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All Blog Posts (18,926)

आस के पास

आस ही सांस है

और सांस ही जीवन है

और जीवन ही संसार है 

यानि सांस ही आस है

सांस ही आस है

या आस ही सांस है?

या फिर आस ही सांस है

या फिर सांस ही आस है

गर सांस  ही आस है

तो आस ही जीवन है

और आस ही संसार है

Added by sitaram singh on December 10, 2011 at 3:12pm — No Comments

ओ मेरे पिता



देखा है मेने अपने पिता को, अपने कंधो पर मेरी स्कुल बैग टांगे,

जीवन के बोझ को बड़ी मुस्कराहट के साथ निभाते, ।

हमेशा जिसने अपने दर्द से दुनिया के दर्द को बड़ा माना

लड़ता रहा वो मजबूरो और असाहायों के लिए

सारे ग्रहों की परिभाषाओ को निष्फल होते देखा है

मेने  अपने पिता के आगे,

आज मुझ को घमंड है की  तुम हो मेरे पिता

हां जिसने मुझको दिया है अपने खून का एक कण

जो आज एक वजूद बनकर खड़ा है इसी दुनिया के लिए कुछ करने को

हां मुझको गर्व है की तुम मेरे पिता…

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Added by LOON KARAN CHHAJER on December 9, 2011 at 5:30pm — No Comments

हिंदी रंगमंच

हिंदी रंगमंच की समस्या बहुत है इस पर शोध की ज़रूरत है .मोटे तौर पर देखा जाये तो यह भी कहा जा सकता है की रंगमंच के  लिए   जो  माहोल बनाना चाहिए था वो बना नहीं जो स्तिथि है वोह भी भयकर है .एक तो लोगो की दिलचस्पी फिल्मो से होते हुए टीवी से चिपक गई है . जो लोग इस विधा से जुड़े है उन्हें कोई मदद नहीं …

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Added by sitaram singh on December 8, 2011 at 1:12pm — No Comments

एक ग़ज़ल

जब कभी भी आजमाया जायेगा  

आदमी औकात पर आ जायेगा

शख्सियत औ कद बड़ा जिस का मिला 

वो यकीनन बुत बनाया जायेगा 

क़ैद कर मेरी सहर की रोशनी 

भोर का तारा दिखाया जायेगा 

जिद पे गर बच्चा कोई आ ही गया 

चाँद थाली में सजाया जायेगा 

गर वो वादों पर यकीं करने लगे 

उस से रोज़ी पर न जाया जायेगा 

फ़र्ज़दारी का सिला जो दे चुके

कत्लगाहों में बसाया जायेगा

ये जहां तो इक मुसलसल मांग…

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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on December 8, 2011 at 11:00am — 7 Comments

हिंदी रंगमंच

कभी कभी नाट्य रचनाओ की कमी का उलेख भी किया जाता है. हिंदी में नाट्य लेखन की कमी तो है ,पर इतना नहीं की इससे मंचन पर बहुत असर हो रहा हो .इस दिशा में दिल्ली का साहित्य कला परिषद् ने कुछ अच्छे कदम उठाये है और हर साल कुछ अच्छे नाटक लिखे गए है और प्रकाश में आये भी है कुछ कहानिओ का नाट्य रूपांतर भी हुए है और उसका अच्छा मंचन भी हुआ है इसमें उदय…

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Added by sitaram singh on December 7, 2011 at 1:29pm — No Comments

बाबासाहेब डा.अम्बेडकर



बाबासाहेब डा.अम्बेडकर ( जन्म दिवस 14 अप्रैल- निवार्ण दिवस 6 दिसंबर)

प्रभात कुमार रॉय

बाबासाहेब डा.अम्बेडकर एक अत्यंत प्रखर देशभक्त और राष्ट्रवादी थे। भारत की राजनीतिक एकता को मूर्तरुप देने का जैसा शानदार कार्य सरदार पटेल ने अंजाम दिया, उसी कोटि का अप्रतिम कार्य राष्ट्र की सामाजिक एकता के लिए डा.अम्बेडकर द्वारा किया गया। अपनी चेतना के उदय से अपनी जिंदगी के…

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Added by prabhat kumar roy on December 7, 2011 at 12:02pm — 2 Comments

बातें पुरानी फूल की

क्यों मिली है कुछ पलों को बागवानी फूल की

उम्र   भर  कहते  रहेंगे हम   कहानी फूल की



वो मेरे सीने से लगकर हाले-दिल कहते रहे

फूल  सी बातें सुनी हमने  जुबानी फूल  की



मनचले भवरे चमन  के  पास मंडराने लगे

चुभ रही है आँख में सबके जवानी फूल की



खौफ-ए-गुलचीन-ओ-खिज़ा के साए में हसती रहे

मैं समझ पाया न तबियत की रवानी फूल की



आज चाँदी की चमक से बागवान अँधा हुआ

पाँव के नीचे कटेगी अब जवानी फूल की



उजड़े हुए बाग-ए-मुहब्बत को हैं…

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Added by Arun Sri on December 7, 2011 at 10:32am — No Comments

त्यागपत्र (कहानी)

त्यागपत्र (कहानी)

लेखक - सतीश मापतपुरी

अंक ९ पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे

------------- अंक - 10 (अंतिम अंक) --------------

सुबह के तीन बजे रंजन की स्थिति में कुछ -कुछ सुधार होने लगा. ईलाज में लगे डॉक्टरों को थोड़ी सी राहत मिली. बेटे की हालत में सुधार देखकर प्रबल बाबू ने आँखें बंद कर उस ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया,…

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Added by satish mapatpuri on December 6, 2011 at 8:30pm — 2 Comments

लोकतंत्र के दास !!!

संसद की सब कुर्सियां,  पूछ रही ये बात.

लोकतंत्र की हत्या में, किस-किस का है हाथ?
 
बेशर्मी से कर रहे, जन-धन का उपयोग.
जनता का चेहरा लिए, संसद में कुछ लोग.
 
मुखर सियासत हो गई, संसद भई उदास .
मालिक सारे  बन गए, लोकतंत्र के दास 
 
 
--अविनाश बागडे

Added by AVINASH S BAGDE on December 6, 2011 at 8:00pm — 1 Comment

हिंदी रंगमंच

अलका जी का रंगमंच जिसे आज भारत का आधुनिक रंगमंच के नाम से जाना जाता है वह एक सूट बूट में अन्दर   से धोती कुरता वाला भारतीय है वह कुलबुला रहा है बाहर आने के लिए. सभ्यता और संस्कृति की लड़ाई में संस्कृति दब रही है और जो सभ्य है उन्हें धोती के ऊपर सूट नहीं पसंद वह सीधे सूट को पसंद करेगा और अंग्रेजी नाटक की और जायेगा इसमें उसकी कोई गलती नहीं ह्हिंदी रंगमंच इस का शिकार है . दर्शको से    उसका सम्बन्ध नहीं बन प् रहा…

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Added by sitaram singh on December 6, 2011 at 1:44pm — No Comments

हिंदी रंगमंच और उसकी समस्या

हिंदी रंगमंच की शुरुआत दो तरह से हुई, एक पारंपरिक तरीके से और दूसरा अंग्रेजो की नक़ल से पारंपरिक तरीके से उगे रंगमंच को लोकमंच का नाम मिला और दुसरे को आजकल की भाषा में रंगमंच बोलते है |

अंग्रेजो को गर्मी में भी भारत में रखने के लिए अंग्रेजी रंगमंच को भारत बुलाया जाता था इसी के जवाब में भारतीयता से लोटपोट पारसी थियेटर का जनम हुआ जो धीरे धीरे अपना स्वरुप बदलता हुआ आज का रंगमंच बना | ज्यादा इतिहास में जाये तो आधुनिक रंगमंच का जनक इब्राहीम अलका जी को माना जा सकता है | जवाहर लाल जी इनसे…

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Added by sitaram singh on December 6, 2011 at 12:00pm — 2 Comments

ख्वाहिश

मेरा नया गीत:-…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 6, 2011 at 10:00am — 2 Comments

लघुकथा - जीवन पथ

मैं जिस शहर में रहता हूं, वहां एक नेत्रहीन व्यक्ति है। वे पूरे शहर में खुद ही एक डंडे के सहारे कहीं भी चले जाते हैं। उन्हें इस तरह ‘जीवन पथ’ पर आगे बढ़ते बरसों हो गया। उनकी जिजीविषा देखकर हर कोई हतप्रद रह जाता है। यह तो हम सब कहते रहते हैं कि बेसहारे को सहारे की जरूरत होती है, मगर यह नेत्रहीन व्यक्ति ऐसी सोच रखने वालों के लिए मिसाल है। दरअसल, पिछले दिनों नेत्रहीन व्यक्ति शहर के चौक से गुजर रहा था, इसी दौरान उन्हें सड़क किनारे से आवाज आई कि कोई उसे सड़क पार करा दे। इससे पहले कोई उस असहाय व्यक्ति को… Continue

Added by rajkumar sahu on December 6, 2011 at 12:17am — 2 Comments

क्षणिकाएँ!

क्षणिकाएँ



१) 
 
आदमी
जो भी गया
अदालत में.
लौटकर 
आया नही
गया था
जिस हालत में!!!! 
 
२)
 
महंगाई क़े
थप्पड़ 
खा कर
पब्लिक 
हलकान है.
आपने
एक थप्पड़ खाया
तो
परेशान…
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Added by AVINASH S BAGDE on December 5, 2011 at 8:00pm — 8 Comments

ये बिहार है (गौरव गीत )

सब धर्मों का एक सा आदर , ऐसा यहाँ आचार है.
होते हैं भगवान अतिथि , ऐसा यहाँ विचार है.
ये बिहार है ................ ये बिहार है.
महावीर का सन्देश है - यहाँ बुद्ध का उपदेश है.
यहाँ आर्य भट्ट का खगोल  है - यहाँ माटी भी  अनमोल है.
नालंदा का यहाँ ज्ञान  है - यहाँ सीता का सम्मान है.
अशोक का है शौर्य यहाँ - आम्रपाली  का सौन्दर्य यहाँ.
यहाँ बाल्मीकि का सृजन है - यहाँ गुरु गोविन्द का जन्म है.
शेरशाह का जोश है -…
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Added by satish mapatpuri on December 5, 2011 at 5:00pm — 4 Comments

आज भी मैं वही फूल हूँ ,

आज भी मैं वही फूल हूँ ,  

जो कल था खिला हुआ ,

था आँखों का तारा ,

था हर एक से घिरा हुआ ,

हर कोई चाहे लेना ,

मुझे हाथों हाथों में ,  

मैं खुश यूँ ही होता रहा ,

उनकी प्यारी बातों में ,

कोई चाहे रहूँ  मैं , 

देवों का होकर ,  

कोई चाहे प्रियतम का हार बनूँ ,

पता नहीं कब फिसल गया ,

सब की नज़र से उतर गया , 

अब वो चमक नहीं रही , 

धुल धूसरित मैं पड़ा रहा ,

अपने विमुख  हुए हमसे…

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Added by Rash Bihari Ravi on December 5, 2011 at 11:30am — 4 Comments

कुछ खास है मेरी दिल्ली में

प्यारे दोस्तो "दैनिक जागरण" ने "मेरा शहर मेरा गीत" आयोजन हेतु मेरा यानि कि आपके दोस्त सुमित प्रताप सिंह का गीत "कुछ ख़ास है मेरी दिल्ली में" का शीर्ष 3 स्थान (TOP 3) पर चयन किया है| इस गीत को प्रथम स्थान पर चयन हेतु SMS वोटिंग प्रक्रिया से गुजरना है| आपसे निवेदन है कि कृपया मेरे इस गीत को प्रथम स्थान दिलाने हेतु वोट…

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Added by SUMIT PRATAP SINGH on December 5, 2011 at 11:00am — No Comments

महंगाई, भ्रष्टाचार और सरकार

केन्द्र में सत्ता पर बैठी कांग्रेसनीत यूपीए सरकार चाहे जितनी अपनी पीठ थपथपा ले, लेकिन महंगाई व भ्रष्टाचार के कारण सरकार जनता की अदालत में पूरी तरह कटघरे में खड़ी है। ठीक है, अभी लोकसभा चुनाव को ढाई से तीन साल शेष है, किन्तु सरकार को जनता विरोधी कार्य करने से बाज आना चाहिए। महंगाई ने तो पहले ही लोगों की कमर तोड़कर रख दी थी। फिर भी सरकार का रवैया नकारात्मक ही रहा और महंगाई की मार कम हो ही नहीं रही है। सरकार में बैठे सत्ता के मद में चूर कारिंदों के ऐसे बयान आते रहे, जिससे महंगाई नई उंचाईयां छूती…

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Added by rajkumar sahu on December 5, 2011 at 1:31am — No Comments

कैसे कहता ?

आज अचानक मिला मुझे एक दोस्त पुराना

नई राह पर,

हाँथ मिलाया, गले मिले फिर

एक दूजे का हाल सुना,

कुछ मौसम की बात हुई

कुछ अपने परिवारों की

आहिस्ते-आहिस्ते जो अब टूट रहे है,

उन रिश्तों का जिक्र हुआ

जो अर्थहीन होने वाले है,

और कुछ खुशियों की बात हुई,

फिर उसने मुझसे पूछ लिया

"क्या अब भी लिखते हो" ?

मै चुप था

सोच रहा था सच न बताऊँ,

और नहीं बताया !

 

कैसे कहता ?

मन में बनते गीत दबा…

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Added by Arun Sri on December 4, 2011 at 1:41pm — 3 Comments

गली के कुत्ते और वफ़ादार कुत्ते

किसे नहीं अच्छे लगते

वफादार कुत्ते?



जो तलवे चाटते रहें

और हर अनजान आदमी से

कोठी और कोठी मालिक की रक्षा करते रहें



ऐसे कुत्ते जो मालिक का हर कुकर्म देख तो सकें

मगर किसी को कुछ बता न सकें

जो मालिक की ही आज्ञा से

उठें, बैठें, सोएँ, जागें, खाएँ, पिएँ और भौंकें



ऐसे ही कुत्तों को खाने के लिए मिलता है

बिस्किट और माँस

रहने के लिए मिलती हैं

बड़ी बड़ी कोठियाँ

और मिलती है

अच्छे से अच्छे नस्ल की कुतिया



और जब…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 4, 2011 at 1:11am — 2 Comments

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