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कुछ कही कुछ अनकही (निजी डायरी के कुछ पन्ने)

मानव की प्रवृत्तियाँ क्या हैं? वह क्या चाहता है? क्या पसन्द है उसे? क्या नही पसन्द करता वो? ये सभी बातें उसी पर निर्भर हैं। किन्तु ये नही कहने वाला हूँ मै। कुछ और ही कहना चाहता हूँ।

कुछ लोगों को अच्छे लोग नही भाते बल्कि बुरे लोगो में दिलचस्पी हो जाती है। पता नही कैसा ये मन का रिश्ता है। क्या पता कब, कैसे, किससे जुड़ जाये। इसकी खबर भी नही लगती।

बात ये भी नही कहना चाहता मै लेकिन ये सभी घटनायें कभी न कभी अवश्य ही घटती हैं जीवन मे। इनके पीछे क्या होता है उस समय कोई नही जान सकता।…

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Added by आशीष यादव on August 20, 2012 at 10:00am — No Comments

एक हाइकु

नाराज़गी है।

किस बात की भला,

लो मैं तो चला।।।

                  सूबे सिंह सुजान

Added by सूबे सिंह सुजान on August 19, 2012 at 10:58pm — 1 Comment

सड़क बुलाती है

सड़क बुलाती है,

आओ...मेरा अनुसरण करो,
छोड़ो न कभी मुझे,
भटक जाओगे रास्ता,
मुश्किल हो जाएगा
मंजिल…
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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 19, 2012 at 7:30pm — No Comments

मेरी चाहत

कब से थी दिल कि एक चाहत
ना जाने कब मिलेगी इसे राहत
हमेशा सोचा करते हैं कुछ बातें
सोचते सोचते गुजर जाती है रातें
पता नहीं किस हाल में होगी वह बेवफा
दुनियां से लड़ करता रहा उससे मैं वफ़ा
मुझे जिस पर नाज़ था कि सबसे ज्यादा
शतरंज कि बिसात पर बना दिया एक प्यादा
आज भी मैं यही सोचता हूँ कि आखिर क्या थी गलती
क्यों ज़माने में मोहब्बत के बदले मोहब्बत नहीं मिलती...?

नीलकमल वैष्णव"अनिश"
१९/०८/२०१२

Added by Neelkamal Vaishnaw on August 19, 2012 at 6:00pm — No Comments

अब आ भी जा

हर मोड़ हर किनारे.

जब दिल धडके, तुमको पुकारे.
सुनकर अरदास मेरी, तू आ भी जा,
तू कदम, अब तू ही सहारे..
आरजू अब बस मिलने की..
बाहों में तेरे पिघलने की.
चोट खाए दिल को, 
हाथो से सिलने की..
तरसे ये आंखे देखने को नज़ारे.
तू कदम, अब तू ही सहारे..
सुनकर अरदास मेरी, तू आ भी जा,
बिना चाँद अब क्या करे…
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Added by Pradeep Kumar Kesarwani on August 19, 2012 at 1:41pm — No Comments

मौका कहां पाएगा

जब मेरे जीवन की बाती

फफक-फफक बुझने लगे

और मोह छनकर हृदय से

प्राण को दलने लगे



लोचन मेरे जब नीर लेकर

मन के कलुष धोने लगे

और पाप नभ सा मेरा वो

प्रलय-नाद करने लगे



रुग्‍ण सा बिस्‍तर मेरा वो

आह अधिक भरने लगे

और द्वार शंकित नयन से

अदृश्‍य दूत तकने लगे



हे अधर अपनी धरा को

क्षणभर सनातन साज देना

दूर तारों में छिपा…
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Added by राजेश 'मृदु' on August 19, 2012 at 1:19am — 2 Comments

साँसों का क़र्ज़ लेकर तुझे प्यार कर रहा हूं ........

तेरा इश्क कितना मुश्किल ये तूँ भला क्या जाने

कबसे संभल संभल कर तुझे प्यार कर रहा हूँ !!

*********************************

तेरी राह कितनी मुश्किल ये मै ही जानता हूँ

पगडंडियों से चल कर तुझे प्यार कर रहा हूँ !!

*********************************

कबसे टहल रही हो इस फुल जैसे दिल पर

कांटो पे टहल कर मै तुझे प्यार कर रहा हूँ !!

******************************

कहती हो आओ मिल लो नज़रें उतार लूंगी

दिल में उतर कर मै तो तुझे प्यार कर रहा हूँ…

Continue

Added by शिवानन्द द्विवेदी सहर on August 18, 2012 at 11:00pm — No Comments

अब सब छूटा जाए

अब सब छूटा जाए
मोहे मिला था सब कुछ जग में,अब सब छूटा जाए
याद तिहारी भूल न पाएँ-2 याद बहुत आए
मोहे मिला  था सब  ..........
(1 )'दीपक'थे जले दीप से हर पल,सबनें ही तो जलाया
नीर बहे न आँखों से पर,अपनों नें तो रुलाया
इस दुनियाँ की रीत निराली-2,समझ नहीं पाए
याद बहुत आए.........
मोहे मिला  था सब ..........
(2) नादाँ थे हम नादाँ है और अब का…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 18, 2012 at 2:46pm — No Comments

हवा की कोई आवाज नहीं होती।

हवा की कोई आवाज नहीं होती,

आवाज तो पेड-पौधों के पत्तों की होती है।

हवा तो चलती है

सब से मिलती है

सबसे बात भी करती है

फिर भी बोलती नहीं

सबको गुदगुदाती है,

हंसाती है,

और थपथपा कर दौड जाती है।

अकेली हो कर भी सबकी हो जाती है।

अगर तुम नाराज़ भी हो जाओ

तुम्हें झट से मना लेती है

और तुम तपाक से मान जाते हो।

लेकिन फिर भी हवा की कोई आवाज नहीं होती

आवाज आपकी होती है।

नाम आपका होता है।

काम हवा…

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Added by सूबे सिंह सुजान on August 17, 2012 at 10:22pm — 2 Comments

जय हो देव जय हो

घर घर से आने का होता आह्वान

गली गली बड़े बड़े चित्रों से

सुसज्जित

नीचे लिखे पूजा कर्म विधान

स्थान सुनिश्चित

प्रभु के कामों में न हो व्यवधान

इन सब बातों का रखता है हर एक

पुजारी ध्यान

गलती में कोई खींचे न उनके कान

होती रहे कृपा मिलता रहे धन

धान

बड़े बड़े लाउड स्पीकर से

प्रारम्भ हुआ प्रभु का यशोगान

कुछ निर्धारित समय में बिलम्ब के

बाद

अवतरित हुए

नवनिर्मित अस्थायी मंदिर में

भगवान्

आराधन में नतमस्तक

खड़ी… Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 17, 2012 at 9:13pm — 2 Comments

रोला छंद -एक प्रयास

रोला छंद -एक प्रयास 
 याद शाम सवेरे ,राधिका को  है आये |
मनभावन कान्हा ,धुन मुरली की बजाये |
गोकुल के गोपाल ,सभी के मन को भाये |
चितचोर मनमोहन ,दिल सबका है चुराये|

Added by Rekha Joshi on August 17, 2012 at 9:06pm — No Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
नेताजी (कुण्डलिया-४)

 
नेताजी के मन बसा, चटकीला  शृंगार
नेतानी जी सुरसती, सौम्य  रूप  अवतार…
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Added by Dr.Prachi Singh on August 17, 2012 at 7:14pm — 6 Comments

कविता--जीवन नहीं बीतता।

सांस चली जाती है।

क्योंकि सांस चलती है।

आत्मा चहुँ ओर व्याप्त है।

आत्मा नहीं मरती।

जीवन भी नहीं मरता।

जीवन चलता रहता है।

जीवन नहीं मरता।

जीवन नहीं बीतता।

मैं मर गया,तो जीवन थोडे ही मर जाएगा।

जीवन आत्मा स्वरूप है।

दुबारा कहूँ तो

परमात्मा स्वरूप है।

जीवन नहीं बीतता।

-----------------सूबे सिंह सुजान..............

Added by सूबे सिंह सुजान on August 17, 2012 at 5:51pm — 3 Comments

जीवन नहीं बीतता।

Added by सूबे सिंह सुजान on August 17, 2012 at 5:33pm — No Comments

हिमालय

हिमालय की मौन आँखों में

शान्त माहौल के परिवेश में

कुछ प्रश्नों को देखा है मैंने ।



खड़ा तो है अडिग पर

उसके माथे की सलवटों पर

थकावट के अंशों को देखा है मैंने ।



प्रताड़ित होता है वो तो क्यों ?

नहीं समझते हो तुम

क्रोधित हो वो कैसे हिला दे

धरती को ये देखा है मैंने ।



जब बहती हुयी पवन कुछ

कहकर पैगाम सुनाती है तो

पैगाम -ए - दर्द को छलकते

धरती पर बहते देखा है मैंने ।



कभी ज्वाला सा जल जाता है …

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Added by deepti sharma on August 17, 2012 at 2:00pm — 9 Comments

देश जवाब मांगता है !

जब भी कोई संविधान की सीमा लांघता है ,

गाँधी-नेहरु का देश जवाब मांगता है !

पूछता है क्यों सत्य का गला रुंध है ?

क्यों न्याय पर छा रही अन्याय की धुंध है ?

क्यों लुटती नारी आज यहाँ ,क्यों पौरुष खाक छानता है ?

जब भी कोई संविधान की सीमा लांघता है ,

गाँधी-नेहरु का देश जवाब मांगता है !

क्यों कन्या भ्रूण हत्याएं होती है ?

क्यों अबलायें रोती है ?

क्यों पग पग पर मौत की घाटी है ?

क्यों सत्य अहिंसा पर मिलती लाठी है ?

लोकतंत्र का प्रहरी क्यों दर दर…

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Added by Naval Kishor Soni on August 17, 2012 at 1:30pm — 6 Comments

हे वनराज ! तुम निंदनीय हो !

हे वनराज ! तुम निंदनीय हो !

अक्षम हो प्रजारक्षा में,

असमर्थ हो हमारी प्राचीन

गौरवपूर्ण विरासत सँभालने में ;

आक्रांता लाँघ रहे हैं सीमायें,

नित्य कर रहे हैं अतिक्रमण

हमारी भावनाओं का,…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 17, 2012 at 1:16pm — 6 Comments

यह कैसी आज़ादी है ???

यह कैसी आज़ादी है , यह कैसी आज़ादी है ?

भ्रष्टाचार और मंहगाई ने सबकी नींद उड़ा दी है ?

कुछ लोग हुए आबाद ,भूखों मरती आबादी है !

यह कैसी आज़ादी है , यह कैसी आज़ादी है ?

संविधान के बाहर जाकर औकात दिखादी है !

संविधान के मूल्यों की बलि आज चढ़ा दी है…

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Added by Naval Kishor Soni on August 17, 2012 at 1:00pm — 1 Comment

कुण्डलियाँ छंद...

चलो बचायें देश!
******************

बुनियादें  मज़बूत  हों , सुदृढ़  रहे  मकान.

श्रीमन कभी न दीजिये , अफवाहों पर ध्यान.
अफवाहों पर ध्यान , तोड़ने की है साजिश.
अन्दर-बाहर दुश्मन , खड़ा है लेकर माचिस!!
कहता है अविनाश , ताड़कर गलत इरादें.
चलो बचायें देश , थाम लें फिर बुनियादें..........
--------------------------------------------------
अविनाश बागडे...

Added by AVINASH S BAGDE on August 17, 2012 at 12:15pm — 6 Comments

सब कुछ छूटा जाए

सब कुछ छूटा जाए
 

मोहे मिला था सब कुछ लेकिन सब कुछ छूटा जाए

याद तिहारी भूल न पाएँ-2 याद बहुत आए
मोहे मिला  था सब  ..........
(1) 'दीपक'थे जले दीप से हर पल सबनें ही तो जलाया
नीर बहे न आँखों से पर,अपनों नें तो रुलाया
इस दुनियाँ की रीत निराली,समझ नहीं पाए
याद बहुत आए.........
मोहे मिला  था सब ..........
(2) नादाँ थे हम नादाँ है और अब का समझेंगे
किससे करेंगे…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 17, 2012 at 11:00am — 4 Comments

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