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August 2011 Blog Posts (85)

ऐ मेरे वतन के लोगों ....

 

 

 

फिर नज़दीक आती स्वतंत्रता दिवस की एक और वर्षगाँठ और मन  में उठते सवालों का बवंडर ,क्या यह पूर्ण स्वतंत्रता है  या क्या येही स्वतंत्रता है ? की जब जिसे चाहो लूट लो ,मार दो ,उजाड़ दो ? या फिर ..आज शहीदों को नमन करो कल भूल जाओ ? या फिर गरीबों की सहायता करने के झूठे वादे करो ,अपना मतलब साधो और…

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Added by Lata R.Ojha on August 10, 2011 at 10:00pm — No Comments

शौक (झलकी) भाग-१

शौक (झलकी) भाग-१
  • लेखक :-अतेन्द्र कुमार सिंह"रवि"
.
रामदीन-    अजी सुनती हो ,सोनू कहाँ है ? जरा उसे आवाज़ तो देना ---
रंजना-       (घर के अन्दर से आवाज़ आती है )
                 घर में तो नहीं है ........
रामदीन-   (घर में जाकर)
                शहर से हमारे सहपाठी श्री विनोद जी , जो एक बड़ी कम्पनी में इंजिनियर है आज वो…
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Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on August 10, 2011 at 10:30am — 4 Comments

चुड़ैल

 

            मै पश्चिम वाली कोठरी में आलमारी पर पड़े सामानों को इधर-उधर कर के देख रहा था| तभी मेरी नज़र एक निमंत्रण कार्ड पर पड़ी| कार्ड के ऊपर देखने पर पता चला की वो निमंत्रण भैया के नाम से था, प्रेषक वाली जगह के नाम से मै अनजान था| कौतुहल वश मैंने बड़ी आसानी से अन्दर के पत्र को निकाल कर देखा, अगले दिन बारात आने वाली थी| दर्शनाभिलाषी में पढने पर ज्ञात हुआ की वह निमंत्रण भैया के एक मित्र के बहन की शादी का था| मै और भैया एक ही स्कूल में पढ़े थे और उनके लगभग सारे मित्र मुझे भी…

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Added by आशीष यादव on August 10, 2011 at 10:00am — 11 Comments

धारावाहिक कहानी :- मिशन इज ओवर (अंक-१)

मिशन इज ओवर (कहानी )

लेखक -- सतीश मापतपुरी

  • अंक - एक

                                 अनायास विकास एक दिन अपने गाँव लौट आया. अपने सामने अपने बेटे को देखकर भानु प्रताप चौधरी के मुँह से हठात निकल गया -"अचानक ..... कोई खास बात ......?" घर में दाखिल होते ही प्रथम सामना पिता का होगा, संभवत: वह इसके लिए तैयार न था, परिणामत: वह पल दो पल के लिए सकपका गया ............. किन्तु, अगले ही क्षण स्वयं को नियंत्रित कर तथा अपनी बातों में सहजता का पुट डालते…

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Added by satish mapatpuri on August 10, 2011 at 1:30am — 6 Comments

ग़ज़ल :- हथेली पे कैक्टस उगाने से पहले

ग़ज़ल :- हथेली पे कैक्टस उगाने से पहले

 

हथेली पे कैक्टस उगाने से पहले ,

ज़रा सोचना तिलमिलाने से पहले |

 

मोहब्बत से तौबा तो …

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Added by Abhinav Arun on August 9, 2011 at 7:00am — 19 Comments

ग़ज़ल :- मत फलक पर चाँद तारे बोइये

ग़ज़ल :- मत फलक पर चाँद तारे बोइये

मत फलक पर चाँद तारे बोइए ,

रख परे सपनों को चुपकर सोइए |…

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Added by Abhinav Arun on August 8, 2011 at 2:37pm — 8 Comments

मित्र दिवस का अभिनन्दन

भारत देश के सब मित्रों का,
अन्तःमन से अभिनंदन है.
नैतिक मूल्यों को सदा समर्पित,
विश्व हेतु यह आह्वाहन आयी.

आओ हम इस मानवता को,
सत्य प्रेम नव पाठ पढ़ा दें,
भ्रष्ट अनैतिक आतंको का, 
दुनिया से अब नाम मिटा दें.

करें मित्रता हम सब मिलकर,
विश्व एक परिवार बनाकर,
आज मित्र दिवस के अवसर पर, 
यही सभी से अर्चन है.

Added by vishnukantmisra on August 7, 2011 at 11:00am — No Comments

गौरवान्ज्जली - शहीद की पत्नी के नाम एक पत्र

 अपने मन को मुर्झाने मत देना 

अपने बच्चों की दुनियाँ को कुम्हलाने मत देना 

बच्चे यदि पापा से मिलने को मचलें ,तो उन्हें ,

समन्दर की लहरें दिखा लाना ,

बगीचे में जाकर फूलों की खुशबू सुंघा लाना |

 

क्या हुआ जो एक जिन्दगी ने 

'अपने अनगिनत बसंत देश के नाम लिख दिए ?                        

लोग पतंगों की मानिंद जी कर…

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Added by mohinichordia on August 7, 2011 at 10:00am — 2 Comments

हर हाल में चलो

 

“.....चलो....... चलो हर हाल में चलो ”

पाँव फिसले जमीं पर तो घबराना क्या....

आसमां से कदम तुम मिलाते चलो ...

 

लाख तोड़े समंदर घरोंदे तो क्या ...

रेत के फिर भी घर तुम बनाते चलो…

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Added by प्रदीप सिंह चौहान on August 6, 2011 at 4:00pm — 4 Comments

सावन के झूले

 

मौसम आया लुभावना मनभावना

चलो सखी झूला झूलें |

झूला झुलाने सखी पी मेरे आये

तन मन हुआ लुभावना

चलो सखी झूला झूलें |…



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Added by mohinichordia on August 6, 2011 at 3:28pm — 3 Comments

चलो गाँव की ओर

 

बहुत रुलाया शहर ने  ,
दी जहर फिजा में  घोल ,
खुश रहना हैं तो यारो ,
चलो गाँव की ओर .
हर तरफ हैं मोटर ,
जो शोर मचाती हैं ,
कसम से यारो दिन क्या ,
रातों को नींद नहीं आती हैं ,
प्यारा नहीं लगता हैं 
यारा यहाँ का भोर ,
खुश रहना हैं तो यारो ,
चलो गाँव की ओर ,
यहाँ के तलाब को देखो…
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Added by Rash Bihari Ravi on August 6, 2011 at 1:30pm — 7 Comments

बाल गीत: बरसे पानी --संजीव 'सलिल'

बाल गीत:

बरसे पानी

संजीव 'सलिल'

*

रिमझिम रिमझिम बरसे पानी.

आओ, हम कर लें मनमानी.



बड़े नासमझ कहते हमसे

मत भीगो यह है नादानी.



वे क्या जानें बहुतई अच्छा

लगे खेलना हमको पानी.



छाते में छिप नाव बहा ले.

जब तक देख बुलाये नानी.



कितनी सुन्दर धरा लग रही, …

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Added by sanjiv verma 'salil' on August 6, 2011 at 10:30am — 6 Comments

मानसरोवर - 5

दान मनुज का परम धर्म और मानवता का गहना है.

दिखलाना कार्पण्य समय से पहले ही मरना है.

 

मंदिर के निर्माण हेतु चन्दा देना कोई दान नहीं.

हवन -कुण्ड में अन्न जलाना भी है कोई दान नहीं.

निज तर्पण के लिए विप्र को धन देना भी दान नहीं.

ईश्वर-पूजा की संज्ञा दे भोज कराना दान नहीं.

 

दान नहीं नाना प्रकार से मूर्ति -पूजन करना है.

दान मनुज का परम धर्म और मानवता का गहना है.

 

करना मदद सदा निर्धन की दान इसे ही कहते हैं.

जो पर…

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Added by satish mapatpuri on August 5, 2011 at 12:00am — 6 Comments

''गलतियाँ''



बचपन में

एक दिन 

एक संटी को

मुँह में दबाकर

मैं गन्ना

समझ बैठी

आज लिखते हुये

फिर भूल से 

किसी के पन्ने को

मैं अपना पन्ना

समझ बैठी

न जाने कितनी

होती रहती हैं

मिस्टेक जिंदगी में

कुछ अनजाने में

कुछ नादानी में

फिर आती है

झेंप…

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Added by Shanno Aggarwal on August 4, 2011 at 6:00pm — 8 Comments

व्यंग्य - अनजाने चेहरों की दोस्ती

यह बात अधिकतर कही जाती है कि एक सच्चा दोस्त, सैकड़ों-हजारों राह चलते दोस्तों के बराबर होता है। यह उक्ति, न जाने कितने बरसों से हम सब के दिलो-दिमाग में छाई हुई है। दोस्ती की मिसाल के कई किस्से वैसे प्रचलित हैं, चाहे वह फिल्म ‘शोले’ के जय-वीरू हों या फिर धरम-वीर। साथ ही भगवान कृष्ण-सुदामा की दोस्ती की प्रगाढ़ता जग जाहिर है। ऐसी दोस्ती की कहानियां धर्म ग्रंथों में कई मिल जाएंगी। यह भी कहा जाता है कि कलयुग में जितना हो जाए, बहुत कम है। कुछ भी हो जाए तो बस ‘कलयुगी’ उदाहरण दिया जाता है। कलयुग में बहुत… Continue

Added by rajkumar sahu on August 4, 2011 at 11:17am — No Comments

एक अश्क गिरा--ग़ज़ल

एक अश्क गिरा और फूट गया छन से

न हुई आवाज़ कोई रूठ गया तन से 
निकल पड़ा था सहर-ए-रौशनी  लिए हुए 
हो रही क्यूँ शाम कौंध रहा मन से 
पास थी बाज़ी एक हाँथ में यूँ  ज़रा 
पत्ते उलट गए हैं अपनीं ही रन से …
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Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on August 4, 2011 at 10:30am — 1 Comment

कहलाते 'किसान'

हम करते रहे खेतों में अनवरत काम 

सबका पेट भरते, कहलाते 'किसान'

 

भोर हुई कि चल पड़े डूबके अपने रंग 

ले हल कांधो पे और दो बैलों के संग 

बहते खून पसीना तज कर अपने मान 

सबका पेट भरते, कहलाते 'किसान'          ---१

 

हैं उपजाते अन्न सब मिलकर खेतों में हम 

फिर भी मालियत पे इसके हैं अधिकार खतम

सबकुछ समझ कर भी हम बनते है नादान 

सबका पेट भरते, कहलाते 'किसान'         ---२

 

भूखे हैं हमसब या अपना  है पेट…

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Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on August 4, 2011 at 9:29am — 2 Comments

गीत: काँटों से नहीं मुझको तो,फूलों से डर लगता है..........................

काँटों से नहीं मुझको तो फूलों से डर लगता है.

मतलब परस्त दोस्तों के वसूलों से डर लगता है.



घबडाते  नहीं है  अब हम तो  गम के आने-जाने से. 

हाँ,चौक जरूर जाते है खुशियों के झलक दिखाने  से,

अश्कों की आँख-मिचौली में नैनों के सपने टूट गये.

सदा डरते रहे हम गैरों से, अपनों के हाथों लूट  गये.

 

अब तो बदनामों से ज्यादा  मक़बूलों से डर लगता है.

मतलब परस्त दोस्तों के वसूलों से डर लगता है. 

 

अफ़सोस,ये जिंदगी दुनिया के रंग में हम ऐसे घूल…

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Added by Noorain Ansari on August 3, 2011 at 7:30pm — 6 Comments

क्यों तू ही मन को भाये...

और बहुत कुछ जग में  सुन्दर, फिर क्यों तू ही मन को भाये|

आग बुझाता है जब पानी, ये बरखा क्यों अगन लगाए||



जी करता है, पिघल मै जाऊं, तेरे साँसों  की गरमी में|

अजब सुकून मुझे मिलता है तेरे हाथों की नरमी से||

मै तुझमे मिल  जाऊं ऐसे, कोई भी मुझको ढूंढ़ न पाए|

आग बुझाता है जब पानी, ये बरखा क्यों अगन लगाए|

और बहुत कुछ जग में सुन्दर, फिर क्यों तू ही मन को भाये|



जब-जब गिरती नभ से बूँदें  , मै पूरा  जल जल जाता हूँ|

जी करता है भष्म  हो जाऊं, पर तुमको…

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Added by आशीष यादव on August 3, 2011 at 6:30pm — 18 Comments

पुरवा ने ली अंगड़ाई

हे पिया, तू अब तो आजा 

पुरवा ने ली अंगड़ाई l

सिहर उठा ये तन मन मोरा 

है बरखा बहार आई ||

 

काँप रहा तन ये अपना

बज रहा यूँ ही कंगना |

तनहा तनहा जीते जीते 

अब आँख है भर आई ||

 

हे पिया, तू अब तो आजा 

पुरवा ने ली अंगड़ाई ll

 

सज गए सभी नज़ारे 

तन पे गिर रही फुहारें |

धीरे धीरे रुक रुक के 

अब तो चल रही पुरवाई ||

 

हे पिया, तू अब तो आजा 

पुरवा ने ली अंगड़ाई…

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Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on August 3, 2011 at 6:00pm — 2 Comments

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