आसमान में उगता सूरज, जलता सूरज तपता सूरज
बदरियों की बगियाँ में, लुका-छिपी करता सूरज
सांझ सकारे किसी किनारे, धीरे धीरे ढलता सूरज
मैं भी तो इस सूरज सा, चढ़ा कभी कभी ढ़ल गया हूँ
जाने क्यों कहते हैं लोग, की मैं बदल गया हूँ!
हर रंग ढंग में रहता पानी, थमता पानी बहता पानी
आसमान से झर झर बरसे, गागर में फिर भरता पानी
बर्फ सा बनकर जमा धरा पर, आसमान में भी उड़ता पानी
मैं भी तो इस पानी सा, प्यास बुझा के भी जल गया हूँ
जाने क्यों कहते हैं लोग, की मैं बदल गया हूँ!
सनन सनन सर्र बहे हवा, चुप है फिर भी कहे हवा
जहां देखो वहाँ हवा, फिर भी कहीं ना दिखे हवा
चिंगारी ना फूटे इस बिन, आग बुझाने को भी लगे हवा
मैं भी तो इस हवा सा, पर्वत पार निकल गया हूँ
जाने क्यों कहते हैं लोग, की मैं बदल गया हूँ!
खेत में फसल उगाती माटी, मरे को गोदी सुलाती माटी
कभी पैरों से रौंदी जाती, कभी ललाट सजाती माटी
जिस माटी से बने घरौंदे, उसी घर से बहारी जाती माटी
मैं भी तो इस माटी सा, माटी में ही मिल गया हूँ
जाने क्यों कहते हैं लोग, की मैं बदल गया हूँ!
"मौलिक व् अप्रकाशित"
"रणवीर प्रताप सिंह"
Comment
आ० भाई रणवीर जी , इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई .
@मिथिलेश वामनकर @जितेन्द्र पस्टारिया @ Hari Prakash Dubey @ शिज्जु "शकूर" आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने मेरी इस कविता को सराहा...
आदरणीय रणवीर प्रताप सिंह जी सुन्दर प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई !
सुंदर प्रस्तुति, आदरणीय रणवीर जी. बधाई , गणतंत्र दिवस की शुभकामनाये
आदरणीय रणवीर प्रताप सिंह जी सुन्दर रचना हार्दिक बधाई !
आदरणीय रणवीर जी अच्छी भावाभिव्यक्ति है बहुत बहुत बधाई आपको
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online