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जिन आँखों में देखा था
प्यार का सागर
उसी में तलाक का तूफान देख
हैरान है आँखे ॥

जिन आँखों में देखा था
विस्वास का दरिया
उसी में बेरुखी देख
परेशान है आँखे ॥

जिन आँखों ने देखी थी
सच की किताब
उसी में झूठ का पुलिंदा देख
बेजुवान है आँखे ॥

घर लौट आओ , मेरे दोस्त
जंगलो में अब बहुत हो चूका
माँ का बेटे के वियोग में
लहू -लुहान है आँखे ॥

जिन आँखों ने देखे थे
घूँघट में चेहरा
नंगे हुस्न की तारीफ़ का
तमाशाबीन है आँखे ॥

जिन आँखों ने देखी थी
अमन -चैन की बगिया
खून की नदियां देख
गमगीन है आँखे ॥

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Comment

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Comment by Nilesh kumar on June 14, 2010 at 12:36pm
baban bhaiya ka likhale ba aakh se aasu aei gail
Comment by SUMAN KUMAR SINGH on June 12, 2010 at 5:07pm
bahut hi barhiya rachana hai
Comment by satish mapatpuri on June 11, 2010 at 4:16pm
घर लौट आओ , मेरे दोस्त
जंगलो में अब बहुत हो चूका
माँ का बेटे के वियोग में
लहू -लुहान है आँखे ॥
मर्मस्पर्शी रचना, साधुवाद,

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 11, 2010 at 9:42am
जिन आँखों ने देखी थी
सच की किताब
उसी में झूठ का पुलिंदा देख
बेजुवान है आँखे ॥

इन आखो को किस किस मंज़र से गुज़रना पड़ता है, ये तो आखे ही जान पाती है, सुंदर रचना है बबन भाई, बधाई कबूल कीजिये इस खूबसूरत रचना के लिये,

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