पहले मैं अपने पुराने दिनों की याद ताजा कर लेता हूं। जब हम स्कूल में पढ़ा करते थे, उस दौरान शिक्षक हमें यही कहते थे कि प्रधानमंत्री बनोगे तो क्या करोगे ? इस समय मन में बड़े-बड़े सपने होते थे। उस सपने को पाले बैठे, अपन आज बचपन से जवानी की दहलीज में पहुंच गए हैं। हम जैसे देश में न जाने कितने, यह सपना देखते हैं, लेकिन खुली आंख से सपना कहां पूरा होता है ? ये अलग बात है कि कई बार ऐसा होता है, जब व्यक्ति सपना तक ही नहीं देखा रहता और प्रधानमंत्री बन जाता है। बिन मांगे मुराद मिल जाती है और जीवन की वैतरणी पार लग जाती है, क्योंकि ऐसी किस्मत का धनी होना, मामूली बात नहीं होती।
देश में प्रधानमंत्री का पद कितना महत्वपूर्ण होता है, यह किसी से छिपा नहीं है। यहां तो एक अनार-सौ बीमार वाली स्थिति हर पल बनी रहती है। कोई प्रधानमंत्री की कुर्सी को छोड़ा नहीं, उससे पहले कतार में दर्जनों नजर आते हैं। कइयों की हालत ऐसी है कि प्रधानमंत्री को ‘प्रधानमंत्री’ नहीं समझते, उंगली करने से बाज नहीं आते। जब मन करता है, दूसरे को प्रधानमंत्री बनाने का हिमाकत करने लगते हैं। यह नहीं सोचते कि अभी प्रधानमंत्री बनकर जो बैठा है, देश को भी बड़े आनंद के साथ चला रहा है, उसे कितना बुरा लगेगा। करोड़ों लोगों के बीच से निकलकर, ऐसे पद को सुशोभित करने का सौभाग्य हर किसी को थोड़ी न मिलता है। जिन्हें मिल गया है, उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी का भरपूर रसपान करने पूरी छूट दी जानी चाहिए, लेकिन टांग खींचने वाले बाज आए, तब ना। हर धतकरम करने लगे रहते हैं, पूरी छटपटाहट रहती है, कुर्सी से उतारने की, किन्तु कुर्सी पर अंगद के पाव की तरह जमे होने के बाद, कोई कहां हटता है ?
खैर, मूल बात पर आते हैं कि बचपन में मैंने जो सपना संजोए रखा था, वह आज भी ताजा है। चाहता तो हूं कि मैं प्रधानमंत्री बनूं, लेकिन इतनी हैसियत नहीं कि चुनाव लड़ सकूं। इतने खर्चीले चुनाव का बोझ सहना मेरे बस की बात नहीं है। सोच रहा हूं, पिछले दरवाजे का सहारा ले लूं, जहां से कई खासमखास पहुंचते हैं। बिना चुनाव लड़े, कुर्सी तक पहुंच जाउं, इसके लिए हर तरह के गणित बिठाने की जुगत में लगा हूं। देखता हूं, शतरंज के चौरस में अपनी गोटी भारी पड़ती है कि नहीं। मेरा मन प्रधानमंत्री बनने के लिए तड़प रहा है, लेकिन मेरा रास्ता ही साफ नहीं हो रहा है। रास्ते में कई रोड़े नजर आ रहे हैं। कई लोग मुझे हूटिंग तक करने लग गए हैं। इससे मेरा मनोबल टूटने वाला नहीं है, मैं पूरी तरह ठानकर बैठा हूं कि कुछ भी हो जाए, प्रधानमंत्री बनकर दिखाना ही है और स्कूल में पढ़ते समय जो ख्वाब, देश को अग्रसर करने का देखा था, उसे पूरा करना ही है।
प्रधानमंत्री बनने के लिए मेरा मन हिलोर मार रहा था, इसी बीच मेरी अंतरात्मा से आवाज आई कि यह पद काजल की कोठरी की तरह हो गया है। आजादी के समय, जो हालात थे, वह आज नहीं है। एक दौर था, जब पद को लात मारा जाता था, अब पद को शिरोधार्य किया जाता है, भले ही जनता के बद्दुआओं के जितने भी जूते पड़ जाए। आज मैं देख रहा हूं कि तोहफे में ‘प्रधानमंत्री पद’ मिलता है और उसके बाद भ्रष्टाचार, महंगाई की तोहमत, सिर पर उठानी पड़ती है।
इन बातों को सोच-सोचकर मेरा मन भर आया है कि मैं, प्रधानमंत्री बनने के सपने को खटकने तक नहीं दे रहा हूं। इतना तय है कि बड़ा बनना है तो बड़े सपने देखो। कुछ नहीं बन पाए तो कतार में कहीं न कहीं, कुछ हाथ आएगा ही। मन से प्रधानमंत्री बनने का भूत उतर गया है, लेकिन खुद को कतार में खड़े होने का अहसास पाता हूं। मेरे जैसे और भी कई हैं, जो पीएम वेटिंग की लिस्ट में हैं। इस फेहरिस्त में मैं दूर-दूर तक नहीं ठहरता। मेरा नंबर आने वाला नहीं है, इसलिए मैं कहता हूं कि ‘मुझे नहीं बनना प्रधानमंत्री’। ऐसी स्थिति में न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी।
राजकुमार साहू
लेखक व्यंग्य लिखते हैं।
जांजगीर, छत्तीसगढ़
मोबा . - 074897-57134, 098934-94714, 099079-87088
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online