For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")


देखा है मेने अपने पिता को, अपने कंधो पर मेरी स्कुल बैग टांगे,
जीवन के बोझ को बड़ी मुस्कराहट के साथ निभाते, ।
हमेशा जिसने अपने दर्द से दुनिया के दर्द को बड़ा माना
लड़ता रहा वो मजबूरो और असाहायों के लिए
सारे ग्रहों की परिभाषाओ को निष्फल होते देखा है
मेने  अपने पिता के आगे,
आज मुझ को घमंड है की  तुम हो मेरे पिता
हां जिसने मुझको दिया है अपने खून का एक कण
जो आज एक वजूद बनकर खड़ा है इसी दुनिया के लिए कुछ करने को
हां मुझको गर्व है की तुम मेरे पिता हो।

तुम मुझको बना ना सके इंजीनियर या डॉक्टर,
हां तुमने मुझको दिया है अपनी रगों मै वो  खून
जो सारी उम्र लड़ता रहेगा इस दुनिया की कुरीतियों के खिलाफ, और गरिबों  के हको के लिए
आज समझ सका  हु  इतना बड़ा होकर भी तुमने अपने को इतना छोटा क्यों बनाए रखा!
छोटा आदमी ही इंसान के सबसे करीब होता है ना।
हां और अपनी जगह तो इस दुनिया मै बनाने की जगह दिलो मै बनानी चाहिए ,
किसी चोराहे पर मूर्ति लगाना इतना उचित तुमने नहीं समझा

जितना ठण्ड से बीमार लोगो को तुमने अपना ओढा  कम्बल  देना समझा
तुम्हारे अन्दर कें इंसान  को तो ना जाने कब से समझ चुका हु,
पर आज मुझको महसूस हुआ  है तुम्हारे तन की यह  असहनीय पीड़ा |

लोग भगवान   को  मंदिरों मै ढुढते  है और मैंने अपने को हमेशा  फ़रिश्ते  के करीब पाया |
क्यों नहीं  मिला कोई बुरा करने वाला ? मुझको इस जीवन मै आज समझ सका  हूँ |
क्योकि मेरी रगो मै तुम्हारा ही खून दोड़ रहा है, जो क्षमता रखाता  है दर्द के खिलाफ लड़ने की |
हां! मुझको याद है अपने पिता का अपने कंधो पे अपनी बहन और मेरा बस्ता  टांग कर चलना और

अपनी ही कविताओ को गुनगुनाते हुए, दर्द को भुला देना|
मेरे पिता! तुम कभी हारना नहीं, क्योकि मेरीआत्मा तुझ मे बसकर ही जी रही है |
मुझको अभी तुम्हारी बहुत जरुरत है इस दर्द के खिलाफ।
अब तक कही तुम तनहा थे लेकिन अब साथ हूँ मै भी, अब तुम्हारे इस दर्द के खिलाफ |
लाखो की जायदाद से भी अमूल्य चीज दी है तुमने मुझको
मेरे पिता ! हां तुमने अपनी आत्मा के दर्द का  स्वामी बना दिया मुझको आज |
दुनिया की सबसे बड़ी नियामत दी है तुमने मुझको आज
हां आज ये राहू निकल पढा है उदित होते नये सूरज के साथ,
और लाया है मेरे जीवन मै  नया सवेरा अपने पिता के साथ|
हां! मुझको याद है तुम्हारा  मुझको समझाना, वो परिभाषा इंसान  होने की।
तुम्हारे कठोर शबदो के पीछे छिपे असीम स्नेह को आज समझ चुका  हु |
खुश  हूँ  की तुने मुझको  इंजीनियर या डोक्टर नहीं बनाया|
हां तुमने मुझको बनया है दर्द के खिलाफ लड़ने वाला एक इंसान,
हां मेरी आँखों से बहते हुए आंसू महसूस कर रहे है तुम्हारे उस असीम स्नेह को,
ओ मेरे पिता !  ओ मेरे पिता !
 

Views: 350

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मैं यह समझ नहीं पा रहा हूँ कि आपको यह कहने की आवश्यकता क् पड़ी कि ''इस मंच पर मौजूद सभी…"
5 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी ' मुसफ़िर' जी सादर अभिवादन अच्छी ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई स्वीकार…"
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीया रिचा यादव जी सादर अभिवादन बेहतरीन ग़ज़ल हुई है वाह्ह्हह्ह्ह्ह! शैर दर शैर दाद हाज़िर है मतला…"
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सादर अभिवादन उम्द: ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई शैर दर शैर स्वीकार करें!…"
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी ' मुसफ़िर' जी सादर अभिवादन!आपका बहुत- बहुत धन्यवाद आपने वक़्त…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सादर नमस्कार आपका बहुत धन्यवाद आपने समय दिया ग़ज़ल तक आए और मेरा हौसला…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"जी, सादर आभार।"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. रिचा जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
8 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"जी सहृदय शुक्रिया आदरणीय इस मंच के और अहम नियम से अवगत कराने के लिए"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service