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October 2010 Blog Posts (168)

था उसके चेहरे पे सकून ,

था उसके चेहरे पे सकून ,

माँ का आया था फोन ,

पाँच सौ रुपया मिल गया ,

तीन सौ राशन वाले को दिया ,

बाकी में छोटे भाई का पैंट ,

संग में सिलवा दिया हैं शर्ट ,

आज स्कूल भेजा हैं उसको ,

खरीद कर दिया हैं स्लेट ,

भाई स्कूल गया ये जान कर ,

था उसके चेहरे पे सकून !



उम्र के दसवे साल में ,

काम करता चाय की दुकान में .

घर से दूर बहुत दूर ,

हो कर आया था मजबूर ,

सपना था कुछ आँखों में ,

बडपन थी उसकी बातो में ,

पापा के इंतकाल के… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on October 27, 2010 at 2:00pm — No Comments

दूर पहाड़ों से आया

मैं दूर पहाड़ों से आया



मैं दूर पहाड़ों से आया

जहाँ सर्द हवाएं बहती हैं

है व्यास पार्वती का संगम

जहाँ यादें मेरी बसती हैं

मेरे अपनें सभी वहीँ हैं

लेकिन मैं हूँ सबसे दूर

यह था किस्मत का लिखा

नहीं किसी का कसूर

ना जानें कब जा पाऊंगा

बापिस उन खूबसूरत फिजाओं में

कोई याद तो करता होगा

मुझको मेरे गाँव में

'दीपक शर्मा' था उस वक़्त मैं

अब हूं 'दीपक कुल्लुवी'

शक्ल-ओ-सूरत बदली,तखल्लुस बदला

लेकिन सीरत ना बदली

लेकिन… Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on October 27, 2010 at 11:00am — 3 Comments

मैं भी जड़ बनूगा

थकती नहीं
पेड़ की जड़ें
पानी की खोज में
छू ही लेती है
भूमिगत जलस्तर ॥
मरने नहीं देती
अपनी जिजीविषा ॥


बखूबी जानती है वह
हर पत्ते को
हरियाली ही देना है
उसका काम ॥

अब .....
नहीं थकूगा
मैं भी जड़ बनूगा॥

Added by baban pandey on October 27, 2010 at 6:59am — No Comments

कहे तो कैसे बोलो.....

चातक मन प्यासा फिरे, दोनों आँखें मूँद .

पियूँ-पियूँ रटता रहे, पिए न एको बूँद ...

प्यास कैसे बुझ पाय ?

मन की मन में रह जाय...

रूठा आज गुलाब है, मधुकर है बेचैन

भूली सारी गायकी,कटे न काटे रैन

कहाँ बोलो अब जाय..

प्रीति को कैसे पाय?

स्वाति टपके सीप में, मोती सी बन जाय

रेत,पंक में जा गिरे , तो दलदल ही कहलाय

संग का असर न जाय

कोई कैसे समझाय ?

मंहगाई सुरसा भई, अतिथि हुए हनुमान...

सुरसा-मुख घटना नहीं,तुम्ही घटो मेहमान...

कोई अब क्या…

Continue

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 26, 2010 at 10:30pm — 5 Comments

गुण (प्रेरक प्रसंग)

एक गावं में दो ब्राह्मण भाई रहते थे ! छोटे भाई के चार बेटे थे जोकि एक से बढ़कर एक नालायक और महामूर्ख थे ! जबकि बड़े भाई का एक ही बेटा था जो सर्वगुण संपन्न और प्रसिद्ध कथा वाचक भी था l एक बार वह कथा वाचक कहीं कथा संपन्न करके आया जहाँ से उसे बहुत सारा धन और उपहार प्राप्त हुए ! ये देख कर छोटे भाई के नालायक बेटों ने सोचा कि क्यों ना हम भी कथा वाचक बन जाएँ ! उन्होंने अपने पिता से इस बाबत बात की तो उनके पिता ने उन्हें मना किया क्योंकि उसे अपने पुत्रों की औकात का भली भांति ज्ञान था ! लेकिन चारों भाई… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on October 26, 2010 at 4:30pm — No Comments

समाज, शराब और सरकार

बदलते परिवेश के साथ लोगों की जीवनशैली और रहन-सहन में परिवर्तन आया है और समाज में भी व्यापक स्तर पर बदलाव देखने में आ रहा है। लोग जहां भौतिकवादी जीवन जी रहे हैं, वहीं नई पीढ़ी एक ऐसे अंधकार में गुम होती जा रही है, जिसकी अंतिम परिणिति की कल्पना कर ही मन सिहर उठता है। समाज में नशाखोरी की प्रवृत्ति इस कदर हावी हो गई है कि इसने हर वर्ग को अपने चपेट में ले लिया है। युवा पीढ़ी तो लगातार नशाखोरी की गिरफ्त में आ रही हैं और उनका भविष्य भी तबाव हो रहा है। निश्चित ही समाज में इसका विकृत चेहरा भी सामने आ रहा… Continue

Added by rajkumar sahu on October 26, 2010 at 12:05pm — 5 Comments

छोटू...



छोटू है वह

होटल में बर्तन धोता है ...

सुबह-शाम भोजन पाने को

मालिक की झिडकी सहता है ...



गोरा है...पर हाथ-पाँव में मैल जमा है..

स्नान करे कब?बहुत व्यस्त है ...

हाथ-पैर-मुंह तक धोने का होश नहीं है .



"छोटू",मैंने एक दिन पूंछा उससे,

"स्कूल जाओगे?"

"अभी गया था..चाय बाँट कर आया हूँ मै"

बोला मुझसे,"फिर जाना है ...वापस जूंठे ग्लास उठाने.."

"नहीं...टांग कर बस्ता पीछे,

जाओगे क्या… Continue

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 26, 2010 at 7:00am — 12 Comments

रंग बदलना सीख ले जमाने की तरह..!!!

रंग बदलना सीख ले जमाने की तरह ,
ना सच को दिखा आईने की तरह ।

ना पकड इक साख को उल्लू की मानिंद ,
वक़्त-ए-हिसाब बैठ डालों पर परिंदों की तरह ।

ना उलझा खुद को रिश्तों की जंजीरों में ,
कर ले मद-होश अपने को रिन्दों की तरह ।

ना कर हलकान खुद को ,हर तरफ है मायूसी ,
हो जा बे-दिल बे-मुरव्वत परिंदों की तरह ।

गर मिलती है इज्ज़त यहाँ ,मरने के बाद ,
फिर ‘कमलेश’क्यों जीना जिन्दों की तरह ॥

Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on October 25, 2010 at 10:17pm — 4 Comments

जब चमन पुरबहार होते हैं

जब चमन पुरबहार होते हैं

खार भी लालाज़ार होते हैं



कौन साथी है दौर-ऐ-ग़ुरबत का

सब बनी के ही यार होते हैं



हम गिला क्या करें जफ़ाओं का

जब सितम बार बार होते हैं



टूट जाते है चन्द बातों से

रिश्ते कम पायदार होते हैं



अजनबी हमसफ़र तो ऐ लोगों

रास्ते का गुबार होते हैं



आज के दौर की अदालत में

बेगुनाह गुनाहगार होते हैं



जिनमे इमरज-ऐ-बुग्ज़-ओ-कीना हो

क़ल्ब वो दाग़ दार होते है



यूँ न अबरू को दीजिये… Continue

Added by Hilal Badayuni on October 25, 2010 at 8:22pm — 8 Comments

सत्य (प्रेरक प्रसंग)

बहुत पुरानी बात है कहीं एक गावं था, जहाँ के अधिकाँश लोग येन केन प्राकरेण धन कमाने में लगे हुए थे | उन सब के लिए पैसा ही भगवान था | लेकिन उसी गावं में एक ब्राह्मण ऐसा भी था जिसने कभी भी कोई बुरा काम नही किया था, सत्य की राह पर चलते हुए जो भी मिलता उसी से गुजारा करता था | गाँव वाले कतई उसकी इज्ज़त नहीं किया करते थे क्योंकि वह बेचारा निर्धन था | एक दिन उस ब्राह्मण ने पूजा पाठ करते हुए भगवान को उलाहना दिया,



"हे ईश्वर, इस पूरे गाँव में एक मैं ही हूँ जो कि धर्म और सत्य की राह पर चल रहा… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on October 25, 2010 at 3:30pm — 8 Comments

शिक्षा (लेख)

शिक्षा का हमारे दैनिक, नैतिक, सामाजिक, व्यावहारिक तथा व्यावसायिक जीवन में बहुत बड़ा महत्व है | जब से मानव सभ्यता विकसित हुई है , तभी से हमारे जीवन में शिक्षा का बहुत बड़ा योगदान रहा है | वैदिक काल में गुरुकुल के माध्यम से शिक्षा प्रदान की जाती थी तथा गुरु शिष्य परम्परा बनाये रखने के लिए दीक्षांत समारोह का आयोजन किया जाता था | जिसमे शिष्य गुरु को गुरु दक्षिणा देता था | पहले वेदों, पुराणों, शास्त्र ग्रंथो तथा राजनीती शास्त्र, तर्क विज्ञान, की शिक्षा दी जाती थी | लेकिन जैसे - जैसे समय बदलता गया… Continue

Added by Pooja Singh on October 25, 2010 at 3:30pm — 3 Comments

कैसे कोई हमको अलग कर पायेगा

क्या पता था राम को, कि ऐसा दिन भी आएगा.

उनकी अयोध्या में ,उन्हें खैरात बांटा जायेगा.

जिस ज़मीं पर ठुमक-ठुमक, भगवान को चलना पड़ा था.

जिस जगह नारायण को, नर रूप में आना पड़ा था.

भावी को भी क्या पता था, ऐसा दिन भी आयेगा.

राम के अस्तित्व को, मुद्दा बनाया जाएगा.

क्या पता था राम --------------------------------

हिन्दू मुस्लिम हैं अलग, ये कब कहा था राम और रहमान ने?

मंदिर मस्जिद है जुदा, क्या यह सिखाया है खुदा भगवान ने?

नींव नफरत है धरम की, है लिखा गीता में या… Continue

Added by satish mapatpuri on October 25, 2010 at 2:54pm — 2 Comments

मुक्तिका: आँख में संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:



आँख में



संजीव 'सलिल'

*

जलती, बुझती न, पलती अगन आँख में.

सह न पाता है मन क्यों तपन आँख में ??



राम का राज लाना है कहते सभी.

दीन की कोई देखे मरन आँख में..



सूरमा हो बड़े, सारे जग से लड़े.

सह न पाए तनिक सी चुभन आँख में..



रूप ऊषा का निर्मल कमलवत खिला

मुग्ध सूरज हुआ ले किरन आँख में..



मौन कैसे रहें?, अनकहे भी कहें-

बस गये हैं नयन के नयन आँख में..



ढाई आखर की अँजुरी लिये दिल… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 25, 2010 at 9:34am — 1 Comment

ग्राफो योग

ग्राफो योगा जीवन को गौरवान्वित करने का अत्याधुनिक तकनीक है.मनुष्य के जीवन मे अपार संभावने छीपी होती हैं. प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन को सुखमय बनाना चाहता है. इस सुख की प्राप्ति के लिए किए गये प्रयास के कारण ही आज संसार सुहाना लगता है.

मनुष्य के लिए सर्वाधिक प्रिय है कष्ट विहीन जीवन, सफलता भरी जिंदगी.

यह सफलता या असफलता मनुष्य के अंदर मौजूद शक्ति पर निर्भर करता है. संसार के सभी तत्व मनुष्य के अंदर पाए जाते है. इसलिए कहा गया है- यथा पिंडे तथा ब्रह्माण्डे.

मनुष्य की हर क्रिया उसके… Continue

Added by Sachchidanand Pandey on October 25, 2010 at 4:30am — 2 Comments

एहसान




ऐ जिंदगी !

हम एहसान तुझ पर किये जाते हैं

दिल के टुकड़े होने पर भी

उसको पाकर खोने पर भी

मन ही मन रोने पर भी

दर्द जिगर में होने पर भी

ऐ जिंदगी!

हम जिए जाते हैं

हम एहसान तुझ पर किये जाते हैं

{दीप जीरवी}


Added by DEEP ZIRVI on October 24, 2010 at 9:51pm — 2 Comments

बड़े खामोश रहते हैं अभी हम,



बड़े खामोश रहते हैं अभी हम,

सुना है लोग अब भी बोलते हैं .

बड़े दिल से लगाकर दिल यहाँ पर,

सुना है लोग अब दिल तोड़ते हैं.



कभी अमुआ की अमराई पे कोयल ,

कुहू कुहु के गाती गीत थी पर ,

सुबह की शाख पे बैठी कोयल है ,

नगर में गीत कागा छेडते हैं.



धनक खिलती दिखी थी कल जहां पर ,

आज मरघट सा वो पनघट रुआंसा .

जो बुझाया करे थे प्यास कल तक,

आज वोही क्यों प्यासा छोड़ते हैं



वो सागर रूप के… Continue

Added by DEEP ZIRVI on October 24, 2010 at 9:30pm — 3 Comments

ग़ज़ल

कैसी बहार यह आई मेरे शहर अंदर,

हर कली मुरझाई मेरे शहर अंदर.



खून सफ़ेद हुआ है रिश्ते नातो का,

किस ने ज़हर पिलाई मेरे शहर अंदर.



दूर आप क्या हुए जैसे हर तरफ,

तन्हाई तन्हाई मेरे शहर अंदर.



हम साए का साया नज़र नही आता,

हो गयी पीर पराई मेरे शहर अंदर.



प्यार के बादल उड़ कर कहाँ चले गये,

नफ़रत की घटा है छाई मेरे शहर अंदर.



आँसू पीड़ा दर्द की सौगात नयी,

हर मानव ने पाई मेरे शहर अंदर.



हर पल रोशन करने की वह बात… Continue

Added by Hardam Singh Maan on October 24, 2010 at 8:00pm — 3 Comments

अब तो बस नयन बरसते हैं

सावन की घटा घहराती हैं,

मन में हलचल कर जाती हैं ..

विरही मन छोड़ रूठना अब,

प्रियतम की याद सताती है...

काले पीले बादल आते,

वर्षा की आशा ले आते,

मन हरा भरा हो जाता तब,

प्रियतम फिर से घर को आते,

प्रियतम की यादों को सावन,

फिर घेर घेर ले आता है,

दर्शन की अमित चाह में अब,

जीवन उत्साह बढ़ाता है ...

मन व्याकुल है तन आकुल है,

है कंठ रुद्ध आशा अपूर्ण..

प्रिय आँखों में बस जाओ तो,

जीवन हो… Continue

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 24, 2010 at 3:30pm — 4 Comments

दस्तक....

आज सुबह

जब घड़ी की सुइयाँ

हो तैयार

निकल पड़ीं विपरीत दिशाओं को

तभी

हुई दरवाज़े पर दस्तक

बंद आँखों से ही

नींद ने हिलाया मुझे

और ना चाहते हुए भी

आधी सोई आधी जागी आँखों से

दरवाज़ा खोला मैने

फटे होंठों से मुस्कुराते हुए

खड़ी थी ठिठुरती ठंडI



चाय की प्याली की गरमाहट

महसूस करते हुए

दोनों हथेलियों पर

खिड़की से बाहर झाँका मैने

तो आज सूरज ने भी

नहीं लगाई थी

दफ़्तर में हाज़िरी

बादलों की रज़ाई… Continue

Added by Veerendra Jain on October 24, 2010 at 1:09am — 6 Comments

मेरी भारत माँ....

आभार तुम्हारा कैसे माँ, मै व्यक्त करूँ....?

जीवन के बदले बोलो माँ मै क्या दे दूँ....?



तेरी मिट्टी की खुशबू माँ ...

मेरे तन मन मे छाई है.....

तेरी आशीषें ले कर ही...

पुरवाई फिर से आई है....

सुख यश की इन सौगातों का उपकार मै कैसे व्यक्त करूँ...?

जीवन के बदले बोलो माँ मै क्या दे दूँ...?



तेरी मिट्टी से जो उपजा ,

वह अन्न बड़ा बलदायी है...

तुझको छू कर ही पवन आज

शीतल है...व सुखदाई है...

इन सुंदर सुखद बहारों का मै मोल तुम्हे कैसे…
Continue

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 23, 2010 at 8:30am — 3 Comments

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Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
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