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कितना बदले है हम ?

टेबल घडी की टनटनाहत से
नहीं उठता वह ।
डोन्ट ब्रेक माय हर्ट
मोबाइल के रिंग -टोन से
उसकी नींद टूटती है ....

उंघते हुए बाथ रूम की ओर
रुख किया उसने
पाश्चात्य शैली के टोइलेट पर बैठ कर
वह ब्रुश भी कर लेता है ॥

डेली सेव करना उसकी आदत में है
जबकि उसके माँ ने कहा था
मंगल और गुरुवार को सेव मत करना ....

कैसे न करे वह
कम्पनी का फरमान
ऊपर से गर्ल फ्रेंड की चाहत भी

जैसे -तैसे
ब्रेड पर लगाया क्रीम ...
गटागट किया ......
फिर एक गोली खाया
यह गोली दिनभर उसे
सरदर्द से दूर रखेगा ॥

अख़बार भी देखना
तो सिर्फ टेंडर की सूचना
फिर शुरू हो गया
मैनेज करने की तिकड़म की जद्दोजेहद .....

अरे ऑफिस क्या है ...
कभी ट्रेन तो कभी प्लेन

शाम को फ़ोन किया
सारी,...नहीं आ पाउगा
ओ के .....मैं भी नहीं आ पाऊँगी ..बाय
घर एक , मगर रास्ते अलग - अलग

चलते -चलते
लैप -टॉप पर ही चैत्तिंग
कुछ कम मोबाइल से
कम्पनी ने दिया है ....
साथ ही हितायत भी
नो स्विच ऑफ .......

शाम का खाना
किसी रेस्टोरेंट में
वियर की दो बोतल
गटक गया
शायद नींद आ सके ॥

फिर एक दिन
माँ के निधन की खबर मिली
ओल्ड -एज होम में रहती थी वह
पोता बोर्डिंग स्कूल में था
किराये की कोख का पोता
बहु ने गर्भवती होने से मना किया था .....

ऑफिस में फ़ोन किया
सर !..माँ मर गयी है
मुनिस्पैलिटी वाले को बुलाया है
डेड बॉडी उठते ही आ जाउगा
दाह-संस्कार के बिल का पेमेंट शाम को करुगा
आधे घंटे लेट होगी ॥

यह कह .....
उसने अपना मोबाइल बंद कर लिया
आधे घंटे के लिए
शायद ,...मृत -आत्मा को शांति आ जाय ॥

कितना बदले है हम ....
१०%, २० % या .........??/

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Comment by Admin on June 9, 2010 at 2:05pm
बबन भाई बहुत ही दूरगामी दृष्टि है आपकी concrete के जंगल मे रहने वाला मनुष्य धीरे धीरे पासाड़ बनते जा रहा है, प्रधान संपादक महोदय ( श्री योगराज प्रभाकर ) जी ने बहुत ही सही कहा है, की आज की Rat race ने इंसान को कैसे एक ह्रदय विहीन रोबोट में परिवर्तित कर दिया है उसको बहुत सुन्दरता से चित्रित किया है आपने ! "किराये की कोख का पोता", "माँ के दाह-संस्कार का बिल", "बतौर श्रधान्जली आधा घंटा फ़ोन को स्विच ऑफ़ करना" वाकई बहुत ही अच्छी रचना है,

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 9, 2010 at 1:29pm
बबन भाई कमाल कर जाते हैं आप भी अक्सर, आज की Rat race ने इंसान को कैसे एक ह्रदय विहीन रोबोट में परिवर्तित कर दिया है उसको बहुत सुन्दरता से चित्रित किया है आपने ! "किराये की कोख का पोता", "माँ के दाह-संस्कार का बिल", "बतौर श्रधान्जली आधा घंटा फ़ोन को स्विच ऑफ़ करना" - हद है बबन भाई हद ! इंसान शायद इतना बदल गया है कि कोई भी प्रतिशतता बहुत छोटी पड़ जाती है ! अंतर्मन को झिंझोड़ कर रख देने वाली इस रचना के लिए मुबारकबाद देता हूँ आपको दिल से ! कहीं कहीं टाईपिंग की गलतियां हैं - ज़रा देख कर सुधार लीजियेगा !
Comment by aleem azmi on June 9, 2010 at 12:57pm
waah baban bhai lajawaab ...umda bemisaal ..bahut achcha likhte hai aap
likhte rahiyeeeeeeeeee
shukriya aapka
Comment by baban pandey on June 9, 2010 at 11:46am
गणेश भाई , अभी सब कुछ नहीं खोल पाया हू....अगली रचना में रही सही कसर पूरी कर दूंगा ...पढ़ते रहिये ...कमेन्ट लिखते रहिये ...आपका मित्र

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on June 9, 2010 at 9:08am
क्या बात है बबन भैया ...
भिगो भिगो के मारते हो........नेट पर चैटिंग......साथ में डेटिंग.....माँ के मरने पर भी सेटिंग..........??????????????

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 9, 2010 at 7:59am
यह कह .....
उसने अपना मोबाइल बंद कर लिया
आधे घंटे के लिए
शायद ,...मृत -आत्मा को शांति आ जाय ॥

बबन भैया आप तो हाई प्रोफाइल लोगो की कलई खोल दी है, आज वो कहते है की वो मोडर्न हो गये है, मैं तो कहता हू की एक कंप्यूटर operated मशीन हो गये है जहा अपना दिल, दिमाग, भावना ,प्यार-मुहबत , अपनापन आदि का कोई जगह नहीं है, मशीन जब तक चला ठीक नहीं तो कबाड़ खाना मे डाल दिया जायेगा, यदि यही है आधुनिकता की पहचान तो हमे नहीं बनना आधुनिक , बहुत ही बढ़िया रचना है बबन भईया , एक दम आँख खोलने वाली है, इस शानदार रचना के लिये मेरी बधाई स्वीकार करे ,

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