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गीत लिखने का दुः साहस किया हू ,आप ही लोग बताएं कैसा लगा । पति -मिलन के पहले की स्त्रियोचित कल्पना , मगर उनके लिए नहीं जिनका लव -आफेयर चल रहा है


गीत -1
आज सजने की बेला है , सज लू सजन
मन के साथ झूमे है, धरा और गगन ॥

आ रही है , ये ख़ुशबू कहां से कहुं
गा रही है , ये लज्जा कहां से कहुं
गर जानते हो तुम तो , बताओ सजन
मन के साथ झूमे है, धरा और गगन ॥

पलकों की छावं में हू , कबसे बिठाये तुम्हें
जुल्फों की छाया भी ,कबसे निहारे तुम्हें
नाच रहा है मन मेरा , जैसे हिरन
मन के साथ झूमे है, धरा और गगन ॥

भूल गयी मैं अपना अतीत ,हो चली मैं अब तुम्हारे करीब
पुलकित है मेरा रोम -रोम ,आज जागा है मेरा नसीब
कड़कती है बिजली , जैसे हो सूर्य -किरण
मन के साथ झूमे है, धरा और गगन ॥

गोद भर देना मेरी , कहलाउगी माँ
नाचूगी, गाउगी , बाँधुगी समां
इतराएगा मन मेरा ,जैसे इठलाती पवन
मन के साथ झूमे है, धरा और गगन ॥
----------------बबन पाण्डेय

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Comment

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 28, 2010 at 12:08pm
बबन भाई, बहुत अच्छा गीत लिखा है आपने, दिल से बधाई देता हूँ ! काफी जगह टाईपिंग की गलतियां थीं, उनको दुरुस्त करके आपका गीत नीचे लिख दिया है ! अगर मुनासिब समझें तो ब्लॉग एडिट करने इसको कापी पेस्ट कर लीजिएगा !


//आज सजने की बेला है , सज लूँ सजन
मन के साथ झूमे है, धरा और गगन ॥

आ रही है , ये ख़ुशबू कहां से कहूँ
गा रही है , ये लज्जा कहां से कहूँ
गर जानते हो तुम तो , बताओ सजन
मन के साथ झूमे है, धरा और गगन ॥

पलकों की छाँव में हूँ , कबसे बिठाये तुम्हें
जुल्फों की छाया भी ,कबसे निहारे तुम्हें
नाच रहा है मन मेरा , जैसे हिरन
मन के साथ झूमे है, धरा और गगन ॥

भूल गयी मैं अपना अतीत ,हो चली मैं अब तुम्हारे करीब
पुलकित है मेरा रोम -रोम ,आज जागा है मेरा नसीब
कड़कती है बिजली , जैसे हो सूर्य -किरण
मन के साथ झूमे है, धरा और गगन ॥

गोद भर देना मेरी , कहलाऊंगी माँ
नाचूगी, गाउगी , बाँधूंगी समां
इतराएगा मन मेरा ,जैसे इठलाती पवन
मन के साथ झूमे है, धरा और गगन ॥ //

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