है मज़हब भले अलग मेरा, पर मैं भी तो इंसान हूँ
खान पान पहनावा अलग, पर बिलकुल तेरे सामान हूँ
ऊपर से चाहे जैसा भी, अन्दर से हिंदुस्तान हूँ
अपने न समझे अपना मुझे, इस बात मैं परेशान हूँ
अपने ही मुल्क में ढूंढ रहा, मैं अपनी पहचान हूँ
मैं भारत का मुसलमान हूँ-२
जब कोई धमाका होता है, लोग मुझ पर उंगली उठाते हैं
आतंक सिखाता है मज़हब मेरा, ये तोहमत हम पर लगाते हैं
दंगों में…
Added by Ranveer Pratap Singh on May 1, 2018 at 4:30pm — 6 Comments
दिल में प्यार
आँखों में सम्मान रहने दो
मंदीर की आरतियों संग
मस्जिद की अज़ान रहने दो
क्यों लड़ना धर्म के नाम पर
क्यों बेकार में खून बहाना
मज़हब के मोहल्लों में
इंसानों के मकान रहने दो
मुझे हिन्दू, उसे मुसलमान रहने दो!
माना सब एक ही हैं
पर थोड़ी अलग पहचान रहने दो
अगरबत्तियों की ख़ुशबू संग
थोडा लोहबान रहने दो
चढाने दो उसको चादरें
मुझे चढाने दो चुनरियाँ
दोनों मज़हब तो सिखाते हैं प्रेम ही
तो थोड़ी गीता थोडा क़ुरान…
Added by Ranveer Pratap Singh on September 5, 2017 at 10:59pm — 5 Comments
आसमान में उगता सूरज, जलता सूरज तपता सूरज
बदरियों की बगियाँ में, लुका-छिपी करता सूरज
सांझ सकारे किसी किनारे, धीरे धीरे ढलता सूरज
मैं भी तो इस सूरज सा, चढ़ा कभी कभी ढ़ल गया हूँ
जाने क्यों कहते हैं लोग, की मैं बदल गया हूँ!…
ContinueAdded by Ranveer Pratap Singh on January 25, 2015 at 10:00pm — 6 Comments
ककहरा
क- काले दिल कपड़े सफ़ेद
ख- खादी की नियत में छेद
ग- गद्दार देश को बेच रहे
घ- घर को रहे भालो से भेद
इसके बाद कुछ नहीं
मानो हुआ कुछ नहीं…
च- चिड़िया थी जो सोने की
छ- छलनी है आतंक की गोली से
ज- जहां तहां है ख़ून खराबा
झ- झगड़े, जात-धर्म की बोली से
इसके बाद कुछ नहीं
मानो हुआ कुछ नहीं…
ट - टंगी है आबरू चौराहे पे माँ की
ठ - ठगी सी आंसू बहाती है
ड - डरी हुयी है बलात्कारियों से
ढ - ढंग से जी नहीं…
Added by Ranveer Pratap Singh on January 11, 2013 at 11:30pm — 11 Comments
चन्द्रबदन!
तेरे कपोल पे तेरे नैनों का नीर
लागे जैसे सीप में मोती
शशी से भी तू सुन्दर लागे
जब ओढ़ चुनर तू है सोती
झरने सी तू चंचल है
सुन्दरता से भी सुन्दर है
सुगंध तेरी जैसे कोई संदल
चन्द्रबदन, चन्द्रबदन, हय तेरा चन्द्रबदन…
तेरे केशों में…
ContinueAdded by Ranveer Pratap Singh on November 16, 2012 at 10:30pm — 8 Comments
अजब सा शोर है…
मंदिर की घंटियों में भी
मस्ज़िद की अजानों में
मुझको रब नहीं दीखता
धर्म के इन दुकानों में
दिल में बचैनीं हैं...
क्या ख़ाक मिले सुकूं
गीता में कुरानों में
आब हूँ हवा में मिल जाऊँगा
मुझे ना दफनाना तुम
ना जलाना शमशानों में
नहीं जाता किसी दर पर...
खुदा जो है तो मुझसे मिले
कभी मेरे मकानों में
मैं मंदिर में बैठ के पियूँगा
वो तो हर जगह है
पैमानों में मयखानों में
उसे क्या ढूंढते हो तुम…
ज़िन्दगी…
Added by Ranveer Pratap Singh on November 5, 2012 at 11:30pm — 8 Comments
नज़र से उसकी नज़र मिल गयी
Added by Ranveer Pratap Singh on October 31, 2012 at 11:00pm — 2 Comments
महंगाई
महंगाई ने कुछ ऐसा रंग दिखाया है
आम सी दाल को भी खास बनाया है
जो दाल रोटी खा प्रभु के गुण गाते थे
प्रभु को भूल आज,वो दाल की पूजा कर जाते हैं
फास्ट फ़ूड खाने वाला आज दाल भी शौक से खाता है
सूट पहनकर इतराता हुआ खुद के रौब दिखाता है
धरती की दाल को आसमान…
ContinueAdded by Ranveer Pratap Singh on October 17, 2012 at 10:44pm — 4 Comments
पंक्तियाँ
v एक दिन देखना देश हमारा इतना हाईटेक हो जाएगा,
दूल्हा भी घूंघट दुल्हन का रिमोट से ही उठाएगा!
v आयेंगे तो जा न पायेंगे ये हमारी ज़िम्मेदारी है,
और जायेंगे भी कैसे जनाब ये अस्पताल ही सरकारी है!
v पुरुषो से हैं कहीं आगे आजकल की महिलाएं,
धडल्ले से हैं पीती दारू वो भी बिना बरफ मिलाये!
v पत्नियां घूमें सेल में ढूंढें महंगी साड़ी,
पति बेचारा जेब टटोले कभी…
ContinueAdded by Ranveer Pratap Singh on August 25, 2012 at 9:53pm — 2 Comments
रंग बिरंगा देश है मेरा
रंग बिरंगी शान है
सारी दुनिया कहती है , सुनलो …
भारत देश महान है !
Added by Ranveer Pratap Singh on August 15, 2012 at 11:30am — 5 Comments
बचपन !
आज मन मेरा फिर मुस्कुराया है
बचपन का दिन आज याद मुझे आया है
यादों ने फिर एक गीत सुनाया है
बचपन का दिन आज याद मुझे आया है…
स्कूल से घर आकर बसते का पटकना
तपती हुई धुप में बस यूँ ही भटकना
आइने के सामने मस्ती में मटकाना
पापा के कंधे पर जबरन…
ContinueAdded by Ranveer Pratap Singh on August 14, 2012 at 1:12pm — No Comments
क़लम, डायरी और तू...
आज सोचा की तेरी बड़ाई लिखूं
कुछ तेरी ही बाते कुछ तो सच्चाई लिखूं
कुछ ऐसा लिखूं जो मेरी कल्पना ना हो
चाँद, तारे, बादलों से तेरी तुलना ना हो
कुछ शब्द है मन में मेरे, कुछ पंक्तियाँ सजाई है
तुझपे कविता लिखने को मैंने डायरी उठायी है....…
ContinueAdded by Ranveer Pratap Singh on August 12, 2012 at 3:28pm — No Comments
दुनिया
चाँद धरा पे लाना है
सूरज को पिघलाना है
सागर को भर अजुरी में
बादल को बरसाना है
है अंत जहां भी आसमान का
उससे ऊपर…
ContinueAdded by Ranveer Pratap Singh on August 12, 2012 at 12:24am — No Comments
मेरी सखी
कभी चंचल है, कभी है गंभीर
कभी हवा सी है, कभी जैसे नीर
कभी मोती जैसे खानेके वो
कभी चन्दन जैसे महके वो
कभी…
ContinueAdded by Ranveer Pratap Singh on August 10, 2012 at 1:20pm — 7 Comments
Added by Ranveer Pratap Singh on August 9, 2012 at 1:30pm — 2 Comments
अमीरी
बचपन की अमीरी जाने कहाँ खो गयी
सपनो की दुनिया मेरी आँखे मूँद सो गयी …
चार आने जेब में रखकर
दुनिया लेने जाते थे
चार आने में चार गोलियां
संतरे वाली लाते थे
चार चवन्नी रख गुल्लक में
उसको रोज़ बजाते थे
चार रुपये हो जाए तो एक
नयी गुल्लक ले आते थे
चार आने की खनक चार कंधो पे सो…
Added by Ranveer Pratap Singh on August 8, 2012 at 1:30pm — 4 Comments
प्रगति पथ पर चलो निरंतर
न किसी का भय न कोई डर
करना है कुछ अलग सा काम
चाहे हो जाए जीवन तमाम
पर चले चलो अ-विराम
कांटो सी राह पर चलते है जाना
सूरज की आग में जलते है जाना
रोशन करना है जग में नाम
चाहे हो जाए जीवन तमाम
पर चले चलो…
ContinueAdded by Ranveer Pratap Singh on August 7, 2012 at 11:33pm — 5 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |