीय जी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल बनी है ।दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर ।"
Friday
Mamta gupta commented on Mamta gupta's blog post ग़ज़ल
"जी सर आपकी बेहतरीन इस्लाह के लिए शुक्रिया 🙏 🌺  सुधार की कोशिश करती हूँ "
Nov 7
Samar kabeer commented on Mamta gupta's blog post ग़ज़ल
"मुहतरमा ममता गुप्ता जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें । 'जज़्बात के शोलों को…"
Nov 6
Samar kabeer commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें । मतले के सानी में…"
Nov 6
रामबली गुप्ता commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आहा क्या कहने। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल हुई है आदरणीय। हार्दिक बधाई स्वीकारें।"
Nov 4
Samar kabeer commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब, बहुत समय बाद आपकी ग़ज़ल ओबीओ पर पढ़ने को मिली, बहुत च्छी ग़ज़ल कही आपने, इस…"
Nov 2
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहा (ग़ज़ल)

बह्र: 1212 1122 1212 22किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहातमाम उम्र मैं तन्हा इसी सफ़र में…See More
Nov 1
सालिक गणवीर posted a blog post

ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...

२१२२-१२१२-२२/११२ और कितना बता दे टालूँ मैं क्यों न तुमको गले लगा लूँ मैं (१)छोड़ते ही नहीं ये ग़म…See More
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"चल मुसाफ़िर तोहफ़ों की ओर (लघुकथा) : इंसानों की आधुनिक दुनिया से डरी हुई प्रकृति की दुनिया के शासक…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"सादर नमस्कार। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया सकारात्मक विचारोत्तेजक और प्रेरक रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Oct 31

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service