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ग़ज़ल -- मुझ पे कब इख्तियार मेरा है ....

मुझ पे कब इख्तियार मेरा है
यूँ नए साल का सवेरा है.

ख़ैरियत लोग मेरी पूछें जब
ज़ेह्न ने दर्द ही उकेरा है .

इश्क़ बाजों से पूछ कर देखो
चाँद के पार भी बसेरा है.

वक़्त की धुन पे नाचती दुनिया
वक़्त सबसे बड़ा सपेरा है.

धर्म ईमान कुफ़्र की बातें
मुझ पे वाइज़ असर ये तेरा है .

नाम तुझ पर 'दिनेश' जँचता नहीं
तेरी किस्मत में जब अंधेरा है .

दिनेश कुमार
( मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment by दिनेश कुमार on January 2, 2015 at 8:09am
बहुत शुक्रिया आ. डॅा विजय जी।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 2, 2015 at 8:05am
वक़्त की धुन पे नाचती दुनिया
वक़्त सबसे बड़ा सपेरा है॥
प्रशंसनीय , बहुत बहुत बधाई, आदरणीय दिनेश कुमार जी, सादर।
Comment by दिनेश कुमार on January 2, 2015 at 7:53am
सभी आ. साथियों का बहुत बहुत शुक्रिया, रचना को पढ़कर हौसला अफजाई करने का। वस्तुतः यह आप सभी आ. साथियों का स्नेह व आत्मीयता है जो आपकी प्रतिक्रिया में झलकती है। यही स्नेह और आप का आशीर्वाद मुझे लिखने को प्रेरित करता है। सादर नमन।
Comment by Anurag Prateek on January 1, 2015 at 9:58pm

बहुत सुंदर ग़ज़ल

Comment by somesh kumar on January 1, 2015 at 8:49pm

वक़्त की धुन पे नाचती दुनिया 
वक़्त सबसे बड़ा सपेरा है.|सुंदर रचना ,नव वर्ष एवं रचना के लिए बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 1, 2015 at 8:02pm

आदरणीय दिनेश जी बहुत सुंदर ग़ज़ल है हर शेर के लिये दाद हाजिर है

Comment by Hari Prakash Dubey on January 1, 2015 at 7:50pm

आदरणीय दिनेश कुमार जी इस रचना पर बधाई स्वीकार करें !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 1, 2015 at 7:44pm
वक़्त की धुन पे नाचती दुनिया 
वक़्त सबसे बड़ा सपेरा है.
इश्क़ बाजों से पूछ कर देखो 
चाँद के पार भी बसेरा है.
आदरणीय दिनेश सर जी बेहतरीन ग़ज़ल के उम्दा अशहार हुये हैं | आपको बहुत बहुत बधाई। दिल से दाद कुबूल कीजिये
Comment by SHARAD SINGH "VINOD" on January 1, 2015 at 7:32pm

ख़ैरियत लोग मेरी पूछें जब
ज़ेह्न ने दर्द ही उकेरा है .... क्या रेखाचित्र सी प्रस्तुति है..

अंतिम पंक्ति मे नाम के सथ क्या लॉजिक है.. बधाई हो श्रीमान!!

Comment by Shyam Narain Verma on January 1, 2015 at 4:11pm

बहुत खूब, सुन्दर प्रस्तुति.

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