Added by rajkumar sahu on January 6, 2011 at 5:19pm — No Comments
Added by रंजना सिंह on January 6, 2011 at 1:08pm — No Comments
चुन-चुनकर भॆजा जिन्हॆं,निकलॆ नमक हराम !
सिसक रही हर झॊपड़ी, मंत्री सब बदनाम !!
मंत्री सब बदनाम, शहद घॊटालॊं की चाटी !
है गंदा इनका खून, नियत गंदी परिपाटी !!
भारत भाग्य विधाता ,भारत की अब सुन !
हॊ परसुराम अवतार, इन्हॆं मारॆ चुन चुन !!
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 6, 2011 at 1:31am — No Comments
बापू जब सॆ आपकी,पड़ी नॊट पर छाप !
पड़ॆ-पड़ॆ अब जॆब मॆं,करतॆ रहॊ विलाप !!
करतॆ रहॊ विलाप, तुम बंद तिजॊरी मॆं,
शामिल हॊ गयॆ आप,यहाँ रिश्वतखॊरी मॆं,
सत्य-अहिंसा साधक,हॆ राम नाम कॆ जापू
दॆश हुआ आज़ाद ,क्यूँ बिलख रहॆ हॊ बापू !!
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 6, 2011 at 1:29am — No Comments
नॆता खायॆं खीर अरु ,जनता चाटॆ पात !
लॊकतंत्र की छाँव मॆं,अजब निराली बात !!
अजब निराली बात, न अर्थ दिमाग मॆं चढ़तॆ,
है घायल संविधान, अनुच्छॆद संसद मॆं सड़तॆ,
सहनशीलता धन्य लात, गाली, जूतॆ सह लॆता !
निर्लज्ज नमक-हराम भ्रष्ट हैं आज कॆ नॆता !!
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 6, 2011 at 1:27am — No Comments
डाला डांका दॆश मॆं ,खुली लूट पर लूट !
पकड़ॆ गयॆ सुयॊग सॆ,आयॆं फ़ौरन छूट !!
आयॆ फ़ौरन छूट,पहुँच इनकी ऊपर की,
बात-बात मॆं खात कसम झूठी रघुबर की,
एक सॆ बढ़कर एक यहाँ नित नया घॊटाला !
अजब लुटॆरॆ मॆरॆ दॆश कॆ,घर मॆं डांका डाला !!
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 6, 2011 at 1:24am — No Comments
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 6, 2011 at 1:20am — No Comments
Added by praveena joshi on January 5, 2011 at 9:01pm — 2 Comments
Added by Devesh Mishra on January 5, 2011 at 8:08pm — No Comments
Added by Devesh Mishra on January 5, 2011 at 8:07pm — No Comments
Added by satish mapatpuri on January 5, 2011 at 5:00pm — 2 Comments
ग़ज़ल :- चार पैसा उसे हुआ क्या है
चार पैसा उसे हुआ क्या है
पूछता फिर रहा खुदा क्या है |
हर जगह तो यही करप्शन है
रोग बढ़ता गया दवा क्या है |
तुम ही रक्खो ये नारे वादे सब
पांच वर्षों का झुनझुना क्या है |
तेरे जाने पर अब ये…
ContinueAdded by Abhinav Arun on January 5, 2011 at 4:16pm — 12 Comments
Added by Ravi Prabhakar on January 4, 2011 at 8:30pm — 5 Comments
Added by डॉ.रूपचन्द्र मयंक on January 4, 2011 at 3:49pm — No Comments
Added by satyendr sengar on January 4, 2011 at 2:55pm — No Comments
. नव वर्ष तुम्हारा…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on January 3, 2011 at 8:46pm — No Comments
कल मैंनॆ भी सोचा था कॊई, श्रृँगारिक गीत लिखूं ,
बावरी मीरा की प्रॆम-तपस्या, राधा की प्रीत लिखूं ,…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on January 3, 2011 at 8:30pm — 3 Comments
दायरे.. ©
कुछ सवाल कुछ ज़वाबों के घेरे में , उलझा जीवनपथ..
सीमित दायरे , दरकता है जीवन उनमें पल-प्रतिपल..
दहकते दावानल, स्वप्नों का होता दोहन उनमें निरंतर..
पल-प्रतिपल , भसम् उठा ख्वाबों की भेंट चढा रहे हम..
चरणों में अर्पित करने लगे , सीमित दायरों भरा जीवन..
चरण उस पथिक के ,…
Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on January 3, 2011 at 8:18pm — 1 Comment
Added by satyendr sengar on January 3, 2011 at 2:54pm — No Comments
Added by satyendr sengar on January 3, 2011 at 2:00pm — No Comments
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