पहाड़ और पीठ
एक
पहाड़,
सिर्फ पीठ होता है
मुह होता तो बोलता
पहाड़ के पैर भी नही होते
हाथ भी
वरना वह चलता
कुछ करता या,
उठता बैठता भी
पहाड़, अपनी पीठ पर
लाद लेता है तमाम जंगल नदी नाले,
हरी भरी झील भी
सड़क और बस्तियां भी
और कुछ नही बोलता
क्यों कि,
पहाड़ सिर्फ पीठ है
और पीठ कुछ नही बोलती
दो,
पीठ,
पहाड़ नही होती
पर लाद लेती है पहाड़
पीठ के भी मुह नही होता
पहाड़ की तरह होती है एक सतह,
जो थपथपायी जाती है
पहाड़ लाद लेने के एवज में,
यही पीठ गोरी व चिकनी है तो फिसलती हैं
नजरें व हांथ भी और, द आते हैं पहाड़
और उग आते हैं आखों के जंगल खुंखार व भयावह
यही पीठ सख्त और मजबूत है तो
नही दिखा सकती पीठ
तमाम नस्तर व खंजर लगने के बाद भी क्यूंकी,
पीठ पर पहाड़ होते हैं,
और पहाड़ के मुह नही होता
और पीठ के भी
मुकेश इलाहाबादी -------------
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
BHAUT BAHUT AABHAR MITRON RACHNAA PASANDGEE KE LIYE - VISHSESHSTAH - SAURABH PANDEY JEE, JITENDRA PASTARDIYA,GIRIRAJ BHANDARI,ER. GANESH BAGI , MITHILESH WAMANKAR, HARI PRAKASH DUBEY, AJAY SHARMA, DR GOPAL NARAYAN SRIVASTAVA AUR GUMNAM PITHAURAGARHEE JEE -
आदरणीय मुकेश भाई, पीठ के समानान्तर पहाड़ की संज्ञा रोचक बिम्ब प्रस्तुत कर रही है.
प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई.
दूसरी क्षणिका की इस पंक्ति का अर्थ नहीं समझ पाया - नजरें व हांथ भी और, द आते हैं पहाड़
हार्दिक शुभकमानाएँ
वाह! क्या कहने.. बहुत सार्थक बात कही आदरणीय मुकेश जी. हार्दिक बधाई
आदरणीय मुकेश भाई , दोनो रचना यें बहुत सुन्दर लगीं , हार्दिक बधाई आपको ॥
क्या कहने भाई, दो पक्ष और दोनों एक दुसरे को सहारा देती हुई, अच्छी रचना लगी, बधाई प्रेषित है.
आदरणीय मुकेश जी सुन्दर भावपूर्ण कविता हेतु हार्दिक बधाई निवेदित है
आदरणीय मुकेश जी सुन्दर रचना ,// पहाड़ सिर्फ पीठ है
और पीठ कुछ नही बोलती// सुन्दर कल्पना ....// पीठ,
पहाड़ नही होती
पर लाद लेती है पहाड़/// वाह ..हार्दिक बधाई आपको !
bahut hi khoobsoorat rachna ke liye badhai
मुकेश जी
आपका नजरिया काबिले तारीफ़ है i
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