212---212---212
दूर कर बदगुमानी मेरी
ख़त्म हो सरगरानी मेरी
मेरे जीवन से तुम क्या गए
खो गई शादमानी मेरी
अब न आएगी ये लौटकर
जा रही है जवानी मेरी
बीती बातों पे ये बारहा
व्यर्थ की नोहा ख़्वानी मेरी
ग़म के दरिया में रक्खा है क्या
भूल जाओ कहानी मेरी
गुल खिलाएगी कोई नया
एक दिन हक़-बयानी मेरी
ऐ मेरे जिस्म ! ऊबा हूँ मैं
अब न कर मेज़बानी मेरी
मौलिक व…
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Added by दिनेश कुमार on October 29, 2017 at 7:14am —
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2122--1212--22
ज़िन्दगी भर सलीब ढ़ोने को
हक़परस्ती है सिर्फ़ रोने को
दिल को पत्थर बना लिया मैंने
ख़्वाब आँखों में फिर पिरोने को
दूर मंज़िल है वक़्त भी कम है
कौन कहता है तुम को सोने को
एक बस वो नहीं हुआ मेरा
क्या नहीं होता वर्ना होने को
किस लिये हैं इन आँखों में आँसू
पास भी क्या था जब कि खोने को
ज़िद नहीं करता अब खिलौनों की
क्या हुआ दिल के इस खिलौने को
दाग़ कुछ ऐसे भी हैं दामन पर
अश्क…
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Added by दिनेश कुमार on October 15, 2017 at 11:56pm —
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2122---1212---112/22
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ख़ुदकुशी बार बार कौन करे
आप का इन्तिज़ार कौन करे
.
आइना टूटने से डरता है
झूट को शर्मसार कौन करे
.
अपना मतलब निकालते हैं सब
बे-ग़रज़ हमसे प्यार कौन करे
.
नाव टूटी है हौसला ग़ायब
ग़म के दरिया को पार कौन करे
.
हम हक़ीक़त से मुँह चुराते हैं
ख़्वाब को तार तार कौन करे
.
उस्तरा बन्दरों के हाथ में है
इन को सर पर सवार कौन करे
.
( मौलिक व अप्रकाशित )
Added by दिनेश कुमार on October 10, 2017 at 5:33am —
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22__22__22__2
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ग़लती कर पछताए कौन
ख़ुद से नज़र मिलाए कौन
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अपनी अना मिटाए कौन
सच्ची अलख जगाए कौन
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पिछले लेखे-जोखे हैं
अपने कौन पराए कौन
.
राम भी कब से भूखे हैं
झूठे बेर खिलाए कौन
.
कस्तूरी मिल जाएगी
ख़ुद में गहरे जाए कौन
.
तूफ़ां नाम का तूफ़ां है
लहरों से टकराए कौन
.
माज़ी माज़ी करें सभी
मुस्तक़बिल चमकाए कौन
.
( मौलिक व अप्रकाशित )
Added by दिनेश कुमार on October 9, 2017 at 6:18am —
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122___122___122___12
लिखूँ सच को सच, ये हुनर शेष है
अभी रोशनाई में डर शेष है
क़दम उठ रहे हैं इकट्ठे मगर
दिलों के मिलन का सफ़र शेष है
बुझाओ न तुम शम्अ उम्मीद की
फ़क़त रात का इक पहर शेष है
भले उनकी दस्तार है तार तार
वो ख़ुश हैं कि काँधे पे सर शेष है
चमन में लगी आग, लगती रहे
मुझे क्या, अभी मेरा घर शेष है
दशहरा मनाने का क्या फ़ाइदा
बुराई का ख़ूँ में असर शेष है
जो हातिम सा इमदाद सबकी…
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Added by दिनेश कुमार on September 24, 2017 at 6:57am —
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212___212___212___2
बे-ख़ुदी के हसीं मरहले में
चैन दिल को मिला मयकदे में
हौसला जब मिटा हादसे में
मुश्किलें बढ़ गईं रास्ते में
हमसफ़र मेरा कोई नहीं था
यूँ बहुत लोग थे क़ाफ़िले में
इश्क़ में डूब जाओ तुम इतना
क़ुर्ब महसूस हो फ़ासले में
ग़ौर से मेरे चेहरे को पढ़िए
है उदासी निहाँ क़हक़हे में
बोल कर सच मैं तकलीफ़ में हूँ
वो झूठा है देखो मज़े में
ज़िन्दगी की ग़ज़ल हो रही है
बँध रहे दर्दो-ग़म…
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Added by दिनेश कुमार on August 4, 2017 at 10:21pm —
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221____2121____1221____212
बचपन था कोई झौंका सबा का बहार का
लौट आए काश फिर वो ज़माना बहार का
खिड़की में इक गुलाब महकता था सामने
बरसों से बन्द है वो दरीचा बहार का
ख़ुशबू सबा की, ताज़गी-ए-गुल, बला का हुस्न
दिल के चमन को याद है चेहरा बहार का
अर्सा गुज़र गया प लगे कल की बात हो
उस बाग़े-हुस्न में मेरा दर्जा बहार का
दौरे-ख़िज़ाँ में दिल के बहलने का है सबब
आँखों में मेरी क़ैद नज़ारा बहार का
कलियाँ को बाग़बाँ ही…
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Added by दिनेश कुमार on June 30, 2017 at 8:08pm —
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22--22--22--22--22--2
बच्चों के मन जैसा होना चाहता हूँ
बे-फ़िक्री की नींदें सोना चाहता हूँ
दुनिया के मेले में खो कर देख लिया
अब मैं ख़ुद के भीतर खोना चाहता हूँ
राग द्वेष ईर्ष्या लालच को त्याग के मैं
रूह की मैली चादर धोना चाहता हूँ
प्यार का सागर है तू मैं प्यासा सहरा
अपनी हस्ती तुझ में डुबोना चाहता हूँ
जीवन व्यर्थ गँवाया, दिल पर बोझ है ये
ख़ुद से नज़र चुरा के रोना चाहता हूँ
गीली मिट्टी है, शायद जड़ पकड़ भी…
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Added by दिनेश कुमार on June 17, 2017 at 1:34pm —
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2122____1122____1122____22
सर पे साया जो बुज़ुर्गों की दुआ का होगा
कामयाबी का सफ़र अपना सुहाना होगा
उसकी रोटी से जो आती है पसीने की महक
उसके घर ख़ुशबू-ए-बरकत का ख़ज़ाना होगा
रोज़े-महशर तेरी दौलत नहीं काम आयेगी
साथ बस तेरे सवाबों का पिटारा होगा
झूट को झूट सरे-बज़्म कहा है जिसने
देखना शर्तिया वो ज़हन से बच्चा होगा
मैंने ता-उम्र यही सोच के काटी अपनी
शब गुज़र जायेगी, क़िस्मत में सवेरा होगा
आबला-पाई मेरी और…
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Added by दिनेश कुमार on June 15, 2017 at 11:55pm —
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221 -------- 2121 -------- 1221 - - - - 212
मानिंद-ए-शम्अ बज़्म में आ कर ग़ज़ल कहें
आलम है तीरगी का, मिटा कर ग़ज़ल कहें
रस्ते के सब पड़ाव क़वाफ़ी की शक़्ल हों
और लक्ष्य को रदीफ़ बना कर ग़ज़ल कहें
मफ़हूम क्या हो, चर्ख़े-तख़य्युल का चाँद हो
महफ़िल को हुस्ने-ख़्वाब दिखा कर ग़ज़ल कहें
गुलकन्द की मिठास, तग़ज़्ज़ुल, जदीदियत
हर शेर में ये ख़ूबियाँ ला कर ग़ज़ल कहें
होंठों पे सामयीन के आ जाए मरहबा
अल्फ़ाज़ उँगलियों पे नचा कर…
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Added by दिनेश कुमार on June 15, 2017 at 4:28am —
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22--22--22--22--22--2
बे-शक जन्नत होगी बलख-बुखारे में
छज्जू ख़ुश है अपने इस चौबारे में
दिले-मुसव्विर दुनिया की परवाह न कर
लोग तो नुक़्स निकालेंगे शह-पारे में
सारी बस्ती जल कर राख हुई देखो
थी चिंगारी एक सियासी नारे में
उसके नक़्शे-पा जब मील के पत्थर हैं
कुछ तो ख़ूबी होगी उस बंजारे में
तेरा काम ही चीख़ चीख़ कर बोेलेगा
तू क्या बोले है ख़ुद अपने बारे में
राजा बने भिखारी और भिखारी शाह
हश्र निहाँ हैं उसके…
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Added by दिनेश कुमार on June 10, 2017 at 3:28pm —
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22--22--22--22--22--2
जो तूफ़ाँ के डर से तटपर ठहरे थे
बशर नहीं थे वो पुतले मिट्टी के थे
कब तक तेरी हाँ सुनने को रुकते हम
हमको अपने फ़र्ज़ अदा भी करने थे
दिल के ज़ख़्म बयाँ करना कुछ मुश्किल था
आँखों में आँसू लब पर अंगारे थे
हॉट पे क्या बिकता था मुझको क्या मतलब
मेरी जेब में बस ख़्वाबों के सिक्के थे
जिसका पेट भरा है वो क्या समझेगा
भूख से मरने वाले कितने भूखे थे
दरियाओं के संग न अपनी यारी थी
प्यास बुझाने…
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Added by दिनेश कुमार on June 5, 2017 at 3:59pm —
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1221--2121--1221--212
ख़तरे में जब वज़ीर था प्यादे बदल गए
मौक़ा परस्त दोस्त थे पाले बदल गये
आये न लौट कर वे नशेमन में फिर कभी
उड़ने को पर हुये तो परिन्दे बदल गये
होंठों पे इनके आज खिलौनों की ज़िद नहीं
ग़ुरबत का अर्थ जान के बच्चे बदल गए
हालाँकि मैं वही हूँ मेरे भाई भी वही
घर जब बँटा तो ख़ून के रिश्ते बदल गये
ढलने पे आफ़ताब है मेरे नसीब का
देखो ये मेरी आँखों के तारे बदल गये
लहजे में गुल-फ़िशानी न…
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Added by दिनेश कुमार on June 5, 2017 at 8:46am —
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122--122--122--12
निगाहों से उसने पिलाया नहीं
मज़ा मुझको महफ़िल में आया नहीं
उदासी भी कब आई रुख़ पर मेरे
भले मैं कभी मुस्कुराया नहीं
बशर कौन है वो जिसे वक़्त ने
इशारों पे अपने नचाया नहीं
अभी दाद अपनी सँभाले रखो
अभी शे'र मैंने सुनाया नहीं
मैं झूठा हूँ चल ठीक है। ये बता
मुझे आइना क्यों दिखाया नहीं
दिलों के मिलन पर है सब मुनहसिर
कोई अपना कोई पराया नहीं
तू पत्थर है या एक हीरा 'दिनेश'
कोई…
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Added by दिनेश कुमार on April 19, 2017 at 6:17pm —
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11212--11212
वो कलंदरों में शुमार है
ग़म-ए-ज़ीस्त से उसे प्यार है
तेरी हाँ नहीं पे ऐ जान-ए-जाँ
मेरी ज़िन्दगी का मदार है
मेरे बाग़-ए-दिल के नसीब में
फ़क़त इन्तज़ार-ए-बहार है
ग़म-ए-आशिक़ी से जो पूछिये
ये जहां भी उजड़ा दयार है
जिसे ताज कहता है ये जहां
वो हक़ीक़तन तो मज़ार है
ये अजब नहीं कि जुनूने-इश्क़
सर-ए-दार था सर-ए-दार है
मैं जो हक़-हलाल की रह पे हूँ
मुझे ख़्वाब में भी क़रार…
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Added by दिनेश कुमार on April 18, 2017 at 8:17pm —
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ग़ज़ल की कोशिश
1222--1222--122
ज़रा सा भी मेरे जैसा नहीं वो
मैं इक आईना हूँ पर्दा-नशीं वो
नदी के दो किनारे कब मिले हैं
फ़लक का चाँद हूँ मैं औ'र ज़मीं वो
इसी दो-राहे की अब ख़ाक हूँ मैं
मेरी बाहों से छूटा था यहीं वो
बग़ैर उसके हुआ बे-जान सा मैं
बदन की रूह था दिल का मकीं वो
मैं जिसकी आँख का तारा रहा हूँ
कहाँ गुम हो गई है दूर-बीं वो
अजल से जिस ख़ुदा की जुस्तजू थी
मिला तुझ को 'दिनेश' अब तक कहीं…
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Added by दिनेश कुमार on February 9, 2017 at 8:59pm —
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2122--1212--22
संगे मरमर को आइना जाने
ये ज़माना किसी को क्या जाने
अपनी आँखों में ख़्वाब साहिल का
मौजे तूफ़ाँ की नाख़ुदा जाने
मुझ से बस मयकशी की बात करो
पारसाई की पारसा जाने
पल में तोला है पल में माशा है
कौन इस हुस्न की अदा जाने
चुप रहा जो मेरी सदाओं पर
मेरी ख़ामोशियाँ वो क्या जाने
जब हवाओं की सरपरस्ती थी
फिर दिया क्यों बुझा... ख़ुदा जाने
ज़िन्दगी को ग़ज़ल कहेगा वही
रंजो-ग़म को जो…
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Added by दिनेश कुमार on February 2, 2017 at 4:13pm —
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2122--1212--22
ग़ज़ल .....
ज़िन्दगी क्या है औ'र क़ज़ा क्या है
कौन जाने ये माजरा क्या है
एक जलता हुआ चराग़ हूँ मैं
मुझको मालूम है... हवा क्या है
हक़-परस्ती गुनाह था मेरा
मैं हूँ हाज़िर..बता सज़ा क्या है
दर्दे-जाँ ने भी आज पूछ लिया
ज़ब्त की तेरे इंतेहा क्या है
नाव साहिल प आके डूब गई
इसमें तूफ़ान की ख़ता क्या है
झूट लालच फ़रेब चालाकी
देख इन्सान में बचा क्या है
तेरी मरज़ी से कुछ…
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Added by दिनेश कुमार on January 30, 2017 at 9:00pm —
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1212--1122--1212--22
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मिसाले-ख़ाक सभी वक़्त के ग़ुबार में थे
न जाने कौन थे हम और किस दयार में थे
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न शख़्सियत के सभी रंग इश्तिहार में थे
जो रहनुमा थे.. सियासत के कारो-बार में थे
~~
अँधेरा शह्र में बे-ख़ौफ़ रक़्स करता रहा
चराग़ सारे... हवाओं के इख़्तियार में थे
~~
बताओ मज़िले-मक़सूद किस तरह मिलती
तरह तरह के मनाज़िर जो रहगुज़ार में थे
~~
निशान-ए-आब नहीं था वहाँ पे दूर तलक
हयातो-मर्ग के हम ऐसे रेग-ज़ार…
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Added by दिनेश कुमार on January 16, 2017 at 6:30pm —
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2122--2122--212
जो समेटे मुझको ऐसा कौन है
मैं तो इक क़तरा हूँ दरिया कौन है
ग़ौर से परखो मेरे किरदार को
मुझ में ये मेरे अलावा कौन है
कश्तियों का है सहारा नाख़ुदा
नाख़ुदाओं का सहारा कौन है
कृष्ण से मिलने की चाहत है किसे
द्वारिका में अब सुदामा कौन है
पत्थरों में आग बेशक है छिपी
ध्यान से इनको रगड़ता कौन है
सामने है पूर्वजन्मों का हिसाब
कौन है अपना, पराया कौन है
ज़हन में जिसके भरा है ' मैं ' ही…
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Added by दिनेश कुमार on January 9, 2017 at 10:00pm —
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