For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

September 2010 Blog Posts (168)

प्रेम का पर्याय है दोस्ती : जया केतकी

दोस्ती, एक ऐसा शब्द इसे जितना परिभाषित करने का प्रयास करो उतना विस्तार पाता है। पर न तो इसमें उलझन हैं और न ही किसी प्रकार के विरोधाभास का डर रहता है। अगर आपकी मित्रता पक्की है तो उससे अच्छा कोई अन्य रिश्ता नहीं। सदियों की विचारधाराओं के सम्मिश्रण से तैयार निष्कर्ष से यह पता चलता है कि समाज के हर वर्ग में दोस्ती की जितनी भी मिसालें हैं सभी यही कहती हैं। मसलन कृष्ण-सुदामा की मित्रता, मित्रता का दायरा परिभाषित नहीं है, फिर भी मित्रता करते समय यह विचार अवश्य ही कर लेना चाहिए कि आपकी मित्रता… Continue

Added by Jaya Sharma on September 2, 2010 at 7:30am — 4 Comments

अवतार हेतु आर्त-निवेदन

सभी ओपन बुक्स परिवार को जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ

जन्माष्टमी के पावन पर्व पर आईये हम और आप सब मिलकर सच्चिदानन्द घनआनन्द आनन्द स्वरूपा श्री कृष्ण भगवान को एक बार पुनः इस धरती पर अवतरित हो पापों का नाश करने का आर्त निवेदन करें!



हे देवताओं के स्वामी, सेवकों को सुख देने वाले, शरणागत की रक्षा करने वाले भगवान्! आपकी जय हो! ज्य हो!! हे गो-ब्राह्मणों का हित करनेवाले, असुरों का विनाश करने वाले, समुद्र की कन्या (श्रीलक्ष्मी जी)- के… Continue

Added by Narendra Vyas on September 2, 2010 at 6:44am — 4 Comments

चार पंक्तियाँ 'कान्हा' के 'नाम'...!!


घर तू आएगा ये जानती थी मैं...
इसलिए तो मटकी है जान के थोड़ी ऊँची बाँधी...
गुम हो तुझे कुछ पल निहार तो सकूँगी...
वरना तुझे देखने उमड़ पड़ती है हर पल गोपियों की आंधी...!!

::::जूली मुलानी::::
::::Julie Mulani::::

Added by Julie on September 2, 2010 at 1:30am — 2 Comments

बाल गीत: लंगडी खेलें..... -संजीव 'सलिल'

*

बाल गीत:



लंगडी खेलें.....



आचार्य संजीव 'सलिल'

*

आओ! हम मिल

लंगडी खेलें.....

*

एक पैर लें

जमा जमीं पर।

रखें दूसरा

थोडा ऊपर।

बना संतुलन

निज शरीर का-

आउट कर दें

तुमको छूकर।

एक दिशा में

तुम्हें धकेलें।

आओ! हम मिल

लंगडी खेलें.....

*

आगे जो भी

दौड़ लगाये।

कोशिश यही

हाथ वह आये।

बचकर दूर न

जाने पाए-

चाहे कितना

भी भरमाये।

हम भी चुप रह

करें… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 1, 2010 at 10:18pm — 6 Comments

रंगीन आतंकवाद

रंगीन आतंकवाद





'जननी जन्म भूमिष्च स्वर्गादपि गरीयसि' कि भावना से ओत-प्रोत एक युवा, सन्यासी,स्वामी विवेकानंद ने शिकागो कि धरती पर विश्व धर्म सम्मेल्लन में अपने व्याख्यान का प्रारंभ "DEAR SISTER AND DEAR BROTHER ...." से करके पूरी दुनिया में विश्व बंधुत्व के भाव से हिंदुस्तान का परचम लहराने वालI सन्यासी उस समय अपने भगवा वस्त्र में हिदुस्तान का मुकुट बना चमक रहा था,जिसे याद करके आज भी करोनो युवा उत्साह और स्फूर्ति व् नए उमंग से भर जाते हैं. उस सन्यासी, युवा को क्या पता था कि आगामी… Continue

Added by alka tiwari on September 1, 2010 at 5:42pm — 3 Comments

पगली

------- पगली -----ऊपर वाले तेरी दुनिया कितनी अजब निराली है

कोई समेट नहीं पाता है किसी का दामन खाली है |



...एक कहानी तुम्हें सुनाऊँ एक किस्मत की हेठी का

न ये किस्सा धन दौलत का न ये किस्सा रोटी का

साधारण से घर में जन्मी लाड़ प्यार में पली बढ़ी थी

अभी-अभी दहलीज पे आ के यौवन की वो खड़ी हुई थी

वो कालेज में पढ़ने जाती थी कुछ-कुछ सकुचाई सी

कुछ इठलाती कुछ बल खाती और कुछ-कुछ शरमाई सी

प्रेम जाल में फँस के एक दिन वो लड़की पामाल हो गई

लूट लिया सब कुछ… Continue

Added by jagdishtapish on September 1, 2010 at 11:51am — 4 Comments

जन्माष्टमी पर विशेष : नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की

जन्माष्टमी पर विशेष : नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की

मथुरा में कंस की दुष्टता दिनों-दिन बढ़ती जा रही थी। उसके अत्याचारों से त्रस्त जनता भगवान से नित्य प्रार्थना करने लगी। एक दिन आकाशवाणी हुई कि देवकी और वसुदेव की आठवी संतान कंस का सर्वनाश करेगी। इसके बाद कंस ने देवकी और वसुदेव को करागार में बंदी बना कर रख दिया। अब उनकी जो भी संतान होती उसे कंस मार डालता। परन्तु देवकी और वसुदेव ने यह निश्चय कर लिया था। कि वे अपनी आठवी संतान को जरुर बचायेंगे।… Continue

Added by Jaya Sharma on September 1, 2010 at 8:30am — 5 Comments

बहुत है...............

आजकल रातों के सन्नाटे मे भी शोर बहुत है...........



शाम ढली नही फिर भी अंधेरा घोर बहुत है...........









सुना था मोहब्बत पत्थर को मोम कर देता है..........





लगता है बस इक तेरा ही दिल कठोर बहुत है..............







अपने अपने दिल को रखना यारों संभाल के.............



इस शहर मे आजकल घूम रहे हँसी चोर बहुत है...............







लगता है आज फिर टपकेंगी बस्ती की कई छतें...................



आसमान… Continue

Added by Pallav Pancholi on September 1, 2010 at 12:07am — 1 Comment

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहों पर दोहे लिखे, दिया सृजन को मान। रचना की मिथिलेश जी, खूब बढ़ाई शान।। आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत दोहे चित्र के मर्म को छू सके जानकर प्रसन्नता…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई शिज्जु शकूर जी सादर,  प्रस्तुत दोहावली पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आर्ष ऋषि का विशेषण है. कृपया इसका संदर्भ स्पष्ट कीजिएगा. .. जी !  आयुर्वेद में पानी पीने का…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, प्रस्तुत दोहों पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service