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दंभ से बचो , मेरे दोस्त !!

आसमान को
कौन छुना नहीं चाहता , मेरे दोस्त !!
तारे तोड़ने की ईच्छा
किसे नहीं होती ॥

परन्तु , आसमान छुने पर
दंभ मत भरना , मेरे दोस्त !!

हिमालय भी दंभ भरता था
अपनी ऊँचाई का .....
न जाने कितनी बार
तोड़ा गया उसका दंभ ॥

पहाड़ के शिखरों पर रखे
पथ्थरो की बिसात ही क्या
किसी भी दिन
कुचल दिए जायेगे
सडकों के नीचे
बड़े -बड़े मशीनों द्वारा ॥

और अंत में ....
यह भी याद रखना , मेरे दोस्त
दरखतो की उपरी टहनियां
दंभ भरती थी
मगर जब , आंधी चली
उपरी टहनियां ही
टूट कर सबसे पहले ज़मीन पर आयी ॥

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Comment

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 8, 2010 at 10:31am
Bahut badhiya dhang se is sunder kavita ke madhyam se apna sandesh diya hai apne, meri badhayi sweekar karein.
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on June 7, 2010 at 6:50pm
हिमालय भी दंभ भरता था
अपनी ऊँचाई का .....
न जाने कितनी बार
तोड़ा गया उसका दंभ ॥

bahut hi khubsurat aur gyanprad rachna hai baban jee.....aage bhi aisi hi rachna ka intezaar rahega
Comment by Admin on June 7, 2010 at 12:38pm
पहाड़ के शिखरों पर रखे
पथ्थरो की बिसात ही क्या
किसी भी दिन
कुचल दिए जायेगे
सडकों के नीचे
बड़े -बड़े मशीनों द्वारा ,

खुबसूरत कविता, शिक्षाप्रद रचना, ससक्त अभिव्यक्ति, विचारो मे तारतम्यता, सब कुछ तो है इस रचना मे, बहुत ही सुंदर , धन्यबाद,

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 6, 2010 at 10:48pm
यह भी याद रखना , मेरे दोस्त
दरखतो की उपरी टहनियां
दंभ भरती थी
मगर जब , आंधी चली
उपरी टहनियां ही
टूट कर सबसे पहले ज़मीन पर आयी

वाह बबन भाई वाह, क्या आपने लिखा है, बिल्कुल सही कहा है आपने, घमंड भगवान का भोजन होता है, बडो बडो का घमंड टूटने मे देर ही लगती फिर हमारी आपकी बिसात ही क्या है, बहुत ही बढ़िया लिखा है, बहुत बहुत धन्यबाद इस पोस्ट के लिये ,

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