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लघुकथा - जीवन पथ

मैं जिस शहर में रहता हूं, वहां एक नेत्रहीन व्यक्ति है। वे पूरे शहर में खुद ही एक डंडे के सहारे कहीं भी चले जाते हैं। उन्हें इस तरह ‘जीवन पथ’ पर आगे बढ़ते बरसों हो गया। उनकी जिजीविषा देखकर हर कोई हतप्रद रह जाता है। यह तो हम सब कहते रहते हैं कि बेसहारे को सहारे की जरूरत होती है, मगर यह नेत्रहीन व्यक्ति ऐसी सोच रखने वालों के लिए मिसाल है। दरअसल, पिछले दिनों नेत्रहीन व्यक्ति शहर के चौक से गुजर रहा था, इसी दौरान उन्हें सड़क किनारे से आवाज आई कि कोई उसे सड़क पार करा दे। इससे पहले कोई उस असहाय व्यक्ति को पार लगाने आता, उससे पहले ही नेत्रहीन व्यक्ति ने स्वस्फूर्त पहल करते हुए उसे दूसरी छोर पहुंचाया। कथा का तात्पर्य यही है कि किसी को असहाय नहीं समझना चाहिए, मगर जो मदद की अपेक्षा रखते हैं, उन्हें सहायता देने हर समय तैयार रहना चाहिए। ऐसे में नेत्रहीन व्यक्ति का प्रयास निःसंदेह संस्मरणीय है। इससे निश्चित ही सीख मिलती है। यह भी समझ मंे आती है कि यही सबसे बड़ा ‘जीवन पथ’ है।

राजकुमार साहू
जांजगीर, छत्तीसगढ़
मोबा . - 074897-57134, 098934-94714, 099079-87088

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Comment by आशीष यादव on December 6, 2011 at 2:54pm

post bahut achchha lga. sundar sandesh bhi hai isme. lekin ye laghukatha kaha hai?


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 6, 2011 at 12:20pm

यह पोस्ट मुझे लगता है कि लघु कथा तो नहीं ही है, यह आलेख की तरह लगता है जिसमे सन्देश दिया गया है | 

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