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अब गोरैया कहां जायेगी

(महानगरों की आवास समस्या पर ...)
पहले
घर के आँगन में भी
बना लेती थी
गोरैया अपना घोसला ॥

दाने की खोज में
भूलकर/भटककर
पहुँच गयी एक गोरैया
महानगर में ॥

पेड़ नहीं थे वहां
कहां बनाती अपना घोसला ॥

बिजली का खम्भा ही
एकमात्र विकल्प था
तिनका -तिनका जोड़ कर
बनाया अपना घोसला ॥

फिर एक दिन
बिजली कर्मियों ने
नष्ट कर दिया उसका घोसला ....
अंडे फूट गए ॥
अब गोरैया कहां जायेगी ??
------------बबन पाण्डेय

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 10, 2010 at 10:47pm
Babban bhaiya dhirey dhirey gauraya bilupt hoti jaa rahi hai , aap ney apni chinta jaahir kar di hai ees rachna key madhyam sey, achhi rachna hai dhanyavaad,
Comment by Neelam Upadhyaya on June 28, 2010 at 3:01pm
बहुत ही सुन्दर रचना है । कविता के माध्यम से एक ज्वलंत समस्या पर ध्यान आकर्षित किया है । हमें अवश्य ही इन सब बातों पर ध्यान देना चाहिए जो हमारे पर्यावरण का संतुलत बनाए रखने में अहम् स्थान रखते हैं ।

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 28, 2010 at 10:54am
बहुत सुंदर कविता कही है और बड़ा ही अहम सवाल उठाया है आपने इस रचना के माध्यम से बबन जी ! आप ने बिलकुल दुरुस्त फ़रमाया कि आज की अंधी आधुनिकता ने इस प्यारे और नन्हे से जीव को सब से ज्यादा नुकसान पहुंचाया है !
Comment by baban pandey on June 26, 2010 at 6:26am
dhanybad rana bhai ..

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on June 26, 2010 at 12:15am
एक गंभीर विषय.......आवास की समस्या बढ़ती जा रही है....भूमि उतनी ही है उस पर हक जताने वाले बढ़ते जा रहे है....बहुमंजिला इमारतों ने आंगन की संस्कृति पर कुठाराघात किया है..यहीं से संयुक्त परिवार की भावना को भी ठेस लगी है......आपने गौरैया का प्रतीक लेकर सधी बात ह्रदय तक पहुंचा दी है...बबन भैया .आप बधाई के पत्र हैं...

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