वृक्ष की जड़े मांगती धूप
धूप मांगती बरसा
घर से बाहर , मेरे साजन
सावन में मन तरसा ॥
गोलियां रोज खाती हू
तुम्हारे आने की आस का
गालियां रोज सुनती हू
ननद- ससुर -सास का ॥
देश के दुश्मन तुम भगाओ
मैं जुझू , घर के आँगन से
मेरी गदराई जवानी
कब तक बचेगी , रावण से ॥
पायल की झंकार अब सुनी
गीत नहीं निकलता कंगन से
बुला रही है मुझे गोपियां
अब मथुरा -वृन्दावन से ॥
जोगन बन मैं भाग चलुगी
तुम देश -देश को…
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Added by baban pandey on July 10, 2010 at 7:42am —
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समर्थन मूल्य पर अनाज बेचकर , किसान हुए बेहाल
उत्पादों का स्वं मूल्य लगाकर , पूंजीपति हुए निहाल ॥
अरहर दाल ९० रूपये किलो , बोल- बोलकर लोग खूब चिल्लाते
५ रूपये के टैबलेट को , पूंजीपति १०० रूपये का मूल्य दिखाते ॥
मंहगाई का दीया दिखाकर , पूंजीपति खूब कमाते
कड़े -कड़े नोटों की माला , नेताओं को पहनाते ॥
चुनाव के वक़्त दिया था , नेताओं को चंदा
जी भर कर दाम बढाओ , कर लो गोरखधंधा ॥
दवा, सीमेंट और लोहा पर , सरकार की कुछ नहीं चलती
मंहगाई…
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Added by baban pandey on July 9, 2010 at 8:22am —
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ताजे फल , ताज़ी सब्जियां
बनाती है , स्वस्थ खून
ताजे विचार , ताज़ी सोच
बनाती है , स्वस्थ रिश्ते ॥
स्वस्थ रिश्ते
चढ़ाती है सीढिया
सफलता की ॥
और फिर
चंचल बनते है हम
लक्ष्मी बरसने लगती है ॥
फिर एक दिन ....
हमें जाना होता है
शाश्वत सत्य की दुनियां में
साथ नहीं जाती लक्ष्मी ॥
दुनियां .....
उसे और लक्ष्मी को भूल जाती है
याद रहती है
सिर्फ ...उसके द्वारा बनाये गए
स्वस्थ रिश्ते ॥
Added by baban pandey on July 9, 2010 at 7:48am —
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महानगर में
सड़क के किनारे खड़ा था
१२ रूपये प्रति दर्जन की दर से
केले लेने पर अड़ा था ॥
कार से एक सज्जन आये
दुकानदार ने
२५ रूपये प्रति दर्जन की दर से
सब केले बेच दिए .... ॥
मैं बेवश था
सोच रहा था ....
कहां है महँगाई
खोज ही लिया मैं
महँगाई मेरे पर्स में रहती है
और जब
पर्स नोटों से भरी हो
मंहगाई पास भी नहीं फटकती
Added by baban pandey on July 8, 2010 at 10:43am —
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वे इटे थापते है
बाल-बच्चो सहित
वर्षा ने कहर बरपाया
पानी ...
सर्वत्र पानी
वे वेरोजगार है आज से ॥
इधर सरकार का बेरोजगारी
दूर करने की योजना
मनरेगा भी बंद हो गया
२८ जून के बाद
हर साल की तरह ॥
मगर उनके बच्चो का
सुनहला दिन लौट आया है
केकड़ा पकड़ना
और ....दिन भर
खेतों में /तालाबों में
मछली मारना ॥
शाम को
माँ को मछली देना
और रात के खाने में
मछली -चावल का इंतज़ार॥
उन…
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Added by baban pandey on July 7, 2010 at 8:02pm —
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जयेष्ट की गर्मी से झुलसी
धरती को
वर्षा की पहली बूंदों से
ख़ुशी मिली
मानो .....
लंका दहन के बाद
हनुमान जी कूदें हो
समुद्र में ॥
सूर्य के अंगारे झेल रही
वर्षा की पहली बूंदों से
किसानों को
ख़ुशी मिली
मानो .....
रावण -वध के बाद
रामचंद्र जानकी सहित
लौटे हो अयोध्या ॥
वर्षा की पहली बूंदें
धरती पर जैसे गिरी
माँ ने .....
गाय के गोबर से बने
सारे उपले
घर के अन्दर कर ली ॥
वर्षा की…
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Added by baban pandey on July 2, 2010 at 8:31am —
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अपने देश
भारत में .......
जूते पहनने वाले
नंगे पैरों का दर्द सुनाते है ॥
अंगूठा छाप मंत्री
शिक्छा का अलख जागते है ॥
जिनके नौ - दस बच्चे है
परिवार नियोजन का पाठ पढ़ते है ॥
जिन्होनें जंगल साफ़ कर दिए
वही वृक्छारोपन कार्य चलाते है ॥
दिखाते है जो कानून को ठेंगा
वही नया कानून बनाते है ॥
जो पैसे लेते ,चोर से खुद
फिर कैसे चोर पकड़ ले आते है ॥
ऐ ० सी० में रहने वाले
गर्मी की कथा सुनाते है…
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Added by baban pandey on June 27, 2010 at 11:05pm —
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(एक मजदूर की सोच )
ना मैं कविता जानता हु ,ना ही ग़ज़ल जानता हु
जिस झोपड़ी में रहता हु उसे महल मानता हु ॥
ना मैं राम जानता हू ,ना मैं रहीम जानता हू
माँ -बाप ने जो फरमाया ,फरमान मानता हू ॥
जिस इंसान ने इंसान को सताया , उसे हैवान मानता हू
जो इंसान की कद्र करे , मैं उसे कद्रदान मानता हू ॥
आशाओ के खंडहर में ,कब तक रहोगे दिल थामके
चल कुदाल उठा ,मैं मेहनत को अपना ईमान मानता हू ॥
Added by baban pandey on June 27, 2010 at 5:49pm —
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सुनाएये कोई शोक -गीत
आज मन उदास है ॥
भरिये कोई रंग
आज मन , बेमन है ॥
फूलों का रंग भी फीका
भौरे भी दहशतज़र्द है
सब जगह उजड़ा हुआ चमन है
भरिये कोई रंग
आज मन , बेमन है ॥
चलो ,खोलता हू वे सभी परतें
जो पूरी न सकी तुम्हारी हसरतें
किससे कहू , किससे वयां करूं
आज खोता हुआ हर बचपन है
भरिये कोई रंग
आज मन , बेमन है ॥
कुछ चंदे दे दो भाई
महंगाई की मार से
मरने वालों के लिए
खरीदना आज कफ़न है
भरिये…
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Added by baban pandey on June 27, 2010 at 12:53pm —
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गीत लिखने का दुः साहस किया हू ,आप ही लोग बताएं कैसा लगा । पति -मिलन के पहले की स्त्रियोचित कल्पना , मगर उनके लिए नहीं जिनका लव -आफेयर चल रहा है
गीत -1
आज सजने की बेला है , सज लू सजन
मन के साथ झूमे है, धरा और गगन ॥
आ रही है , ये ख़ुशबू कहां से कहुं
गा रही है , ये लज्जा कहां से कहुं
गर जानते हो तुम तो , बताओ सजन
मन के साथ झूमे है, धरा और गगन ॥
पलकों की छावं में हू , कबसे बिठाये तुम्हें
जुल्फों की छाया भी ,कबसे निहारे…
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Added by baban pandey on June 27, 2010 at 7:52am —
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मेरे पास
एक महगाई यन्त्र है
यन्त्र क्या , मन्त्र है ॥
बहू-बेटियों से कहें
भारतीय संस्कृति को धयान में रखें
सोमबार /मंगलवार /रविबार को
उपवास करे
भगवन भी खुश
पति भी खुश
और होनेवाले समधी भी खुश
स्लिम बॉडी की बहू मिलेगी ॥
फिर ,
महंगाई, हमलोगों की क्या
हमलोग महगांई की कमर तोड़ देंगे ॥
कुछ दिनों तक ऐसा करेगें
हमलोग
सोमालिया देश के वासी जैसे दिखेगें
संयुक्त राष्ट्र का ध्यान टूटेगा
मुफ्त का गेहू…
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Added by baban pandey on June 26, 2010 at 9:04pm —
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(महानगरों की आवास समस्या पर ...)
पहले
घर के आँगन में भी
बना लेती थी
गोरैया अपना घोसला ॥
दाने की खोज में
भूलकर/भटककर
पहुँच गयी एक गोरैया
महानगर में ॥
पेड़ नहीं थे वहां
कहां बनाती अपना घोसला ॥
बिजली का खम्भा ही
एकमात्र विकल्प था
तिनका -तिनका जोड़ कर
बनाया अपना घोसला ॥
फिर एक दिन
बिजली कर्मियों ने
नष्ट कर दिया उसका घोसला ....
अंडे फूट गए ॥
अब गोरैया कहां जायेगी…
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Added by baban pandey on June 25, 2010 at 11:00pm —
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बनते -बिगड़ते
संबंधों की आपा-धापी में
मैं खो जाता हू ॥
हड़बड़ी के चक्कर में
प्रेम खोजने के बदले
नफरत खोज लेता हू ॥
रिंग पहनाने को
शादी में बदल पाता
उससे पहले तलाक खोज लेता हू ॥
इसलिए .....
मैं अब
जिंदगी के रेस में
खरगोश नहीं ,
कछुआ बन कर ही
मंजिल तक जाना चाहता हू ॥
Added by baban pandey on June 25, 2010 at 9:20am —
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तुम्हारी बातें
एक -एक शब्द जैसे ॥
श्वासों का आना -जाना
किताब के पन्ने
पलटने जैसा ॥
तुम्हारी मुस्कराहट
कविता पढने जैसी ॥
तुम्हारी हँसी
ग़ज़ल की पंग्तिया ॥
तुम्हारी उम्र का
हर गुजरा वक़्त
एक अध्याय समाप्त होने जैसा ॥
तुम्हें समझना
एक समझ न आने वाली
रहस्यमई कहानी जैसा ॥
सचमुच, तुम्हें पढना
एक किताब पढने जैसा ॥
हे ! प्रिय !!!
मैं पढ़ूंगा तुम्हें जीवन…
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Added by baban pandey on June 25, 2010 at 7:45am —
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मेरे पापा ने
माँ का गर्भ जांच कराया
सांप सूंघ गया उन्हें
शुक्र हो डाक्टर का
उन्होंने कहा ...
"एक ही बार माँ बन सकती है
आपकी पत्नी "
भूर्ण -हत्या से बच गयी मैं ॥
मेरी माँ ने
सिल्क साडी पहननी छोड़ दी
शौक -मौज फुर्र्र
मेरे विवाह की चिंता में
जन्म से ही ॥
पढाई के दौरान
प्यार हो गया एक लड़के से
शादी का लालच दिया उसने
माँ -पिता को खेत न बेचना पड़े
दहेज़ के लिए
यह सोच , भाग गयी उसके साथ…
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Added by baban pandey on June 24, 2010 at 4:00pm —
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मित्रो, यह कोई कविता नहीं , बल्कि कविता के रूप में नदियों से होने वाले खतरे के प्रति मित्रो को आगाह करती है ..शायद आपको अच्छी लगे ...चुकी मैं इस छेत्र से जुड़ा हू ..तो लिखना मेरा फ़र्ज़ है ..
सर्पीली रूप में बहना
मेरी नियति है ॥
बाँधने की कोशिस में
उग्र हो जाती हू ॥
किनारे का बाँध तोड़
निकल जाना चाहती हू ...
फिर पूछो मत ...
कई सभ्यता /संस्कृतियों के
विनाश का कारण बन जाउगी ॥
बहना चाहती हू
जैसे , उन्मुक्त उड़ना चाहती है
पिंजरे का…
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Added by baban pandey on June 24, 2010 at 10:48am —
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मुझे हसाना तो नहीं आता
मगर, रुलाना आता है ..दोस्त !
मुझे स्तुति -गान नहीं आता
मगर ,निंदा -गान आता है ...दोस्त !
मुझे तैरना नहीं आता
मगर , डुबाना आता है ....दोस्त !
मुझे धोती पहनाना नहीं आता
मगर , नंगा करना आता है ...दोस्त !
मैं गाली नहीं सुन सकता
मगर ,मगर गाली देना आता है ...दोस्त !
मुझे लिखना नहीं आता
मगर ,गलतियां निकाल लेता हू ...दोस्त !
सच में ,
मैं जानता कुछ नहीं ...मेरे दोस्त
फिर भी ,…
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Added by baban pandey on June 23, 2010 at 3:35pm —
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भारत
कुत्तों के भौकने की
इधर -उधर सूघने की
एक अच्छी जगह ॥
गाहे -बगाहे
समय -कुसमय
चोर देखकर भौकना
और कभी -कभी
बिना चोर देखे
तेजी से भौकना ॥
गज़ब चरित्र है इनका ...
साधारण जनता
इनकी मानसिकता नहीं समझ सकते ॥
कुत्तों की सर्वोच्च संस्था
कहती है .....
भौकने की यह प्रवृति
परिपक्वता को दर्शाता है ॥
Added by baban pandey on June 21, 2010 at 1:59pm —
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तुम्हें दिखाउगा आइना, क्योकि वह केवल सच बोलता है
उनके लिए कौन लडेगा , जो केवल अपना हक मांगता है ॥
क्या मेरा इधर -उधर झाकना , तुम्हें नागबार लगता है
तो खुद ही बता दो वे बातें , जो हमें ख़राब लगता है ॥
सूरज तो निकलेगा एक दिन ,बादलों की उम्र ही क्या है
सच्चाई वय़ा करेंगे वे लोग , जिन्हें आज डर लगता है ॥
वो परेशां है इसलिए क़ि उनकी झूठ पकड़ ली गई है
इधर देखें ,उधर देंखें वे कही देखें , अब शर्म लगता है ॥
वे नंगे थे शुरू से ही ,नंगापन…
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Added by baban pandey on June 21, 2010 at 6:10am —
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हर जगह
छलांग नहीं लगाया जा सकता ॥
मंजिल तक
पहुचने के लिए
सीढियों की ज़रूरत
तो पड़ती ही है ॥
इन सीढियों को
हम जितनी
मेहनत /श्रम /लगन से बनायेगें ....
ये सीढिया ...
उतनी जल्दी ही
हमें अपनी मंजिल तक
पंहुचा देगी ॥
----------बबन पाण्डेय
Added by baban pandey on June 20, 2010 at 9:56am —
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