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प्यार

ऐ खुदा तुझे मैं मेरे दोस्तों मे शुमार करता हूँ 

ध्यान से सुन तुझे मैं मेरा राज़दार करता हूँ 

 

मुझको दे जाता है वो शख्स हमेशा ही धोखा 

फिर भी भरोसा मैं उसका बार-बार करता हूँ 

 

देगी…

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Added by Vikram Srivastava on October 17, 2011 at 8:00pm — 2 Comments

व्यंग्य - अस्पताल का मनमोहक सुख

एक बात सब जानते हैं कि जब हम बीमार होते हैं, तब इलाज के लिए अस्पताल पहुंचते हैं और डॉक्टर नब्ज समझकर इलाज करते हैं। अस्पताल जाने के बाद बीमारी छोटी हो या बड़ी, गरीबों के लिए कुछ ही दिन अस्पताल ठिकाना बन पाता है। गरीबों के लिए ‘गरीबी’ अभिशाप अभी से नहीं है, जमाने से ऐसा ही क्रूर मजाक चल रहा है। हर हालात में गरीब ही बेकार का पुतला होता है, जिसकी ओर देखने की किसी को फुरसत तक नहीं होती, वहीं जब कोई मालदार, अस्पताल की दहलीज पर पहुंचता है, उसके बाद गरीबों को हेय की दृष्टि से देखने वाले भी, उनकी…

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Added by rajkumar sahu on October 16, 2011 at 4:49pm — No Comments

क्यों अदीब अब तक है खोये ज़ुल्फ़ और रुखसार में !!

हमको  रहना  चाहिए  अब  सोह्बते  तलवार  में !

क्यों अदीब अब तक है खोये ज़ुल्फ़ और रुखसार  में !!


जब  तलक  उलझा  रहेगा  दामने  दिल  खार  में !
हम  सुकू  से  रह  नहीं  पाएंगे  इस  गुलज़ार  में  !!


नकहते  गुल  सुबहे  नौ शम्सो  कमर  अंजुम  जिया ! 
नेमतें  क्या  क्या  छुपी  है  यार  के  दीदार  में !!


मुद्दतो  जिस …
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Added by Hilal Badayuni on October 15, 2011 at 5:00pm — 9 Comments

मरना चाहू मर ना पाउ ये क्या किया तू महंगाई ,

मरना चाहू मर ना पाउ ये क्या किया तू महंगाई ,

निर्लज हैं मनमोहन तुझे शर्म क्यों नहीं आई ,
बतीस के आधार बाना कर गरीबी ये मिटायेंगे ,
गरीबी से नाम कटेगा खाना फिर ना पाएंगे ,
हमको कहते बतीस में तुम अपना दिन बिताओ ,
क्या होगा अब बतीस अब कोई इन्हें समझाओ ,
लुट के घर ये भर लेते हैं देते महंगाई के दुहाई ,
मरना चाहू मर ना पाउ ये क्या किया तू महंगाई ,

Added by Rash Bihari Ravi on October 15, 2011 at 1:16pm — No Comments

क्रेडिट कार्ड, पर्सनल लोन,

क्रेडिट कार्ड

 

सपना दिखता हैं ,

पावर दिलाता हैं ,

खर्चे में तो तो पंख लगता हैं ,

ना हो पैसा फिर कम हो जाता हैं ,

लगे की दोस्तों में इज्जत बढ़ता हैं,

बिल जब आता हैं ,

पागल बनाता हैं ,

क्यों ली क्रेडिट कार्ड ,

समझ ना आता हैं ,

भाई ये इज्जत लेकर ही जाता हैं ,

.

.

बैंक ऋण

 

पहली पहली बार ये ,

झट पट मिल जाता हैं ,

क्यों की अन्दर की बात ,

समझ में ना आता हैं…

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Added by Rash Bihari Ravi on October 15, 2011 at 11:30am — 2 Comments

ग़ज़ल :- धमा चौकड़ी करता बचपन

ग़ज़ल :-  धमा चौकड़ी करता बचपन
 
धमा चौकड़ी करता बचपन ,…
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Added by Abhinav Arun on October 15, 2011 at 10:50am — 4 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
जो बीते... तो बीत गये --- सौरभ

 

कंधे पर मेरे एक अज़ीब सा लिजलिजा चेहरा उग आया है.. .

गोया सलवटों पड़ी चादर पड़ी हो, जहाँ --

करवटें बदलती लाचारी टूट-टूट कर रोती रहती है चुपचाप.



निठल्ले आईने पर

सिर्फ़ धूल की परत ही नहीं होती.. भुतहा आवाज़ों की आड़ी-तिरछी लहरदार रेखाएँ भी होती हैं

जिन्हें स्मृतियों की चीटियों ने अपनी बे-थकी आवारग़ी में बना रखी होती हैं

उन चीटियों को इन आईनों पर चलने से कोई कभी रोक पाया है क्या आजतक?..

 …

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Added by Saurabh Pandey on October 15, 2011 at 9:30am — 20 Comments

कैसा असर दोस्तों?

कैसा असर दोस्तों?

प्यार का है ये कैसा असर दोस्तों.
रब के आगे झुका मेरा सर दोस्तों.
मेरी धड़कन का हर तार गाने लगा,
उसकी धुन में ही चारों पहर दोस्तों.
एक रेला सा  आया  बहा ले  गया,
मेरे जज्बात की हर  लहर दोस्तों.
अब ख्यालों की बस्ती यूँ आबाद है,
चाहे घर हो या हो वो सफ़र दोस्तों.
प्यार की छल छलाती नदी हो गई,
ज़िन्दगी जो थी सूखी नहर दोस्तों.
उनकी आँखों को मै जाम कहने…
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Added by AVINASH S BAGDE on October 14, 2011 at 7:00pm — No Comments

चमचा



जब से चमचा चलन में आया है |
 कुछ नयापन, वतन में आया है ||
बे-हयाई व बेईमानी को, होश्यारी में जब मिलाया है |
तब कहीं जा के आज का इन्सां, खुद को चमचा कहाने पाया है ||
खूब नुस्खा, यह हाथ आया है, हमने चमचों से दिल लगाया है |
रंग लाई है, उल्फत-ए-चमचा ,हम पे अब,बरकतों का साया है ||
जिसकी…
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Added by Shashi Mehra on October 14, 2011 at 10:01am — 1 Comment

व्यंग्य - मुझे नहीं बनना प्रधानमंत्री

पहले मैं अपने पुराने दिनों की याद ताजा कर लेता हूं। जब हम स्कूल में पढ़ा करते थे, उस दौरान शिक्षक हमें यही कहते थे कि प्रधानमंत्री बनोगे तो क्या करोगे ? इस समय मन में बड़े-बड़े सपने होते थे। उस सपने को पाले बैठे, अपन आज बचपन से जवानी की दहलीज में पहुंच गए हैं। हम जैसे देश में न जाने कितने, यह सपना देखते हैं, लेकिन खुली आंख से सपना कहां पूरा होता है ? ये अलग बात है कि कई बार ऐसा होता है, जब व्यक्ति सपना तक ही नहीं देखा रहता और प्रधानमंत्री बन जाता है। बिन मांगे मुराद मिल जाती है और जीवन की…

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Added by rajkumar sahu on October 14, 2011 at 12:11am — No Comments

स्वप्न सुंदरी

हे प्रभु ! मेरी स्वप्न  सुंदरी 

अब तो यथार्थ बन आ जाये 

उसको पाकर जीवन मे मेरा 

मन हर्षित, पुलकित हो जाए 

 

स्वेत वर्ण और केश स्वर्ण हो,

जो देखे चकरा जाये |

सुंदर, कोमल, मधुर, कर्णप्रिय

बोले तो…

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Added by Vikram Srivastava on October 13, 2011 at 6:00pm — 12 Comments

जगजीत सिंह को मेरी खिराज ए अकीदत (श्रद्धांजली)

 क़लम रुक रही है बहर खो रही है,

खड़ी है मुसलसल गज़ल रो रही है।



मुझे यूं ग़ज़ल से मुखातिब कराया,

तरन्नुम से मेरा जहाँ जगमगाया,…

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Added by इमरान खान on October 13, 2011 at 11:31am — 5 Comments

श्रधांजली ग़ज़ल सम्राट जगजीत सिंह



ग़ज़लों का बादशाह, नज़्मो का सौदागर गया,

एक उसका जाना, करोड़ो को तनहा कर गया....



किनारे जिसने लगाया दर्दमंदो को सहारा देकर,

कागज़ की उस कश्ती में आज पानी भर गया.....



अपने होठों से छुए जिसने जज़बात हजारों के,

तरन्नुम का वो जादूगर करके आंख तर गया.....



अब न वो गायकी होगी, न वैसी महफिले होगी,

शायरी पसंदों का ख्वाब जैसे कोई बिखर गया...



न शेर कोई लब पर, न ग़ज़ल कोई…
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Added by Harjeet Singh Khalsa on October 12, 2011 at 11:30pm — 2 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
जीवन-सार --- (छंद - घनाक्षरी) --- सौरभ

 

नाधिये जो कर्म पूर्व, अर्थ दे  अभूतपूर्व

साध के संसार-स्वर, सुख-सार साधिये ॥1॥

साधिये जी मातु-पिता, साधिये पड़ोस-नाता

जिन्दगी के आर-पार, घर-बार बाँधिये ॥2॥

बाँधिये भविष्य-भूत, वर्तमान,  पत्नि-पूत

धर्म-कर्म, सुख-दुख, भोग, अर्थ राँधिये ॥3॥

राँधिये आनन्द-प्रेम, आन-मान, वीतराग

मन में हो संयम, यों, बालपन नाधिये  ॥4॥

***************

हो धरा ये पूण्यभूमि, ओजसिक्त कर्मभूमि

विशुद्ध हो विचार से, हर व्यक्ति हो खरा  ||1||

हो खरा…

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Added by Saurabh Pandey on October 12, 2011 at 11:00pm — 18 Comments

वो क्यूँ चुप हैं जिन्हें गुमाँ है ...

एक बार मैं ढूंढने को चला वो लोग जिन्हें है ये गुमाँ

सारे जहाँ से अच्छा है हिन्दोस्ताँ....



मैं हूँ विदर्भ का इक किसान

संग पत्नी दो बच्चों की जान

झेला सूखा और अकाल

उस पर पड़ी कर्जे की मार

ना ज़मीन बची ना मकान

करता हूँ ख़ुदकुशी देता हूँ अपनी जान ...

अब मेरा उनसे है सवाल

जो ड्राइंग रूम में बैठकर

बातें करें दें

इंडिया शाइनिंग की मिसाल



वो क्यूँ चुप थे जिन्हें ये गुमाँ है

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ है

वो क्यूँ चुप हैं… Continue

Added by Veerendra Jain on October 12, 2011 at 6:00pm — No Comments

ग़ज़ल :- कुछ टूट रहा टूटती आवाज़ की तरह

ग़ज़ल :- कुछ टूट रहा टूटती आवाज़ की तरह  
 …
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Added by Abhinav Arun on October 12, 2011 at 8:09am — 9 Comments

ग़ज़ल :- आँखों में गड़ते हैं टूटे रिश्तों के टुकड़े

 
ग़ज़ल :- आँखों में गड़ते हैं टूटे रिश्तों के टुकड़े
 …
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Added by Abhinav Arun on October 12, 2011 at 7:52am — 5 Comments

तो कोई प्यार के क़ाबिल न होता

जो सीने में धड़कता दिल न होता 
तो कोई प्यार के क़ाबिल न होता॥ 

अगर सच मुच वह होता मुझ से बरहम 
मिरे दुःख में कभी शामिल ना होता॥ 

किसी का ज़ुल्म क्यूँ मज़लूम सहता 
अगर वह इस क़दर बुज़दिल न होता॥

नज़र लगती सभी की उस हसीं को
जो उसके गाल पर इक तिल न होता॥ 

ज़मीर उसका अगर होता न मुर्दा 
तो इक क़ातिल कभी क़ातिल न होता॥

:सिया: महफ़िल में रौनक़ ख़ाक होती 
अगर इक रौनक़े महफ़िल न होता॥

Added by siyasachdev on October 11, 2011 at 10:29pm — 4 Comments

दस्तक

कब से देखा है,

याद भी नही तब से देखा है,
इस मौसम को आते हुए
 
एक पहचान सी है
एक मरासिम भी कायम है
फिर भी नायाब सा
किसी हसीन अजनबी की तरह
जेरे लब एक मुस्कुराहट छोड जाता  है
जब भी आता है 
 
मौसमों की भीड़ से गुज़र कर 
अचानक किसी सुबह
हरशिंगार की खुशबू से 
यूँ मन को भिगोता है  
कि फिर किसी मौसम का 
रंग नही चढ़ता…
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Added by Aradhana on October 11, 2011 at 9:00am — 5 Comments

मुक्तिका : भजे लछमी मनचली को.. संजीव 'सलिल'

मुक्तिका :

भजे लछमी मनचली को..

संजीव 'सलिल'

*

चाहते हैं सब लला, कोई न चाहे क्यों लली को?

नमक खाते भूलते, रख याद मिसरी की डली को..



गम न कर गर दोस्त कोई नहीं तेरा बन सका तो.

चाह में नेकी नहीं, तू बाँह में पाये छली को..



कौन चाहे शाक-भाजी-फल  खिलाना दावतों में


चाहते मदिरा पिलाना, खिलाना मछली तली को..



ज़माने में अब नहीं है कद्र फनकारों की बाकी.

बुलाता बिग बोंस घर में चोर डाकू औ' खली को.. …

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Added by sanjiv verma 'salil' on October 11, 2011 at 1:23am — No Comments

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