विविधता ही सृष्टि के, निर्माण का आधार है.
'एक हों सब' धारणा यह, क्यों हमें स्वीकार है?
तुम रहो तुम, मैं रहूँ मैं, और हम सब साथ हों.
क्यों जरूरी हो कि गुड़-गोबर हमेशा साथ हों?
द्वैत रच अद्वैत से, उस ईश्वर ने यह कहा.
दूर माया से सकारण, सदा मायापति रहा..
मिले मोदक अलग ही, दो सिवइयां मुझको अलग.
अर्थ इसका यह नहीं कि, मन हमारे हों विलग..
अनेकता हो एकता, में- यही स्वीकार है.
तन नहीं मन…
Added by sanjiv verma 'salil' on September 4, 2011 at 4:17pm — 2 Comments
पहले कभी ऐसा तो था नहीं मैं,
दीवाना तुमने मुझको बना दिया;
सोचा कभी नहीं बदलूँगा मैं,
तेरे इश्क ने मुझको बदल दिया;
इश्क क्या चीज़ है मालूम न था,
तेरे मुहब्बत ने मुझको दीवाना बना दिया;
क्यों करते हो मुझ पर भरोसा…
ContinueAdded by Smrit Mishra on September 4, 2011 at 12:30pm — 1 Comment
मैं लिखना चाहती हूँ गीत
तेरी प्रशंसा में, प्रकृति
लेकिन तू तो स्वयं एक गीत है
जीता जागता संगीत है
लयबद्ध , तालबद्ध
छंद है ,गान है
एक अनवरत अनचूक सिलसिला है जीवन का |
तेरे मौसम…
ContinueAdded by mohinichordia on September 3, 2011 at 3:30pm — 5 Comments
सीताराम, सीताराम, सीताराम, कहिये ,
जाही बिधि रखे राम ताहि बिधि रहिये ,
प्रभु मनमोहन को सदबुधि दीजिये ,
उनके साथियों को प्रभु सुमति कीजिये ,
सब हिंद वासी अब इतना ही चाहिए ,
सीताराम, सीताराम, सीताराम, कहिये ,
जाही बिधि रखे राम ताहि बिधि रहिये ,
अरविन्द ,प्रशांत किरण संग रहिये ,
कुमार बिस्वाश उनसब से ये कहिये ,
हिंद के चहेते हम हैं जुल्म ना करिये ,
हिन्दुस्तानी संग हैं आप आगे बढ़िये ,
सीताराम, सीताराम, सीताराम, कहिये ,
जाही बिधि…
Added by Rash Bihari Ravi on September 3, 2011 at 2:30pm — 2 Comments
इतना बंदी मत करो मुझे अहसानों से,
कि आखिर को प्रतिदान नहीं मैं दे पाऊँ.
अहसान तेरे सदियों के कैसे याद रहें.
जलने दो जो जलती मुस्कानों की होली,
इतने आंसू मत गिरो, नहीं…
Added by Kailash C Sharma on September 2, 2011 at 8:00pm — 9 Comments
जन लोकपाल लिए मन माहीं ,
Added by Rash Bihari Ravi on September 2, 2011 at 2:00pm — 18 Comments
"अक्षर ही न जाने वो किताब क्या पढ़ पाएँगे
पानी मे बिना तैरे खुद मर जाएँगे
ज्ञान न जानो विज्ञान न जानो तुम
संविधान को तुम कैसे समझ पाओगे
लोकतंत्र का अर्थ मालूम नहीं हे जिन्हे
उनका हे दावा लोकतंत्र को बचाएँगे."
Added by monika on September 2, 2011 at 2:24am — 5 Comments
यह तो सही है कि भारत में न पहले प्रतिभाओं की कमी रही और न ही अब है। पुरातन समय से ही यहां की शिक्षा व्यवस्था की अपनी एक साख रही है। कहा भी जाता है, जब शून्य की खोज नहीं हुई रहती तो फिर हम आज जो वैज्ञानिक युग का आगाज देख रहे हैं, वह कहीं नजर नहीं आता। भारत में विदेशों से भी प्रतिभाएं अध्ययन के लिए आया करते थे, मगर आज हालात बदले हुए हैं। स्थिति उलट हो गई है। भारत से प्रतिभाएं पलायन कर रही हैं, उन्हें नस्लभेद का जख्म भी मिल रहा है, लेकिन यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। यहां कहना है कि…
ContinueAdded by rajkumar sahu on September 2, 2011 at 1:41am — 2 Comments
.
जिसकी रही कभी नहीं आदत उड़ान की
अल्फ़ाज़ खूबियाँ कहें खुद उस ज़ुबान की
*
भोगा हुआ यथार्थ जो सुनाइये, सुनें
सपनों भरी ज़ुबानियाँ दिल की न जान की..
*
जिसके खयाल हरघड़ी परचम बने उड़ें
वो खा रहा समाज में इज़्ज़त-ईमान की ..
*
जिनके कहे हज़ारहा बाहर निकल पड़े
ऐसी जवान ताव से चाहत कमान की..
*
जबसे सुना कि शोर है अब इन्क़िलाब का
ये सोच खुश हुआ बढ़ी कीमत दुकान की.
*
हर नाश से उबारता, भयमुक्त जो…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on September 1, 2011 at 9:30am — 15 Comments
सावन गीत:
संजीव 'सलिल'
*
मन भावन सावन घर आया
रोके रुका न छली बली....
*
कोशिश के दादुर टर्राये.
मेहनत मोर झूम नाचे..
कथा सफलता-नारायण की-
बादल पंडित नित बाँचे.
ढोल मँजीरा मादल टिमकी
आल्हा-कजरी गली-गली....
*
सपनाते सावन में मिलते
अकुलाते यायावर गीत.
मिलकर गले सुनाती-सुनतीं
टप-टप बूँदें नव संगीत.
आशा के पौधे में फिर से
कुसुम खिले नव गंध मिली....
*
हलधर हल धर शहर न जाये
सूना…
Added by sanjiv verma 'salil' on September 1, 2011 at 8:04am — 3 Comments
Added by rajkumar sahu on September 1, 2011 at 1:32am — 2 Comments
चेहरा ये कैसा होता गर आँख नहीं होती.
दिल कैसे फिर धड़कता गर आँख नहीं होती.
रक़ीब से भी बदतर हो जाते कभी अपने.
मालूमात कैसे होता गर आँख नहीं होती.
कितना हसीन है दिल चाक करने वाला.
एहसास कैसे होता गर आँख नहीं होती.
कुर्सी के नीचे बर्छी आखिर रखी है क्यूँ कर.
तहक़ीकात कैसे होती गर आँख नहीं होती.
मिलती औ झुकती - उठती फिर चार…
ContinueAdded by satish mapatpuri on September 1, 2011 at 12:08am — 10 Comments
Added by rajkumar sahu on August 31, 2011 at 3:39pm — No Comments
ईद का दिन है सबसे मुहब्बत करो
Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 31, 2011 at 10:00am — 4 Comments
ग़ज़ल :- तलवार की बातें करो छोडो मयान की
अब क्या बताएं आपको दुनिया जहान की ,
ये शायरी ज़ुबां है किसी बेज़ुबान की |
…
ContinueAdded by Abhinav Arun on August 31, 2011 at 9:41am — 4 Comments
हमारा देश अनंत विविधताओं से ओत-प्रोत है। 33 करोड़ देवी-देवताओं से हममें से हर कोई कुछ न कुछ मांगते रहता है। भगवान भी देर से ही सही, अपनी आराधना करने वालों की सुध लेते ही हैं। तभी तो मंदिरोें में मत्था टेकने वालों में भगदड़ मचती रहती है। भगवान हममें से कइयों को छप्पर फाड़कर देता है, ये अलग बात है कि कुछ को छप्पर भी नसीब नहीं होता। कोई दो वक्त की रोटी को ईश्वर की असीम देन कहता है तो एक दूसरा, उसकी अहमियत को नहीं समझता, फिर भी भगवान उस पर मेहरबान हुए रहते हैं।
हम भगवान से मांगते रहते हैं,…
Added by rajkumar sahu on August 31, 2011 at 1:22am — No Comments
मुक्तिका:
संजीव 'सलिल'
*
ये शायरी जबां है किसी बेजुबान की.
ज्यों महकती क्यारी हो किसी बागबान की..
आकाश की औकात क्या जो नाप ले कभी.
पाई खुशी परिंदे ने पहली उड़ान की..
हमको न देखा देखकर तुमने तो क्या हुआ?
दिल ले गया निशानी प्यार के निशान की..
जौहर किया या भेज दी राखी अतीत ने.
हर बार रही बात सिर्फ आन-बान की.
उससे छिपा न कुछ भी रहा कह रहे सभी.
किसने कभी करतूत कहो खुद बयान की..
रहमो-करम का आपके सौ…
Added by sanjiv verma 'salil' on August 31, 2011 at 12:00am — 3 Comments
Added by mohinichordia on August 30, 2011 at 12:47pm — 5 Comments
Added by Kailash C Sharma on August 29, 2011 at 8:00pm — 5 Comments
तुझ बिन तो जन्नत भी सज़ा |
तेरे संग जहन्नुम, बज़ा |
तूने दिया गर दर्द तो,
फिर दर्द मे भी है मज़ा |
इक तुम मेरे ना हो सके,
अब ना बची कोई रज़ा |
तू भी कभी मेरी गली,
ग़लती से आ, आ के न जा |
'अंकुर' ये ज़िद अच्छी नही,
ना आएँगे वो, लौट जा |
Added by Sushant Jain 'Ankur' on August 27, 2011 at 7:00pm — 2 Comments
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