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जिसके लिए स्वयं को यूँ पाषान कर गये
दो फूल उसके आपको भगवान कर गये।१।
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कारण से कुछ के मस्जिदें बदनाम हो गयीं
मन्दिर को लोग कुछ यहाँ दूकान कर गये।२।
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करता रहा था जानवर रखवाली रातभर
बरबाद दिन में खेत को इन्सान कर गये।३।
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अपनी हुई न आज भी पतवार कश्तियाँ
क्या खूब दोस्ती यहाँ तूफान कर गये।४।
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दिखते नहीं दधीचि से परमार्थी सन्त अब
मरकर भी अपनी देह जो यूँ दान कर गये।५।
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माटी भी उनके पाँव की हमको अजीज है
जो भी वतन के इश्क में विषपान कर गये।६।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई सुरेंद्र नाथ जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक न्धन्यवाद।
आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन। अच्छी ग़ज़ल कही आपने। बधाई स्वीकार कीजिये।
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए आभार ।
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी। बेहतरीन गज़ल।
माटी भी उनके पाँव की हमको अजीज है
जो भी वतन के इश्क में विषपान कर गये।६
आ. भाई राम अवध जी , सादर अभिवादन । गजल की सराहना के लिए आभार ।
दिये गये मिसरे में वीरान नहीं बदनाम है गौर से देखिएगा ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर जी आदाब।
खूबसूरत ग़ज़ल के लिये बधाई।
कारण से कुछ के मस्जिदें वीरान हो गईंं
इस मिसरे में ताकीदे लफ़्ज़ी का ऐब आ गया है। इसको ऐसा किया जा सकता है
कुछ कारणों से मस्जिदें वीरान हो गईंं
दिखते नहीं दधीचि से परमार्थी सन्त अब
वज्न बह्र में सही है। हाँ नीचे के मिसरे में
मरकर भी अपनी देह को जो दान कर गये
करने से भर्ती का शब्द यूँ को हटाया जा सकता है
आ. भाई अवनीश जी, गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए आभार ।
करता रहा था जानवर रखवाली रातभर।
बरबाद दिन में खेत को इंसान कर गए।
बहुत ही उम्दा सर।
करता रहा था जानवर रखवाली रातभर।
बरबाद दिन में खेत को इंसान कर गए।
बहुत ही उम्दा सर।
बहुत उम्दा अशआर।बहुत बहुत धन्यवाद सर।
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