१२२२ /१२२२/ १२२२ /१२२२/
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कभी कतरों में बँटकर तो कभी सारा गिरा कोई
मिला जो माँ का आँचल तो थका हारा गिरा कोई।१।
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कि होगी कामना पूरी किसी की लोग कहते हैं
फलक से आज फिर टूटा हुआ तारा गिरा कोई।२।
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गमों की मार से लाखों सँभल पाये नहीं लेकिन
सुना हमने यहाँ खुशियों का भी मारा गिरा कोई।३।
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किसी आजाद पन्छी को न थी मन्जूर पाबन्दी
उसी की फड़फड़ाहट से वहाँ कारा गिरा कोई।४।
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पतित कर आचरण को नित धरासायी उजाले हैं
सुना अबतक मगर यारो न अँधियारा गिरा कोई।५।
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मौलिक.अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई विनय प्रकाश जी, सादर अभिनन्दन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।
आदरणीय ज़नाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' साहब बड़ी खूबसूरत ग़ज़ल के लिए आपको ढेर सारी बधाई
आ. भाई बसंत कुमार जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और मान देने के लिए दिल से आभार ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी सादर नमस्कार,
लाजबाब ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आपको
रचना को फीचर्ड करने के लिए सम्पादक मण्डल का हार्दिक आभार ।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए आभार ।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
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