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क्षणिकाएँ


१) 
 
आदमी
जो भी गया
अदालत में.
लौटकर 
आया नही
गया था
जिस हालत में!!!! 
 
२)
 
महंगाई क़े
थप्पड़ 
खा कर
पब्लिक 
हलकान है.
आपने
एक थप्पड़ खाया
तो
परेशान है!!!!!!!!
 
३)
 
लोग भी
ऐसे-ऐसे
मंज़र 
पेश करतें है.
गुड़ से
दोस्ती!
गुलगुलों से
परहेज़ 
करतें है.
 
--अविनाश बागडे.

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Comment

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Comment by AVINASH S BAGDE on February 15, 2012 at 10:54am
Comment by Rash Bihari Ravi on December 7, 2011 at 12:25pm

bahut sundar sir ji

१)
हैं  सच 
जो हो लिये 
वकीलों की आदि ,
सच ये मानिये 
उनकी हो 
गई बर्बादी !!!
२)
 
पहले जूते
अब थप्पड़  
ये पब्लिक 
सज्ञान है.
क्या - क्या 
ना देखना पड़ेगा 
बस एक थप्पड़ 
से परेशान है!!!
Comment by AVINASH S BAGDE on December 6, 2011 at 8:10pm

आशीष यादव जी आपका आभार.

Comment by AVINASH S BAGDE on December 6, 2011 at 8:10pm

बागी जी आपका स्नेह प् कर मै अभिभूत हूँ...आभार.

Comment by आशीष यादव on December 6, 2011 at 2:56pm

waah, tino kshanikayein bahut achchhi lgi.

khastaur par dusri wali bahut achchhi lgi.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 6, 2011 at 12:23pm

बागडे साहब, यें क्षणिकाएँ अपना प्रभाव छोड़ने में सफल है, त्वरित रूप से सटीक वार करती है, बहुत बहुत बधाई आपको |

Comment by AVINASH S BAGDE on December 6, 2011 at 10:19am

सौरभ जी आपका  स्नेह यूँ ही बना रहे.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 6, 2011 at 9:16am

वाह - वाह ! बहुत खूब !! ..

सामयिक घटनाओं और वर्तमान को संजीदगी के साथ स्वर दिया है आपने. बहुत -बहुत बधाई अविनाशजी.

कृपया ध्यान दे...

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