For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- इस्लाह हेतु / ज़िन्दगी भर सलीब ढ़ोने को / दिनेश कुमार

2122--1212--22

ज़िन्दगी भर सलीब ढ़ोने को
हक़परस्ती है सिर्फ़ रोने को

दिल को पत्थर बना लिया मैंने
ख़्वाब आँखों में फिर पिरोने को

दूर मंज़िल है वक़्त भी कम है
कौन कहता है तुम को सोने को

एक बस वो नहीं हुआ मेरा
क्या नहीं होता वर्ना होने को

किस लिये हैं इन आँखों में आँसू
पास भी क्या था जब कि खोने को

ज़िद नहीं करता अब खिलौनों की
क्या हुआ दिल के इस खिलौने को

दाग़ कुछ ऐसे भी हैं दामन पर
अश्क कम पड़ गए हैं धोने को

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 860

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 18, 2017 at 5:38pm
जनाब दिनेश साहिब ,छोटी बह्र में ग़ज़ल की अच्छी कोशिश की है आपने, मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
मुहतरम समर साहिब ने सही मश्वरा दिया है ,उस पर गौर कीजियेगा
शेर2 उला मिसरा यूँ करके देखिए (एक वो ही नहीं हुआ मेरा ) ,मेरे ख़याल से खिलौने क़ाफ़िया बाक़ी क़ाफिये ,रोने ,खोने ,धोने के साथ सही नहीं है ।देख लीजियेगा
Comment by Ajay Tiwari on October 18, 2017 at 6:28am

आदरणीय दिनेश जी,

प्रभावी ग़ज़ल हुई है. शुभकामनाएं.

सादर 

Comment by दिनेश कुमार on October 17, 2017 at 6:08am
बहुत बहुत शुक्रिया आ. समर सर, अपनी बहुमूल्य इस्लाह रूपी आशीर्वाद से मुझे नवाज़ने के लिये।

//ग़ज़ल कुछ जल्दी में कही हुई लगती है//आपकी पारखी नज़र को सलाम सर।

//'दिल को पत्थर बना लिया मैंने
ख़्वाब आँखों में फिर पिरोने को'
इस शैर के सानी मिसरे में 'फिर'शब्द भर्ती का है,//
मेरे ख़याल से भर्ती का नहीं है सर। पूरा मतलब दे रहा है,,, दोबारा पिरोने को।
अगर आप पुनः कहेंगे तो मैं change कर दूँगा सर।

//'कौन कहता है तुम को सोने को'
इस मिसरे में 'को'शब्द दो बार मुनासिब नहीं लगता,इसे यूँ कर सकते थे :-
'कौन कहता है तुमसे सोने को'//
जी सर। वैसे एक 'को' गिरते हुए स्वर पर पढ़ा जा रहा है। और 'तुमसे सोने' में स स का बहुत हल्का सा टकराव महसूस हुआ मुझे।
इस क़ाफ़िए में एक शेर और देखिए सर,
मेरा अंदाज़ है फ़क़ीराना
ख़ाक समझा है मैंने सोने को
चलेगा,,,?

//'एक बस वो नहीं हुआ मेरा
क्या नहीं होता वर्ना होने को'
इस शैर के ऊला मिसरे में 'एक''बस'दोनों भर्ती के शब्द हैं,मिसरा यूँ भी कह सकते थे :-
'वो हमारा नहीं हुआ यारो'//
शेर अब कुछ यूं किया है सर, कि
इक निगाहे-करम न मुझ पे हुई
क्या नहीं होता वर्ना होने को

//'ज़िद नहीं करता अब खिलौनों की
क्या हुआ दिल के इस खिलौने को'
दोनों मिसरों में 'खिलौनों'और 'खिलौने'भले नहीं लगते।// ठीक कहा सर। यूँ बदलने की कोशिश की है, देखियेगा
चोट से टूटता नहीं है ये अब
क्या हुआ दिल के इस खिलौने को

//छोटी बह्र में ग़ज़ल कहना आसान नहीं होता//
बिल्कुल सहमत सर। लेकिन,...☺
"मैं शायरी का हुनर जानता नहीं बेशक
अजीब धुन है मुझे क़ाफ़िया मिलाने की"... दिनेश

आपकी मुहब्बतों को दिल से सलाम आ. समर साहब।
Comment by दिनेश कुमार on October 17, 2017 at 6:08am
बहुत बहुत शुक्रिया आ. आशुतोष साहब।
Comment by दिनेश कुमार on October 17, 2017 at 6:07am
बहुत बहुत शुक्रिया आ. अफ़रोज़ सहर साहब।
Comment by दिनेश कुमार on October 17, 2017 at 5:21am
हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आ. निलेश सर जी।

//एक बस वो नहीं हुआ मेरा
क्या नहीं होता वर्ना होने को...
इस शेर से मोमिन खान मोमिन याद आ गए //

अवचेतन मन में मोमिन का वो फेमस शेर ही रहा होगा सर, जब यह मिसरे मैंने फिट किये। अब थोड़ा change करते हुए, ( ज़्यादा नहीं ☺), शेर पुनः आपको समर्पित...
इक निगाहे-करम न मुझ पे हुई
क्या नहीं होता वर्ना होने को
Comment by दिनेश कुमार on October 17, 2017 at 5:11am
आ. सलीम रज़ा साहब , तहे दिल से शुक्रिया।
Comment by दिनेश कुमार on October 17, 2017 at 5:10am
आ. वन्दना जी, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत शुक्रिया।
Comment by Samar kabeer on October 16, 2017 at 7:13pm
जनाब दिनेश कुमार जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिन ग़ज़ल कुछ जल्दी में कही हुई लगती है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

'दिल को पत्थर बना लिया मैंने
ख़्वाब आँखों में फिर पिरोने को'
इस शैर के सानी मिसरे में 'फिर'शब्द भर्ती का है, ग़ौर कीजियेगा, इसे यूँ कर सकते हैं :-
'ख़्वाब इन आँखों में पिरोने को'

'कौन कहता है तुम को सोने को'
इस मिसरे में 'को'शब्द दो बार मुनासिब नहीं लगता,इसे यूँ कर सकते थे :-
'कौन कहता है तुमसे सोने को'

'एक बस वो नहीं हुआ मेरा
क्या नहीं होता वर्ना होने को'
इस शैर के ऊला मिसरे में 'एक''बस'दोनों भर्ती के शब्द हैं,मिसरा यूँ भी कह सकते थे :-
'वो हमारा नहीं हुआ यारो'
वैसे आपके इस शैर से मुझे भी निलेश जी की तरह ये शैर याद आ गया:-
"तुम हमारे किसी तरह न हुए
वर्ना दुनिया में क्या नहीं होता"

'ज़िद नहीं करता अब खिलौनों की
क्या हुआ दिल के इस खिलौने को'
दोनों मिसरों में 'खिलौनों'और 'खिलौने'भले नहीं लगते,शायद इसी लिए बुज़ुर्गों ने कहा है कि छोटी बह्र में ग़ज़ल कहना आसान नहीं होता ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 16, 2017 at 6:20pm
आदरणीय दिनेश जी इस उम्दा रचना पर हार्दिक बढाई साद

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मंच संचालक जी , मेरी रचना  में जो गलतियाँ इंगित की गईं थीं उन्हे सुधारने का प्रयास किया…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 178 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार.…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, प्रस्तुत रोला छंदों पर उत्साहवर्धन हेतु आपका…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"    आदरणीय गिरिराज जी सादर, प्रस्तुत छंदों की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी छंदों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिये हार्दिक आभार "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय गिरिराज जी छंदों पर उपस्थित और प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक जी छंदों की  प्रशंसा और उत्साहवर्धन के लिये हार्दिक आभार "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय मयंक कुमार जी"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
" छंदों की प्रशंसा के लिये हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"    गाँवों का यह दृश्य, आम है बिलकुल इतना। आज  शहर  बिन भीड़, लगे है सूना…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी,आपकी टिप्पणी और प्रतिक्रिया उत्साह वर्धक है, मेरा प्रयास सफल हुआ। हार्दिक धन्यवाद…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service