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ग़ज़ल -- लिखूं सच को सच ये हुनर शेष है ( दिनेश कुमार )

122___122___122___12

लिखूँ सच को सच, ये हुनर शेष है
अभी रोशनाई में डर शेष है

क़दम उठ रहे हैं इकट्ठे मगर
दिलों के मिलन का सफ़र शेष है

बुझाओ न तुम शम्अ उम्मीद की
फ़क़त रात का इक पहर शेष है

भले उनकी दस्तार है तार तार
वो ख़ुश हैं कि काँधे पे सर शेष है

चमन में लगी आग, लगती रहे
मुझे क्या, अभी मेरा घर शेष है

दशहरा मनाने का क्या फ़ाइदा
बुराई का ख़ूँ में असर शेष है

जो हातिम सा इमदाद सबकी करे
जहाँ में कहाँ वो बशर शेष है

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by दिनेश कुमार on October 8, 2017 at 8:10am
बहुत बहुत शुक्रिया आ. बृजेश साहब।
Comment by दिनेश कुमार on October 8, 2017 at 8:07am
बहुत बहुत शुक्रिया आ. गिरिराज सर जी।
Comment by दिनेश कुमार on October 8, 2017 at 8:06am
बहुत बहुत शुक्रिया आ. गिरिराज सर जी।
Comment by दिनेश कुमार on October 8, 2017 at 8:05am
बहुत बहुत शुक्रिया आ. नीरज साहब। हौसला अफ़ज़ाई वाक़ई काम आती है निरन्तर प्रयासरत रहने के लिए। हार्दिक आभार आपका। इनायत।
Comment by दिनेश कुमार on October 8, 2017 at 8:01am
बहुत बहुत शुक्रिया आ. गुप्ता जी। इनायत।
Comment by दिनेश कुमार on October 8, 2017 at 8:00am
बहुत बहुत शुक्रिया आ. निलेश सर जी।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 26, 2017 at 10:42pm
वाह वाह आदरणीय..क्या ही खूब ग़ज़ल हुई...सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 26, 2017 at 9:06pm

आदरणीय दिनेश भाई , खूबसूरत गज़ल कही है . बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by Niraj Kumar on September 26, 2017 at 6:23pm

आदरणीय दिनेश जी,

उम्दा ग़ज़ल हुई है. दाद के साथ मुबारकबाद.

इस ग़ज़ल की रदीफ़ से दिनकर की एक कविता का शीर्षक ध्यान आया 'समर शेष है'.

आपकी तरही ग़ज़ल भी संकलन में देखी वो भी शानदार है.

आपके ब्लॉग पर आपकी दूसरी ग़ज़लों से होकर भी गुज़ारा. जो शेर गहरे प्रभावित करते है उनमे एक शेर ये है :

गीली मिट्टी है, शायद जड़ पकड़ भी लें

मैं आँखों में सपने बोना चाहता हूँ

इस शेर की पहली पंक्ति वही लिख सकता है जिसकी जीवन और भाषा दोनों में जड़ें गहरी हों.

लेकिन अभी ये मंजिल नहीं है. बस रुकियेगा नहीं.

ये मंजिल नहीं है ये मंजिल नहीं

अभी आगे लम्बी डगर शेष है .

शुभमस्तु पंथानः

सादर

Comment by रामबली गुप्ता on September 26, 2017 at 5:49pm
बहुत ही प्यारी ग़ज़ल हुई है भाई दिनेश कुमार जी। हार्दिक बधाई स्वीकारें।सादर

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