एक गावं में दो ब्राह्मण भाई रहते थे ! छोटे भाई के चार बेटे थे जोकि एक से बढ़कर एक नालायक और महामूर्ख थे ! जबकि बड़े भाई का एक ही बेटा था जो सर्वगुण संपन्न और प्रसिद्ध कथा वाचक भी था l एक बार वह कथा वाचक कहीं कथा संपन्न करके आया जहाँ से उसे बहुत सारा धन और उपहार प्राप्त हुए ! ये देख कर छोटे भाई के नालायक बेटों ने सोचा कि क्यों ना हम भी कथा वाचक बन जाएँ ! उन्होंने अपने पिता से इस बाबत बात की तो उनके पिता ने उन्हें मना किया क्योंकि उसे अपने पुत्रों की औकात का भली भांति ज्ञान था ! लेकिन चारों भाई अपनी ज़िद पर अड़ गए और एक दिन किसी गाँव के मंदिर में कथा वाचने के लिए जा पहुंचे ! गाँव वालो ने चार ब्राह्मणों को देखा तो गाँव के मुखिया से आज्ञा लेकर कथा वाचन का कार्य प्रारंभ करवा दिया ! अब ज्ञान के नाम पर तो वे चारों शून्य थे ही तो उन्होंने कथा कुछ यूँ प्रारंभ की :
पहला बोला "राजा पूछेंगे तो क्या बोलूँगा"
दूसरा बोला "जो तेरी गति ओ मेरी गति "
तीसरा बोला " ये चतुराई कताक दिन चले "
चौथा बोला " जताक दिन चले तताक दिन चले "
उनको ना तो कथा कहने का न ज्ञान था न ही शास्त्रों की जानकारी अत: उपरोक्त वाक्यों को बोलते बोलते उन्होंने कई दिन बिता दिए ! यह सब देखकर गाँव का मुखिया बहुत नाराज़ हुआ और उसने अपने आदमियों से कहा कि ये पोंगा पंडित हमें मूर्ख बना रहे हैं इसलिए इन्हें पीट पीट कर गाँव से बाहर खदेड़ दिया जाए !
ये बात उस गाँव का एक वृद्ध नाई भी सुन रहा था ! उसने मुखिया से कहा कि ये चारों महापण्डित मालूम होते हैं, शायाद इसने गूढ़ ज्ञान की बातें हम गावं वालो की समझ में नहीं आ रही हैं ! इसलिए इन्हें अपमानित करने की बजाये समुचित सामान और दान दक्षिणा देकर बिदा किया जाए ! मुखिया ने नाई से कहा अगर वे तुम्हारी दृष्टि में महापण्डित हैं तो इनकी बातो का अर्थ तुम ही समझाओ l
तब उस चालाक नाई ने कहा कि पहला पंडित जो बोल रहा हैं "राजा पूछेंगे तो क्या बोलूँगा" इसका अर्थ हैं - सुमंत जी जब राम जी को अयोध्या वापिस चलने का अनुरोध करने लगे और राम जी ने वापिस जाने से इनकार कर दिया तब सुमंत ने राम जी से पुछा कि यदि महाराज दसरथ पूछेंगे तो मैं क्या जवाब दूंगा ? यह सुनकर मुखिया जी खुश हुए !
मुखिया ने आगे पूछा दूसरा पंडित जो बोल रहा हैं "जो तेरी गति ओ मेरी गति " इसका क्या अर्थ है ! तो नाई ने उत्तर दिया कि जब सुग्रीव जी विभीषण से मिले तो उनसे बोले जैसी तुम्हारी गति वैसी ही मेरी भी है, तुम भी भाई के मरने के बाद राजा बने और मै भी !
मुखिया ने कहा अब जो तीसरे और चौथा पंडित की बातो का अर्थ भी बता दो ! नाई ने कहा कि ये दोनों ही रावण-मंदोदरी से संवाद का हिस्सा है ! "ये चतुराई कताक दिन चले " का तात्पर्य है जब मंदोदरी ने रावण से पूछा कि सीता को आपने जो यहाँ बंदी बना कर रखा है ये कब तक चलेगा ! और "जताक दिन चले तताक दिन चले" के सन्दर्भ में नाई ने कहा कि मंदोदरी के प्रश्न के उत्तर में यह रावण का उत्तर था कि "जब तक चलेगा तब तक चलेगा !"
ये बात मुखिया और गावं वालो को भी भा गई और उन्होंने उन चारों को बहुत सारा धन और उपहार देकर सम्मानपूर्वक गाँव से विदा किया ! जब वे चारों तथाकथित कथावाचक भाई गाँव से जा रहे थे तो नाई उनके पास आया और बोला कि हर जगह मुझ जैसा मूर्ख तुम सबको बचाने के लिए नही मिलेगा ! अत: आज से तौबा करें कि भविष्य में बिना सीखे कथा वाचन का काम कभी नहीं करोगे ! किसी ने सच ही कहा है कि व्यक्ति जाति से नहीं बल्कि अपने गुणों से बड़ा और महान बनता है !
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