माँ ....
मैं तुम्हें खोज लूँगा
तुम यहीं कहीं हो
मेरे आस -पास .... ॥
आपकी अस्थियां
प्रवाहित कर दी थी मैंने
गंगा में ॥
भाप बन कर उड़ी
गंगा -जल
और फिर बरस कर
धरती में समा गई
मैं सुबह उठकर
धरती को प्रणाम करता हू
इसे चन्दन समझ
माथे पर तिलक लगाता हू ॥
ऐसा कर
आपका
प्यार और वात्सल्य
रोज पा लेता हू .. माँ ॥
-------------बबन पाण्डेय
Added by baban pandey on June 19, 2010 at 6:20am —
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गर्म हवा की तपिश से
उठे ववंडरों ने
उनकी आँखों में धूल झोंक दी
उनके कपडे भी उड़ा ले गयी
वे नंगा हो गए ॥
मगर .....
गर्म खबरों ने
उनको नंगा नहीं किया
क्योकि .... उन्होनें
नोटों की माला से
अपना शारीर ढक रखा था ॥
अब
गर्म खबरों में
गर्म हवा जैसी ताकत कहां ??
Added by baban pandey on June 18, 2010 at 6:56am —
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(१)
शादी ....
समझौते की गाडी मे
स्नेह की सीट पर बैठकर
अंतिम स्टेशन तक
पहुचने की चाह रखने वाले
दो सहयात्री ॥
(२)
गर्लफ्रेंड -बॉय फ्रेंड का प्यार .....
कसमों - वादों की सिलवट पर
लुका -छिपी की नमक के साथ
पिसी गई
मुस्कराहट की चटनी ॥
(३)
पत्नी का प्यार ........
उबड़ -खाबड़ रास्तो पर
रातों को उगने वाला
गंध -विहीन
कैक्टस के फूल
सूघने जैसा ॥
(४)
शाली (पत्नी की छोटी बहन ) का…
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Added by baban pandey on June 18, 2010 at 6:54am —
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समय को पकड़ना
मानों ......
हाथो की हथेलियों से
बने बर्तन में
पानी को ज़मा करना ॥
समय को पकड़ना
मानो ....
समुद्र के किनारे आयी
लहरों को रोकना ॥
समय को पकड़ना
मानो ......
मुट्टी में रेत को
बाँध कर रखना ॥
समय रुकता नहीं
किसी ने सच कहा है
समय पीछे से गंजा होता है ॥
समय के आगे बाल है
चाहो तो , आगे से पकड़ सकते हो ॥
------------बबन पाण्डेय
Added by baban pandey on June 13, 2010 at 6:37am —
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(खुशवंत सिंह का लेख पढने के बाद कि सिक्खों ने पंजाब के समराला शहर में १९४७ में गिरी मस्जिद बनाई ...पर मेंडिया वालो ने इसे समाचार नहीं बनाया .)
कुत्ता ...
जब आदमी को काटे
तो समाचार नहीं बनता
पर ...आदमी
जब कुत्ता को काटे
तो समाचार बन जाता है ॥
जब ..किसी से प्यार से बोलो
तो समाचार नहीं बनता
पर जब बे -अदब से पेश आओ
तो समाचार बन जाता है ॥
शादी की बातें
समाचार नहीं बनती
पर तलाक की हवा भी
समाचार बन जाती है…
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Added by baban pandey on June 13, 2010 at 6:30am —
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(प्रस्तुत कविता हिंदी के विद्वान कवि प० राम दरश मिश्र द्वारा सम्पादित पत्रिका ' नवान्न ' के द्वितीय अंक में प्रकाशित है, मेरी इस कविता को उन्होनें गंभीर कविता का रूप दिया था )
न तो ---
मेरे पास
तुम्हारे पास
उसके पास
एक बोरसी है
न उपले है
न मिटटी का तेल
और न दियासलाई
ताकि आग लगाकर हुक्का भर सकें ॥
और न कोई हुक्का भरने की कोशिश में है ।
सब इंतज़ार में है
कोई आएगा ?
और हुक्का भर कर देगा ।
आज !
हर कोई
पीना… Continue
Added by baban pandey on June 12, 2010 at 5:53am —
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(मित्रो , मैं लगातार मानव -मूल्यों में हो हरास के ऊपर लिखते जा रहा हू , प्रेम सम्बन्धी कविताये बनाना मेरे लिए कठिन कार्य है ...प्रस्तुत है एक और कविता ...आशा है आपका समर्थन मिलता रहेगा ॥)
चीर चुराना (चीर -हरण ) तो
हम महाभारत काल से जानते है ॥
बिजली की चोरी
मेरा शगल है ॥
इन्कम -टैक्स की चोरी
आम बात है ॥
बनिए द्वारा तौल की चोरी में
हर्ज़ क्या है ॥
परीछा में चोरी
लड़के -लडकियों का हक है ॥
रचनाये…
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Added by baban pandey on June 11, 2010 at 8:24am —
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जिन आँखों में देखा था
प्यार का सागर
उसी में तलाक का तूफान देख
हैरान है आँखे ॥
जिन आँखों में देखा था
विस्वास का दरिया
उसी में बेरुखी देख
परेशान है आँखे ॥
जिन आँखों ने देखी थी
सच की किताब
उसी में झूठ का पुलिंदा देख
बेजुवान है आँखे ॥
घर लौट आओ , मेरे दोस्त
जंगलो में अब बहुत हो चूका
माँ का बेटे के वियोग में
लहू -लुहान है आँखे ॥
जिन आँखों ने देखे थे
घूँघट में चेहरा
नंगे हुस्न की तारीफ़…
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Added by baban pandey on June 11, 2010 at 5:45am —
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कई बार झूला हुं
सावन के झूले में
कई बार झूला हू
यादों के झूले में
और तेरी बाहों के झूले में भी
कई बार झूला हू मैं ॥
पर अब ये झूले
कोई गर्मी नहीं देती
कई झूले है
झूलने को अब मेरे पास
धर्म के झूले में झुलना
मेरी नियति है
बातों और वादों के
झूले में झुलना
हमारी दिनचर्या में है ॥
हमारे नेता हमें
झुलाते है ...रोलर -कोस्टर के
झूले में ॥
त्रिया -चरित के झूले में झुलना
एक रोज नए अनुभव से गुजरना है…
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Added by baban pandey on June 10, 2010 at 11:56am —
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आदमी....
कभी बाघ बन दहाड़ता है
कभी कुत्ता बन लड़ता है
कभी गिद्ध बन मांस ग्रहण करता है
तो कभी
गीदर बन भाग खड़ा होता है
कभी गिरगिट की तरह रंग बदलता है
आदमी.....
कभी धर्म के लिए स्वं मरता है
कभी दूसरों को मारता है / काटता है
आदमी ......
कभी देश बाटता है
कभी जाती बाटता है
कभी भाषा बाटता है
तो कभी एकता का पाठ पढ़ाता है
आदमी ....
कभी कंजूस बन पैसे के लिए मरता है
कभी दानी बन पैसे लुटाता है
कभी…
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Added by baban pandey on June 9, 2010 at 3:00pm —
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टेबल घडी की टनटनाहत से
नहीं उठता वह ।
डोन्ट ब्रेक माय हर्ट
मोबाइल के रिंग -टोन से
उसकी नींद टूटती है ....
उंघते हुए बाथ रूम की ओर
रुख किया उसने
पाश्चात्य शैली के टोइलेट पर बैठ कर
वह ब्रुश भी कर लेता है ॥
डेली सेव करना उसकी आदत में है
जबकि उसके माँ ने कहा था
मंगल और गुरुवार को सेव मत करना ....
कैसे न करे वह
कम्पनी का फरमान
ऊपर से गर्ल फ्रेंड की चाहत भी
जैसे -तैसे
ब्रेड पर लगाया क्रीम…
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Added by baban pandey on June 9, 2010 at 6:31am —
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पुल नहीं , तो वोट नहीं
रोड नहीं ,तो वोट नहीं ॥
सुनकर वोटरों की ये चिल्लाहट
बढ़ी नेताजी की घबराहट ॥
उड़ चले वो
वोटरों के गाँव
पहले खेला जाती का दावँ
जब वोटर न हुए
टस से मस
तब उन्होनें सवाल दागा
कितने लोगों के पास है
ट्रक्टर / ट्रक और बस
वोटर थे सब चुप ॥
फिर बोले .....
तब रोड का क्या फायदा
ऊँची जाती वालो के पास है
ट्रक्टर , ट्रक और बस
उनके ट्रक का चक्का टूटने दो
थोडा उनको और गरीब होने दो
फिर…
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Added by baban pandey on June 8, 2010 at 6:10pm —
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(जातिगत जनगणना को लेकर लिए गए फैसले के ऊपर )
अरे यार !!
कान में मत फुस्फुसाओ
खुलकर जाती पूछो ।
सरकारी लाइसेन्स ही मिल गया ..
.संसद के अन्दर
नेताओ की मुहर लग गयी यार ...
जातिगत जनगणना को लेकर ॥
अब इंटरवेऊ में
नहीं पूछा जाएगा
आपके रिसर्च का ज्ञान
भोतिक और रसायन विज्ञानं ॥
आपसे पूछा जाएगा ....
आपके जातिगत पेशे
कैसे दुहते हो गाय
कैसे कराते हो पूजा
कैसे बनाते हो जूता ...
पुनः लौटो यार
मनुवाद की ओर…
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Added by baban pandey on June 7, 2010 at 8:01am —
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आसमान को
कौन छुना नहीं चाहता , मेरे दोस्त !!
तारे तोड़ने की ईच्छा
किसे नहीं होती ॥
परन्तु , आसमान छुने पर
दंभ मत भरना , मेरे दोस्त !!
हिमालय भी दंभ भरता था
अपनी ऊँचाई का .....
न जाने कितनी बार
तोड़ा गया उसका दंभ ॥
पहाड़ के शिखरों पर रखे
पथ्थरो की बिसात ही क्या
किसी भी दिन
कुचल दिए जायेगे
सडकों के नीचे
बड़े -बड़े मशीनों द्वारा ॥
और अंत में ....
यह भी याद रखना , मेरे दोस्त
दरखतो की उपरी…
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Added by baban pandey on June 6, 2010 at 9:54pm —
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ब्लॉग के शीर्षक से आपको लगता होगा कि यह कहानी कोई खाने - खिलाने से सम्बंधित है ..मगर नहीं ..यह कहानी ..न्याय से सम्बंधित है ..यह कहानी मुझे पटना विश्वविद्यालय के एक प्रोफ़ेसर ने सुनाया था ..
प्रोफ़ेसर साहब एक बार भ्रमण के लिए रूस गए थे ... वहां उन्होंने नयायालय में हो रहे प्रकिरिया को देखना चाहा... वे एक न्यायलय में गए . एक नौकर ने अपने मालिक के घर से ४०० रुब्बल कि चोरी कर ली .थी . मालिक ने उस पर केश दर्ज करबा दिया था ..
जज ने नौकर से पूछा.." तुमने चोरी क्यों की"
नौकर ने कहा "…
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Added by baban pandey on June 6, 2010 at 12:18pm —
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पुल .....
अर्थात ...मिलन
दो गांवों का /दो देशों का
और
नदियों को लांघने का एक संरचना ॥
रिश्तों का पुल बनता है
जब दो परिवार
शादी के बंधन में बंधते है ।
कुछ दिनों पहले पढ़ा था
एक तलाक शुदा दंपत्ति के
१२ वर्षीय पुत्र ने
माता -पिता के दिलो को जोड़ा
पुल बनकर ॥
प्रजातंत्र में भी
पुल बनाया जाता है
नेताओ और वोटरों के बीच
भाषणों का / आश्वासनों का
जो तुरंत ही ढह जाता है ॥
दरअसल…
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Added by baban pandey on June 6, 2010 at 11:50am —
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वैसे तो
खुटे से बंधी चरती गाय
और प्रजातंत्र में
कोई समानता नहीं दिखती ॥
मगर
थोडा गौर फरमायें
तीन महत्वपूर्ण बिंदु ....
खूंटा , गाय और रस्सी ॥
खूंटा मतलब संबिधान
अपनी जगह स्थिर
गाय मतलब नेता
चारों ओर चरने वाला
और रस्सी यानी वोटर
इस रस्सी को जब चाहो
तोड़ दो , मोड़ दो , काट दो
है ना समानता ॥
क्या हम सब रस्सी
आपस में मिलकर .....
गाय को नियंत्रित नहीं कर सकते ॥
Added by baban pandey on June 1, 2010 at 8:03pm —
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मैं
समुद्र की उन लहरों की तरह नहीं
जो बार -बार गिरती है / उठती है
और
किनारे तक आते - आते
दम तोड़ देती है ॥
मैं
उन घोड़ो की तरह भी नहीं
जिसे
चश्मा लगा देने पर
सुखी घास भी
हरी दूब समझ खा लेते हैं ॥
मैं
उन दिहाड़ी मजदूरों की तरह भी नहीं
जो १०० रुपया और एक पेट खाना पर
बुला लिए जाते है ....
राजनेताओ की रैलियो में
भीड़ जुटाने के लिए ॥
मैं तो चिंगारी हु मेरे दोस्त !!
सबके दिल में रहता…
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Added by baban pandey on June 1, 2010 at 12:49pm —
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