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ग़ज़ल -- फ़लक में उड़ने का क़ल्बो-जिगर नहीं रखता / दिनेश कुमार

1212---1122---1212---22
.
फ़लक में उड़ने का क़ल्बो-जिगर नहीं रखता
मैं वो परिन्दा हूँ जो बालो-पर नहीं रखता
.
न चापलूसी की आदत, न चाह उहदे ( पदवी ) की
फ़क़ीर शाह के क़दमों में सर नहीं रखता
.
उरूज और ज़वाल एक से हैं जिसके लिये
वो हार जीत का दिल पर असर नहीं रखता
.
मिला नसीब से जो कुछ भी, वो बहुत है मुझे
पराई चीज़ पे मैं बद-नज़र नहीं रखता
.
नशा दिमाग़ पे दौलत का जिसके जन्म से हो
वो अपने पाँव कभी फ़र्श पर नहीं रखता
.
वो इस ज़माने के सीखेगा कैसे रीति-रिवाज
खुले जो ज़ह्न के दीवारो-दर नहीं रखता
.
ज़माने भर की उसे फ़िक्र है, मगर देखो
बशर, पड़ोसी की, अपने ख़बर नहीं रखता
.
दिनेश कुमार ( मौलिक व अप्रकाशित )

Views: 617

Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 20, 2018 at 4:41pm

आ. भाई दिनेश जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by TEJ VEER SINGH on November 18, 2018 at 12:36pm

हार्दिक बधाई आदरणीय दिनेश कुमार जी। बहुत सुंदर गज़ल।मिला

नसीब से जो कुछ भी, वो बहुत है मुझे
पराई चीज़ पे मैं बद-नज़र नहीं रखता

ज़माने भर की उसे फ़िक्र है, मगर देखो
बशर, पड़ोसी की, अपने ख़बर नहीं रखता

Comment by दिनेश कुमार on November 18, 2018 at 10:37am
बहुत शुक्रिया आ. राज़ साहब।
Comment by दिनेश कुमार on November 18, 2018 at 10:37am
बहुत शुक्रिया आ. अजय जी।
Comment by दिनेश कुमार on November 18, 2018 at 10:36am
बहुत शुक्रिया आ. समर सर। इनायत
Comment by राज़ नवादवी on November 18, 2018 at 10:34am

जनाब दिनेश कुमार जी, आदाब,सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति पे बधाई स्वीकार करें. सादर 

Comment by Ajay Tiwari on November 17, 2018 at 5:20pm

आदरणीय दिनेश जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई.

Comment by Samar kabeer on November 17, 2018 at 11:27am

जनाब दिनेश कुमार जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

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