For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल --- बचपन था कोई झौंका सबा का बहार का ( दिनेश कुमार )

221____2121____1221____212

बचपन था कोई झौंका सबा का बहार का
लौट आए काश फिर वो ज़माना बहार का

खिड़की में इक गुलाब महकता था सामने
बरसों से बन्द है वो दरीचा बहार का

ख़ुशबू सबा की, ताज़गी-ए-गुल, बला का हुस्न
दिल के चमन को याद है चेहरा बहार का

अर्सा गुज़र गया प लगे कल की बात हो
उस बाग़े-हुस्न में मेरा दर्जा बहार का

दौरे-ख़िज़ाँ में दिल के बहलने का है सबब
आँखों में मेरी क़ैद नज़ारा बहार का

कलियाँ को बाग़बाँ ही मसलता है जब कभी
रोता है जार जार कलेजा बहार का

मर्ज़ी पे गुलसिताँ की भला कब है मुनहसिर
आना बहार का या न आना बहार का

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 707

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Shukla on July 7, 2017 at 11:42am
आदरणीय दिनेश जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही आपने । शेर दर शेर मुबारक बाद हाज़िर है । समर साहब्बके सुझाव से मिसरों में और भी खूबसूरती आ गई है । बधाई ।
Comment by रामबली गुप्ता on July 6, 2017 at 5:33pm
भाई दिनेश कुमार जी उम्दा ग़ज़ल हुई है। बधाई स्वीकारें। आद0 समर भाई साहब के सुझावों से सहमत हूँ।
Comment by नाथ सोनांचली on July 2, 2017 at 2:53pm
आद0 दिनेश जी सादर अभिवादन। गजल पर दाद के साथ मूबरकबाद कबूल फरमायें।
Comment by दिनेश कुमार on July 2, 2017 at 11:14am
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय समर सर जी। आपकी मुहब्बतों को दिल से सलाम सर ।
जल्द ही मिसरे आपके अनुसार दुरुस्त करता हूँ सर। नवाज़िश।
Comment by Samar kabeer on July 1, 2017 at 1:55pm
जनाब दिनेश कुमार जी आदाब,ग़ज़ल अच्छी हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
मतले का ऊला मिसरा:-
'बचपन था कोई झोंका सबा का बहार का'
इस मिसरे में 'सबा'शब्द भर्ती का है, इस मिसरे को यूँ किया जा सकता है :-
"बचपन था या कि था कोई झोंका बहार का"
तीसरे शैर में भी भर्ती के शब्द हैं,इस शौरा को यूँ किया जा सकता है :-
'कलियों का हुस्न,ग़ल की महक,तितलियों का रक़्स
है याद मुझको आज भी चहरा बहार का'
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 1, 2017 at 12:15pm
खूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय दिनेश जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
18 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service