For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अजब सा शोर है…
मंदिर की घंटियों में भी
मस्ज़िद की अजानों में
मुझको रब नहीं दीखता
धर्म के इन दुकानों में

दिल में बचैनीं हैं...
क्या ख़ाक मिले सुकूं
गीता में कुरानों में
आब हूँ हवा में मिल जाऊँगा
मुझे ना दफनाना तुम
ना जलाना शमशानों में

नहीं जाता किसी दर पर...
खुदा जो है तो मुझसे मिले
कभी मेरे मकानों में
मैं मंदिर में बैठ के पियूँगा
वो तो हर जगह है
पैमानों में मयखानों में

उसे क्या ढूंढते हो तुम…
ज़िन्दगी में ज़मानों में
खुदा तुममें ही रहता है
तेरी झोपड़ियों में भी
और तेरे आशियानें में



रणवीर प्रताप सिंह

Views: 432

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ranveer Pratap Singh on November 6, 2012 at 11:08pm

@Rajesh Kumar Jha मैं आपके विचारों से सहमत हूँ 

Comment by Ranveer Pratap Singh on November 6, 2012 at 11:07pm

@Laxman Prasad Ladiwalaमैं आपके विचारों पे ज़रूर ध्यान दूंगा 

Comment by Ranveer Pratap Singh on November 6, 2012 at 11:05pm

@ PHOOL SINGH बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by Ranveer Pratap Singh on November 6, 2012 at 11:04pm

@ Saurabh Pandey बहुत बहुत धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 6, 2012 at 6:55pm

सनातन तथ्य की पुनर्प्रस्तुति कितना संतुष्टि देती है ! .. बधाई.. .

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 6, 2012 at 5:53pm

वो तो हर जगह है पैमानों में मयखानों में 

खुदा तुममें ही रहता है,तेरी झोपड़ियों में भी,और तेरे आशियानें में-  
सही कहा आपने रंनवीर प्रताप सिंह जी, अच्छी अभिव्यक्ति के लिए बधाई,मगर 
गीता और कुरान में है उसकी आत्म कथा,उसको इनसे जानकार टटोले अपने अंतर्मन में 
रामायण, गीता,मंदिर मस्जिद मात्र प्रतिक  है,जानने और फिर अपने मन मंदिर में खोजने को
जहाँ बैठकर मन को एकाग्रचित्त करने का एक स्थान मात्र है
जहां से प्रेरणा ले,अपने मन मंदिर को आलिशान बना सके । फिर वो मिल जायेंगे कही भी ।

 

Comment by PHOOL SINGH on November 6, 2012 at 3:51pm

रणवीर प्रताप सिंह नमस्कार

वाह कमाल की रचना के लिए बधाई स्वीकारे....

फूल सिंह

Comment by राजेश 'मृदु' on November 6, 2012 at 11:48am

ईश्‍वर सर्वव्‍याप्‍त हैं, उन्‍हें ढूंढना नहीं होता । आपकी रचना के भाव से सहमत हूं । यहां एक विरोधाभास है 'वो तो हर जगह है' और उससे पहले 'खुदा जो है तो मुझसे मिले' , अर्थ यह कि बेचैनी जब बढ़ती है ईश्‍वर तिरोहित हो जाते हैं लेकिन संयत होते ही मन मान लेता है कि वो तो हर जगह है । ठीक यही तो हमारे साथ भी होता है, उद्विग्‍न होने पर हर विश्‍वास टूटने लगते हैं

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहा सप्तक. . . . . मित्र जग में सच्चे मित्र की, नहीं रही पहचान ।कदम -कदम विश्वास का ,होता है…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर,…"
7 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"गीत••••• आया मौसम दोस्ती का ! वसंत ने आह्वान किया तो प्रकृति ने श्रृंगार…"
14 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आया मौसम दोस्ती का होती है ज्यों दिवाली पर  श्री राम जी के आने की खुशी में  घरों की…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"स्वागतम"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी दोहावली अपने थीम के अनुरूप ही प्रस्तुत हुई है.  हार्दिक बधाई "
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी दोहावली के लिए हार्दिक धन्यवाद.   यह अवश्य है कि…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी प्रस्तुति आज की एक अत्यंत विषम परिस्थिति को समक्ष ला रही है. प्रयास…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आवारा मदमस्त सी, नभ में उड़े पतंग ।बीच पतंगों के लगे, अद्भुत दम्भी जंग ।।  आदरणीय सुशील…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"दुःख और कातरता से विह्वल मनस की विवश दशा नम-शब्दों की रचना के होने कारण होती है. इसे सुन्दरता से…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post मकर संक्रांति
"बढिया भावाभिव्यक्ति, आदरणीय. इस भाव को छांदसिक करें तो प्रस्तुति कहीं अधिक ग्राह्य हो जाएगी.…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"झूठ के विभिन्न आयामों को कथ्य में ढाल कर आपने एक सुंदर दोहावली प्रस्तुत की है, आदरणीय लक्ष्मण धामी…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service