For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- " दिल को क्या हो गया ख़ुदा जाने " ( दिनेश कुमार )

2122--1212--22

संगे मरमर को आइना जाने
ये ज़माना किसी को क्या जाने

अपनी आँखों में ख़्वाब साहिल का
मौजे तूफ़ाँ की नाख़ुदा जाने

मुझ से बस मयकशी की बात करो
पारसाई की पारसा जाने

पल में तोला है पल में माशा है
कौन इस हुस्न की अदा जाने

चुप रहा जो मेरी सदाओं पर
मेरी ख़ामोशियाँ वो क्या जाने

जब हवाओं की सरपरस्ती थी
फिर दिया क्यों बुझा... ख़ुदा जाने

ज़िन्दगी को ग़ज़ल कहेगा वही
रंजो-ग़म को जो क़ाफ़िया जाने

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 441

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2017 at 11:51am

आ. भाई दिनेश जी इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 3, 2017 at 7:44am
आदरणीय दिनेश भाई,उम्दा गजल के लिए तहेदिल मुबारकबाद आपको!
Comment by Mohammed Arif on February 2, 2017 at 9:41pm
जनाब दिनेश कुमारजी, अच्छी ग़ज़ल के लिए मुबारक़बाद क़ुबूल करें । बाक़ी समर साहब की बात से पूरी तरह से सहमत हूँ ।
Comment by Samar kabeer on February 2, 2017 at 6:04pm
जनाब दिनेश कुमार'दानिश'साहिब आदाब,ग़ज़ल अच्छी हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
संग-ए-मरमर को आइना जाने
ये ज़माना किसी को क्या जाने

मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,और ऊला मिसरे में भी ख़ास तौर पर संग-ए-मरमर कहने की क्या ज़रूरत है ?
'क्या है पत्थर ये आइना जाने'

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
16 hours ago
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
yesterday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service