For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,125)

गज़ल:हमारा शक ...

हमारा शक सही हो ऐसा अक्सर नहीं होता,

हर आदमी के हाँथ में पत्थर नहीं होता.



मेरे दुखों की बाबत मुझसे न पूछिए,

जो ज्वार को रोये वो समुन्दर नहीं होता.



मैं अपने घर के लोगों से मिलता हूँ उसी रोज,

जिस रोज मेरे घर मेरा दफ्तर नहीं होता.



सच बोलता हूँ मान न होने का गम नहीं,

नासूर कितने होते जो नश्तर नहीं होता.



कितने बरस से बन रही हैं योजनाएं पर,

लाखों हैं जिनके सर पर छप्पर नहीं होता.



गढ़ते हैं किले आपके कर पेट पीठ एक,

उनको… Continue

Added by Abhinav Arun on October 10, 2010 at 10:00am — 2 Comments

गज़ल:याद जाने कहाँ

याद जाने कहाँ खो गयी,

बात आयी गयी हो गयी .



दिन में हल मैं चलाता रहा,

रात में बीज वो बो गयी.



बंद थीं मछलियाँ जार में,

तितली पानी से पर धो गयी.



बाद मुद्दत के आयी खुशी ,

मेरे हालात पर रो गयी.



तुमने बच्ची को डाटा बहुत ,

लेके टेडी बीयर सो गयी.



उसकी यादों में खोया था मैं,

इसका तस्कीन कर वो गयी.



एक नौका नदी से मिली ,

और मंझधार में खो गयी.



माँ ने कुछ भी तो पूछा न था,

कैसे मन को मेरे टो… Continue

Added by Abhinav Arun on October 10, 2010 at 10:00am — 1 Comment

गज़ल:उसकी हद उसको..

उसकी हद उसको बताऊंगा ज़रूर,

बाण शब्दों के चलाऊंगा ज़रूर.



इस घुटन में सांस भी चलती नहीं,

सुरंग बारूदी लगाऊंगा ज़रूर.



यह व्यवस्था एक रूठी प्रेयसी,

सौत इसकी आज लाऊंगा ज़रूर.



सच के सारे धर्म काफिर हो गए,

झूठ का मक्का बनाऊंगा ज़रूर.



इस शहर में रोशनी कुछ तंग है,

इसलिए खुद को जलाऊंगा ज़रूर.



आस्था के यम नियम थोथे हुए,

रक्त की रिश्वत खिलाऊंगा ज़रूर.



आख़री इंसान क्यों मायूस है ,

आदमी का हक दिलाऊंगा… Continue

Added by Abhinav Arun on October 10, 2010 at 9:30am — 2 Comments

"रंग"



जीवन... जीतें हैं लोग...

वही... जो, जैसा मिल जाता है उन्हें...

पर इस एक जीवन में... है एक और जीवन...

जिसे, अक्सर भूल जातें हैं हम...

वो है 'रंगों' का जीवन...

हर रंग एक जीवन खुद में...

हर जीवन एक रंग खुद में....

हर रंग की अपनी कहानी...

हर कहानी का अपना रंग...

खुशियाँ, उदासियाँ, उल्लास, विश्वास...

जीवन की तरह हर मोड़ है यहाँ...

हर खुशबू है, हर सपना है...



कभी उदासी में साथ… Continue

Added by Julie on October 9, 2010 at 5:00pm — 10 Comments

घर - एक नज़्म

चाँद घुटनों पे पड़ा था

अम्बर की किनारी पे



शब-ए-काकुल मे

तरेड़ पड़ गयी थी

चांदनी की .......

"जैसे तेरी कोरी मांग,

मैंने अभी भरी नहीं "



माँ ने अंजल भर के तारो से

चरण-अमृत छिड़का हो

सारा आसमान जैसे सजाया हो

आरती की थाली की मानिंद

तेरा गृह-प्रवेश करने के लिए ....... !



.. पर इतना बड़ा आसमान

कैसे मेरे छोटे से घर मे समाता .....



" अच्छा होता मैं घर ही न बनाता"

मैं घर ही न बनाता ...… Continue

Added by vikas rana janumanu 'fikr' on October 9, 2010 at 3:30pm — 6 Comments

..... जलने दो

(सब से पहले यहीं पर प्रस्तुती कर रहा हूँ इस रचना की , आशीर्वाद दीजियेगा)





जलने दो मुझे जलने दो ,अपनी ही आग में जलने दो .

ये आग जलाई है में ने , मुझे अपनी आग में जलने दो .



तू मेरी चिंता मत करना ,ठंडी आहें भी मत भरना ;

मैं जलता था मैं जलता हूँ ,सम्पूर्णता को मचलता हूँ ,

मन मचल रहा है मचलने दो ;मुझे अपनी आग में जलने दो .





दाहक,दैहिक पावक न ये ,मानस तल का दावानल है,

ज्वाला मैं जन्म पिघलने दो ,मन को शोलों में ढलने दो

मुझे जलने दो… Continue

Added by DEEP ZIRVI on October 9, 2010 at 3:00pm — 2 Comments

सब्र की इन्तहा

इन्तहा है, हमारे सब्र की,
न जाने कब ये खत्म होगी,
जाने कब जागेंगे, और कसेंगे पीठ अपनी,
कब सचेत होंगे,
कब रोकेंगे हम विध्वंस को|
क्यों हम कहते हैं की मान जाओ,
जबकि हम जानते है,
वो कहने से नहीं मानेंगे,
वो नहीं समझेंगे मानवता को|
हम अपने सामर्थ्य से रोक सकते हैं उन्हें,
फिर भी सब्र किये बैठे हैं|
बहुत बड़ी इन्तहा है हमारे सब्र की,
अनंत तो नहीं, पर उसकी ही ओर|

Added by आशीष यादव on October 9, 2010 at 9:30am — 14 Comments

मुक्तिका... क्यों है? ------- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका...



क्यों है?



संजीव 'सलिल'

*

रूह पहने हुए ये हाड़ का पिंजर क्यों है?

रूह सूरी है तो ये जिस्म कलिंजर क्यों है??



थी तो ज़रखेज़ ज़मीं, हमने ही बम पटके हैं.

और अब पूछते हैं ये ज़मीं बंजर क्यों है??



गले मिलने की है ख्वाहिश, ये संदेसा भेजा.

आये तो हाथ में दाबा हुआ खंजर क्यों है??



नाम से लगते रहे नेता शरीफों जैसे.

काम से वो कभी उड़िया, कभी कंजर क्यों है??



उसने बख्शी थी हमें हँसती हुई जो धरती.

आज… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 9, 2010 at 9:00am — 3 Comments

मुक्तिका: वह रच रहा... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:



वह रच रहा...



संजीव 'सलिल'

*

वह रच रहा है दुनिया, रखता रहा नजर है.

कहता है बाखबर पर इंसान बेखबर है..



बरसात बिना प्यासा, बरसात हो तो डूबे.

सूखे न नेह नदिया, दिल ही दिलों का घर है..



झगड़े की तीन वज़हें, काफी न हमको लगतीं.

अनगिन खुए, लड़े बिन होती नहीं गुजर है..



कुछ पल की ज़िंदगी में सपने हजार देखे-

अपने न रहे अपने, हर गैर हमसफर है..



महलों ने चुप समेटा, कुटियों ने चुप लुटाया.

आखिर में सबका… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 9, 2010 at 8:57am — 2 Comments

वो कौन है जिसकी याद सताती है हमें||

वो कौन है जिसकी याद सताती है हमें|

न जाने किस तरफ ये रोज बुलाती है हमें||



खोजता हूँ मै उसे मिलती नहीं वो मुझको|

रात को लेकिन चुपके से जगाती है हमें||



कहीं मिले जो कभी मुझसे साफ़ कह दूँ मैं|

की कौन है और ऐसे सताती है हमें||



देर तक तन्हा बैठ कर के यूँ ही सोचते हैं|

फिर याद उसकी जमीं महफ़िल में लाती है हमें||



फूल के जैसे खिल के वो मेरे सिने में|

साथ हूँ इसका एहसास कराती है हमें||



एक अनजान सहारा सी बन गयी है वो|

अश्क… Continue

Added by आशीष यादव on October 9, 2010 at 8:52am — 18 Comments

गज़ल:कोल्हू चाक..

कोल्हू चाक रहट मोट की आवाज़ें,

शहरों से आयातित चोट की आवाज़ें.



मान मनोव्वल कुशलक्षेम पाउच और नोट ,

सबके पीछे छिपी वोट की आवाज़ें.



लूडो कैरम विडियो गेम के पुरखे हुए ,

बच्चों के हांथों रिमोट की आवाज़ें.



ध्यान रहे इस ताम झाम में दबें नहीं ,

आयोजन में हुए खोट की आवाज़ें .



मजबूरी में बार गर्ल बन बैठी वो ,

सिसकी पर भारी है नोट की आवाज़ें.



बेटा नहीं नियम से आता मनी-ऑर्डर,

कौन सुनेगा दिल के चोट की आवाज़ें.



मेरी… Continue

Added by Abhinav Arun on October 9, 2010 at 8:30am — 7 Comments

बहुत सफल और सार्थक आराधना "जय माता की"

शक्ति की आराधना का पर्व आरंभ हो चुका है. नव दिन तक हम माँ की पूजा अर्चना करेंगे. हमारे यहाँ कन्या को भी देवी के रूप में माना जाता है और इसी लिए हम नवरात्रा के अंतिम दिन कन्या पूजन करने के बाद ही पर्व समाप्त करते हैं, किंतु यह आश्चर्य और दुख की बात है कि जो समाज कन्याओं को देवियों के रूप में पूजता है वही समाज कन्या भ्रूण हत्या का भी अपराधी बनता जा रहा है.



आइए इस पर्व पर हम सब माँ दुर्गा की सौगंध खा कर यह संकल्प लें कि हम ना तो अपने परिवार में कन्या भ्रूण हत्या के दोषी बनेगे और ना ही… Continue

Added by Pooja Singh on October 9, 2010 at 12:30am — 4 Comments

आदि शक्ति वंदना संजीव वर्मा 'सलिल'

आदि शक्ति वंदना





संजीव वर्मा 'सलिल'



*



आदि शक्ति जगदम्बिके, विनत नवाऊँ शीश.



रमा-शारदा हों सदय, करें कृपा जगदीश....



*



पराप्रकृति जगदम्बे मैया, विनय करो स्वीकार.



चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....



*



अनुपम-अद्भुत रूप, दिव्य छवि, दर्शन कर जग धन्य.



कंकर से शंकर रचतीं माँ!, तुम सा कोई न अन्य..







परापरा, अणिमा-गरिमा, तुम ऋद्धि-सिद्धि शत… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 8, 2010 at 5:30pm — 3 Comments

ग़ज़ल : "खामोशियों से लब को बचाता हूँ मैं"

अश्क आँखों में लेकर मुस्कुराता हूँ मैं.

गीत बहारों का पतझड़ में गाता हूँ मैं.



उठ गया है यकीं अब किनारों से मेरा,

मझधार में अपनी कश्ती लगाता हूँ मैं.



राहों से गुम होने लगे है दरख्तों के साए,

धुप को ही सेहरा सर का बनाता हूँ मैं.



नहीं छोड़ा शराफत ने मुझको कही का,

रस्म उल्फत का फिर भी निभाता हूँ मैं.



दूर तलक नहीं दिखते है खुशिओं के बादल,

गम से ही अपने दिल को बहलाता हूँ मैं.



"नूरैन" आबो हवा है ज़माने का…
Continue

Added by Noorain Ansari on October 8, 2010 at 12:30pm — 2 Comments

जय माँ दुर्गे -जय महाकाली (नवरात्रि पर विशेष)

जय माँ दुर्गे -जय महाकाली, जय माँ -जय माँ जय शेरावाली.

तू दानी माता महारानी, बाकी सब ही सवाली.

जय माँ दुर्गे --------------------------------------------------

तुम्हरी शरण में जो भी आते , जो भी तुमसे नेह लगाते.

तुम्हरी महिमा को नहीं जाने, मईया सब तुम्हरे गुण गाते.

हाथ पसारे सब ही आते - जाते ना पर खाली.

जय माँ दुर्गे ---------------------------------------------

शेर सवारी- भुजा कटारी, मुंडमालिनी-खप्परधारी.

ऐसा कौन जो तुमसे बचा हो , सब दुष्टन पर तुम हो… Continue

Added by satish mapatpuri on October 8, 2010 at 12:07pm — 2 Comments


प्रधान संपादक
OBO लाईव तरही मुशायरा-४ में पेश की गई ग़ज़लें

जनाब नवीन चतुर्वेदी जी



खारों के पास ही नाज़ुक गुलों का घर क्यूँ है|

मुद्दतों से वही मसला, वही उत्तर क्यूँ है|१|



पेट भरता चला आया युगों से जो सब का|

भाग्य में उस अभागे के, फकत ठोकर क्यूँ है|२|



सालहासाल जिसके वोट खींच रहे - संसद|

'थेगरों' से पटी उसकी शफ़क चद्दर क्यूँ है|३|



और कितनी बढ़ाएगा बता कीमत इसकी|

दृष्‍टि में तेरी, मेरे भाग की शक्कर क्यूँ है|४|



जो कि अल्लाह औ भगवान दोनो हैं इक ही|

फिर जमीँ पे कहीं… Continue

Added by योगराज प्रभाकर on October 8, 2010 at 10:30am — 1 Comment

ग़ज़ल : दराज़ पलकें, हसीन चेहरा...





दराज़ पलकें, हसीन चेहरा, वो दिलकशी और वो जो नजाकत |

कोई अगर लाजवाब हो तो, वो आवे देखे जवाब अपना ||



न मयकदा कोई रहना बाकी, न मयकशी न कहीं हो साकी |

अगर पलट दे मेरा ये दिलबर, जरा रुखों से नकाब अपना ||



खनकती आवाज़ शीशे जैसी, लचकती सी चाल हाय रब्बा |

वो माथे पे झूले नाग बच्ची, समझ के जुल्फों को नाग अपना ||



किसी मुस्स्विर का ख्वाब वो है, किसी तस्सवुर की है हकीकत ||

अगर कभी उसको देख ले तो,… Continue

Added by DEEP ZIRVI on October 8, 2010 at 7:00am — 3 Comments

राज़ दिल का छुपाया बहुत है

राज़ दिल का छुपाया बहुत है

आंसुओं को सुखाया बहुत है



मै समझता था जिसको शनासा

आज वो ही पराया बहुत है



मैंने जिसको हसाया बहुत था

उसने मुझको रुलाया बहुत है



अब कोई और खेले न दिल से

ये किसी ने सताया बहुत है



कर चला है वो नाराज़ मुझको

मैंने जिसको मनाया बहुत है



उसके लफ्जों में हूँ आज भी मै

वैसे उसने भुलाया बहुत है



तेरी संजीदगी कह रही है

तू कभी मुस्कुराया बहुत है



क्या हुआ जो समर अब नहीं… Continue

Added by Hilal Badayuni on October 7, 2010 at 11:05pm — 8 Comments

सब के रब !दूर हर इक मन का धुंधलका करदे

सब के रब !दूर हर इक मन का धुंधलका करदे

आईने पर है जमी धुल जो सफा कर दे

नफस में कीना है ; सीने में है जलन नफरत ;

इन आफतों को क्रीम मौला तू दफा कर दे ..

नफस बीमार है चंगा तो बशर दीखता है ;

तू नफस और बशर दोनों को चंगा कर दे

अपने ही हाथों से कर डालें ना खुद को घायल ;

तू भले और बुरे से हमें आगाह कर दे

बन के मजनूं न फिरे कोई जख्म न खाए ;

सब कि आगोश में तौफीक की लैला कर दे

खुद से बेगाना हुआ फिरता है जो ,तू खुद ही ;

उन को खुद से मिला कर के तू… Continue

Added by DEEP ZIRVI on October 7, 2010 at 10:43pm — No Comments

हाँ मै ने भी किया है प्रेम

हाँ मै ने भी किया है प्रेम, मै ने भी पिया है प्रेम रस ;

मेरी प्रेयसी नित नूतन सद सनातन ;किन्तु पुरातन

कोमल भाव की सरस सरिता ,निज चेतना निज प्रेयसी .

मंथर कभी तीर्व कभी ,होती है चंचल सी गति .

निज प्रेयसी निज चेतना ;

प्रथम प्रेम का प्रथम पल्लव ,पल्लवित कुसमित प्रेम अविलम्बित .

निज धारणा निज चेतना ,प्रखर गुंजन से गुंजित ,

वल्लरी प्रेम कुसुम सुरभित ,अमर प्रेम की सी थाती .

प्रेम दीप की वो बाती;निज चेतना प्रिय… Continue

Added by DEEP ZIRVI on October 7, 2010 at 8:09pm — No Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
6 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service