For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog – May 2020 Archive (10)

करता रहा था जानवर रखवाली रातभर - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२१/२१२१/१२२१/२१२

जिसके लिए स्वयं को यूँ पाषान कर गये

दो फूल उसके आपको भगवान कर गये।१।

**

कारण से कुछ के मस्जिदें बदनाम हो गयीं

मन्दिर को लोग कुछ यहाँ दूकान कर गये।२।

**

करता रहा था जानवर रखवाली रातभर

बरबाद दिन में खेत को इन्सान कर गये।३।

**

अपनी हुई न आज भी  पतवार कश्तियाँ

क्या  खूब  दोस्ती  यहाँ  तूफान  कर गये।४।

**

दिखते नहीं दधीचि से परमार्थी सन्त अब

मरकर भी अपनी देह जो यूँ दान कर गये।५।

**

माटी भी…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 30, 2020 at 9:30am — 18 Comments

भूख तक तो ठीक था - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'(गजल)

२१२२/२१२२/२१२२/२१२



जिन्दगी की डाँट खाकर भी सँभल पाये न हम

चाह कर भी यूँ  पुराना  पथ  बदल पाये न हम।१।

**

एक संकट क्या उठा के साथ छूटा सबका ही

हाथ था सबने बढ़ाया किन्तु चल पाये न हम।२।

**

फर्क था इस जिन्दगी को जीने के अन्दाज में

आप सा छोटी खुशी पर यूँ उछल पाये न हम।३।

**

भूख तक तो ठीक था मुँह फेरकर सब चल दिये

लुट रही इन इज्जतों  पर क्यों उबल पाये न हम।४।…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 28, 2020 at 6:55am — 6 Comments

मजदूर अब भी जा रहा पैदल चले यहाँ-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/२२२/१२१२

कहते भरे हुए हैं अब भण्डार तो बहुत

लेकिन गरीब भूख से लाचार तो बहुत।१।

**

फिरता है आज देखिए कैसे वो दरबदर

जिसने बनाये खूब  यूँ सन्सार तो बहुत।२।

**

मजदूर अब भी जा रहा पैदल चले यहाँ

रेलों बसों को  कर  रहे  तैयार तो बहुत।३।

**

बनता दिखा न आजतक हमको भवन कोई

रखते  गये  हैं  आप  भी  आधार  तो  बहुत।४।

**

सारे अदीब चुप  हुए  संकट  के दौर में

सुनते थे यार उनका है बाजार तो बहुत।५।

**

मजदूर सह किसान  से  जाने…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 24, 2020 at 11:11am — 13 Comments

मजदूर अपने गाँव के सस्ते नहीं गये -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/२२२/१२१२

पथ से खुशी के दुख भरे काँटे नहीं गये

निर्धन के पाँव से  कभी  छाले नहीं गये।१।

**

दसकों गुजर गये हैं ये नारा दिये मगर

होगी  गरीबी  दूर  के  वादे  नहीं  गये।२।

**

जिन्दा नहीं तो मरके वो पाये हैं लाख जो

मजदूर  अपने  गाँव  के  सस्ते  नहीं  गये।३।

**

कहते हैं इसको  आपदा  चाहे जरूर वो

शासन से इसके पर कभी रिश्ते नहीं गये।४।

**

किस्मत गरीब की रही झोपड़ ही घास की

आँगन में जिसके  फूल  के  डाले नहीं…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 18, 2020 at 4:03pm — 7 Comments

आस में अच्छे दिनों की शह्र आये थे मगर -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/२१२२/ २१२२/२१२



शासकों को रोज अपनी दुख बयानी लिख रहे

एक चिकने घट को  जैसे  बूँद पानी लिख रहे।१।

**

अधजली दंगों में थी अब अधमरी है रोगवश

पर खबर में  खूबसूरत  राजधानी  लिख रहे।२।

**

दान दाता  बन  गये  कुछ  एक  मुट्ठी  दे  चना

खींचकर तस्वीर उसकी नित कहानी लिख रहे।३।

**

आस में  अच्छे  दिनों  की  शह्र  आये थे मगर

गाँव के वो आज सब को खूब मानी लिख रहे।४।…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 17, 2020 at 2:00pm — 6 Comments

उम्मीद की चमक- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'(गजल )

२२१/ २१२१/२२२/१२१२



दिखती भला है अब किधर उम्मीद की चमक

खोने  लगी  है  खुद  सहर  उम्मीद की चमक।१।

**

माझी को धोखा दे  गयी पतवार हर कोई

दरिया में जैसे हो लहर उम्मीद की चमक।२।

**

बाँटेगा सबको आ के सच थोड़ी मिले भले

लेकर चला है वो  अगर उम्मीद की चमक।३।

**

कहते  उसे  किसान  हैं  निर्धन  बहुत  भले

झुकने न देगी उसका सर उम्मीद की चमक।४।

**

लूटा गया  है  हर  तरह  उसको  जहान में

आँखों में उसके है मगर उम्मीद की…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 12, 2020 at 7:38am — 8 Comments

भय के दोहे -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

करती सूखा बाढ़ बस, हलधर को भयभीत

बाँकी हर दुख पर रही, सदा उसी की जीत।१।

**

नाविक हर तूफान से, पा लेगा नित पार

डर केवल पतवार का, ना निकले गद्दार।२।

**

मजदूरी  में  दिन  कटा,  कैसे  काटे  रात

टपके का भय दे रही, निर्धन को बरसात।३।

**

आते जाते दे हवा, दस्तक जिस भी द्वार

लेकर झट उठ  बैठता, हर कोई तलवार।४।

**

शासन  बैठा  देखता, हर  संकट  को  मूक

निर्धन को भय मौत से, अधिक दे रही भूक।५।

**

मानवता से प्रीत थी,  पशुपन से भय मीत

इस…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 7, 2020 at 6:06am — 6 Comments

जीवन को नर्क नित किया मीठे से झूठ ने - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/२२२/१२१२



भटकन को पाँव की भला कैसे सफर कहें

समझो इसे अगर तो हम लटके अधर कहें।१।

**

गैरों से  जख्म  खायें  तो  अपनों  से बोलते

अपनों के दुख दिये को यूँ बोलो किधर कहें।२।

**

बातें सुधार से  अधिक  भाती  हैं टूट की

दीमक हैं देश धर्म को उन को अगर कहें।३।

**

टूटन  दरो - दीवार  की  करते  रफू  मगर

जाते नहीं हैं छोड़ कर घर को जो घर कहें।४।

**

जाने हुआ है क्या कि सब लगती हैं रात सी

दिखती नहीं है एक भी जिसको सहर…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 4, 2020 at 7:41am — 7 Comments

वंचितों के दोहे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

  1. फूलों की नाराजगी, काँटों का मनुहार

    दुखियारों के भाग में, ऐसा ही सन्सार।१।

    **

    नदिया ने  दुत्कार  दी, किया  रेत  ने प्यार

    जिसके दम करते रहे, जीवन का विस्तार।२।

    **

    कौतुक करता दुख रहा, पर सुख रहा उदास

    घावों ने  मन  में  भरी, पीड़ा  निहित मिठास।३।

    **

    यादों  की  चौपाल  में, बिन  घूँघट  के  पीर

    जाने क्या क्या कह गया, आँखों बहता नीर।४।

    **

    मुर्दा दिल की बस्तियाँ, चलती फिरती लाश

    हलचल  कैसी  भी  रहे, जीवन  रहे  हताश।५।

    **

    किस्मत…
Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 2, 2020 at 9:41am — 6 Comments

सभ्य कितना चल गया सबको पता -गजल (लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर')

२१२२/ २१२२/२१२२



द्वार पर वो  नित्य  आकर  बोलता है

किन्तु अपना सच छुपाकर बोलता है।१।

***

दोस्ती का मान जिसने नित घटाया

दुश्मनों को अब क्षमा कर बोलता है।२।

***

हूँ अहिन्सा का पुजारी सबसे बढ़कर

हाथ  में  खन्जर  उठाकर  बोलता है।३।

***

गूँज घन्टी की न आती रास जिसको

वो अजाँ को नित सुनाकर बोलता है।४।

***

दौड़कर मंजिल को हासिल कर अभी तू

पथ  में  काँटे  वो  बिछा कर  बोलता …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 1, 2020 at 10:00pm — 5 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. अजय जी.आपकी दाद से हौसला बढ़ा है.  उस के हुनर पर किस को शक़ है लेकिन उस की सोचो…"
31 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"बहुत उत्तम दोहे हुए हैं लक्ष्मण भाई।। प्रदत्त चित्र के आधार में छिपे विभिन्न भावों को अच्छा छाँदसिक…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहे*******तन झुलसे नित ताप से, साँस हुई बेहाल।सूर्य घूमता फिर  रहा,  नभ में जैसे…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी को सादर अभिवादन।"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय"
11 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
12 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"ऐसे ऐसे शेर नूर ने इस नग़मे में कह डाले सच कहता हूँ पढ़ने वाला सच ही पगला जाएगा :)) बेहद खूबसूरत…"
20 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
yesterday
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा

.ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा, मुझ को बुनने वाला बुनकर ख़ुद ही पगला जाएगा. . इश्क़ के…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय रवि भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो  कर  उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. नीलेश भाई , ग़ज़ल पर उपस्थिति  और  सराहना के लिए  आपका आभार  ये समंदर ठीक है,…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"शुक्रिया आ. रवि सर "
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service