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शिक्षा का हमारे दैनिक, नैतिक, सामाजिक, व्यावहारिक तथा व्यावसायिक जीवन में बहुत बड़ा महत्व है | जब से मानव सभ्यता विकसित हुई है , तभी से हमारे जीवन में शिक्षा का बहुत बड़ा योगदान रहा है | वैदिक काल में गुरुकुल के माध्यम से शिक्षा प्रदान की जाती थी तथा गुरु शिष्य परम्परा बनाये रखने के लिए दीक्षांत समारोह का आयोजन किया जाता था | जिसमे शिष्य गुरु को गुरु दक्षिणा देता था | पहले वेदों, पुराणों, शास्त्र ग्रंथो तथा राजनीती शास्त्र, तर्क विज्ञान, की शिक्षा दी जाती थी | लेकिन जैसे - जैसे समय बदलता गया वैसे ही वैसे लोगो की विचार धाराओं में परिवर्तन होता गया है | जब भारत को अंग्रेजो ने अपना गुलाम बना लिया , तब से भारत की अपनी सभ्यता , संस्कृति विलुप्त सी होती गयी | क्योकि अंग्रजो ने हिंदुस्तान को इस तरह से गुलाम बनाया की वह हमारे खून में जहर की भाति उतर गयी है | भारत में अंग्रेजो के आते ही पश्चिमी सभ्यता , संस्कृति का प्रचार प्रसार होने लगा ताकि हमे शारीरिक दृष्टि से ही नही बल्कि मानसिक, राजनितिक तथा भाषाई दृष्टि से भी गुलाम बनाया जा सके | जिसमे मैकाले की शिक्षा पद्धति विशेष रूप से उल्लेखनीय है, आज के इस समय में जहा पश्चिमी सभ्यता, संस्कृति का बोल - बाला है, वहा पर आज के इस परिवेश में आने वाली पीढ़ी को अपने देश की सभ्यता, संस्कृति की पहचान ही नही हो पायेगी, क्योकि वो इसे जान तथा समझ ही नही पायेगे की हमारे देश का अस्तित्व कहा पर है | क्या आज की शिक्षा पद्धति २१ वि सदी के भारत को कितना सभ्य, सुसंस्कृत तथा विकसित समाज दे प़ा रही है | मनुष्य पहले से कितना ज्यादा सभ्य तथा सुसंस्कृत हुआ है |

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Comment by shekhar jha` on December 24, 2010 at 9:42pm
puja je aapne kya khub likhe hai
Comment by Pooja Singh on October 27, 2010 at 10:24am
धन्यवाद गणेश जी

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 25, 2010 at 8:39pm
पूजा जी, आपने बिलकुल सही नब्ज पकड़ा है, अग्रेजी सभ्यता को निभाते निभाते हम आज अपनी सभ्यता और संस्कृति को भूलते जाते है, मैने देखा है कि आज के बच्चों को बड़ों के पैर छूने मे शर्म महसूस होती है, वो चरण नहीं बल्कि घुटना स्पर्श करते है , कई बार मैने टोका भी है कि यदि श्रद्धा नहीं है तो हाथ जोड़ कर ही प्रणाम करों, पर यह घुटना स्पर्श करने कि परंपरा हमारी नहीं है |
बहुत ही सुंदर लेख , बधाई स्वीकार कीजिये |

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