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घर के बुजुर्ग कोने में आंसू बहा रहे ,
सरकार के गोदाम में अनाज की तरह |
अन्ना का हश्र देखकर मानेगा न बापू ,
वो दौर न था आज के समाज की तरह |
भाई अरुण जी एक एक शेर दिल को झंकृत कर रहा है, बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल की प्रस्तुति है, बधाई स्वीकार करे, आदरणीय जगजीत सिंह का जाना एक शुन्य का सृजन कर दिया है जिसको भर पाना मुमकिन नहीं है, ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे और परिवारजनों के साथ साथ करोड़ों प्रशंसको को इस आपार दुःख सहन करने की शक्ति भी |
सुना है पहले भी ऐसे में बुझ गये हैं चिराग
दिलों की खैर मनाओ बड़ी उदास है रात.
बहुत सुंदर श्रधांजलि अरुण जी,
ख़ास कर,
कुछ टूट रहा टूटती आवाज़ की तरह ,
मुझको लगे है ज़िन्दगी मजाज़ की तरह |
हर सिम्त तमाशाई तमाशाई खड़े हैं ,
मैं डूब रहा डूबते जहाज़ की तरह |
वाह!
आपकी श्रद्धांजलि में मैं अपने सुर लगाता हूँ और नियंता के फ़ैसले पर नत होता हूँ. ..
हर सिम्त तमाशाई तमाशाई खड़े हैं ,
मैं डूब रहा डूबते जहाज़ की तरह |
मैं अपने रंजो गम का सबब ढूंढ रहा था ,
तुमको मेरी मुद्रा लगी नमाज की तरह |
कुछ ऐसे लोग होते हैं जो चुपचाप अपने-अपने-से पलों का हिस्सा बन जाते हैं और ग़ुमान तक नहीं होता कि बग़ैर उनके ज़माना कैसा होगा.जगजीत सिंह ऐसे ही लोगों में से थे जिन्हों ने हमसब की भावनाओं को स्वर दिया था. आज भावनाएँ कुछ देर सही ख़ामोश हैं.
bahut hi umda..badhai Arun ji...
क़लम रुक रही है, बहर खो रही है,
मुसलसल खड़ी ये, गज़ल रो रही है।
अलविदा है शहंशाह ए ग़ज़ल अलविदा.... :(((((((((
(ख़ामोशी खुद अपनी सदा हो, ऐसा भी हो सकता है .. सुनते हुए .. )
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