Added by Mohini Dhawade on June 13, 2011 at 10:30am — 1 Comment
Added by MAHENDRA BHATNAGAR on June 13, 2011 at 10:00am — No Comments
Added by satish mapatpuri on June 13, 2011 at 2:00am — 9 Comments
पर्यावरण की चिंता हर बरस शुरू होती है, उसके बाद दम तोड़ देती है। पेड़ों की अंधा-धुंध कटाई के बाद जंगल घटते जा रहे हैं, वहीं प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है। पर्यावरण से खिलवाड़ का खामियाजा हर किसी को भुगतना पड़ रहा है, फिर भी हम चेत नहीं रहे हैं और हरियाली को हर तरह से उजाड़ने में लगे हैं। विकास के नाम पर पेड़ों की बलि चढ़ाई जा रही हैं और यही धीरे-धीरे हमारे जीवन पर आफत बनती जा रही है या फिर दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि पर्यावरण में धीमी मौत घुलती जा रही है, जो प्रदूषण के तौर पर हमें मुफ्त…
ContinueAdded by rajkumar sahu on June 12, 2011 at 11:14pm — No Comments
मैं अकेला हूँ प्रिये -
हर दृश्य में, हर श्राव्य में,
हर मूर्त में, हर काव्य में,
जो परे हर सुख से, मैं वो क्लान्त बेला हूँ प्रिये...
मैं अकेला हूँ प्रिये -
[१] इक संग तेरे जीवन मधुर रसधार बन बहता गया,
तेरे लिए हर क्लेश दुनिया का सहा, सहता गया,…
ContinueAdded by डॉ. नमन दत्त on June 12, 2011 at 6:00pm — 5 Comments
Added by rajkumar sahu on June 12, 2011 at 4:37pm — No Comments
Added by Rohit Singh Rajput on June 12, 2011 at 2:00pm — 3 Comments
तेरी याद के अम्बार लिए बैठे हैं,
गुल तेरे हम ख्वार लिए बैठे हैं.
क़त्ल कर.. दफना गया है तू जिसको,
हाथो मे वोही प्यार लिए बैठे हैं.
जीत का सेहरा तो तेरे सर पे सजा,
हाथ मैं हम 'हार' लिए बैठे हैं.
दुश्मन भी शरमा गया.. अब मुझसे,
सीने मैं, इतने वार लिए बैठे हैं.
पत्थर का, मुझे देखके दिल भर आया,
आँखों मैं वोह. गुबार लिए बैठे हैं,
'उफ़' नहीं मेरी कभी दुनिया ने सुनी,
सदा-ए-दिल…
ContinueAdded by इमरान खान on June 11, 2011 at 8:00pm — 5 Comments
ये रचना मैंने लिखी तो महा उत्सव अंक 8 के लिए थी ... १० जून की रात को पोस्ट भी की लेकिन
शायद मैंने ही लेट हो गया जो सम्मिलित नहीं हो पायी कोई बात यहीं.. ऐसे ही पोस्ट कर देता हूँ...
ये गीत मुझे ही गुनगुनाने नहीं आते,
हाँ मुझे ही रिश्ते निभाने नहीं आते
प्यारी ज़मी को मैंने सींचा था खून से,
हर एक बीज बोया था मैंने जूनून से
इक रोज़ भी न मैं तो आराम कर सका,
इक रात भी न मैं तो सोया सुकून से
अपनाऊँ हर शख्स…
(अदबी महफ़िल की अज़ीम शख्सियात को मेरा आदाब ! मैं बस ऐसे ही किसी को ढूंढते हुए यहाँ चला आया !वो मुझे मिल गया .. लेकिन साथ ही जादूयी जगह भी मिली ! मुझ जैसे शख्स, जो बहुत कुछ लिखना चाहता है सुनना चाहता है ! न तो मुझ पर कुछ कहना आता है न ही साथ निभाना, जब ओपन बुक ज्वाइन कर ही ली है तो सोचा.. अपनी तुकबंदी भी यहाँ पर जोड़ता चलूँ ! गुज़ारिश है सभी से के कुछ तनक़ीद ज़रूर करैं ... तरीफ के लायक तो मेरे अलफ़ाज़ हैं नहीं…
ContinueAdded by इमरान खान on June 10, 2011 at 6:30pm — No Comments
बस कुर्सी पर केवल बेईमान चाहिए.
न जीव चाहिए न जहान चाहिए ,
बस कुर्सी पर केवल बेईमान चाहिए.
हैरत हो बाढ़ से या प्लेग का जमाना,
हैजा भूकंप और गोली का निशाना.
न आंख चाहिए न कान चाहिए,
बस कुर्सी पर केवल बेईमान चाहिए.
संविधान प्रजातंत्र पार्टी व नेता ,
घूस लूट फूट गुट दुनियां को देता,
न मान चाहिए न सम्मान चाहिए.
बस कुर्सी पर केवल बेईमान चाहिए.
आरक्षण की बोल के बोली…
Added by R N Tiwari on June 10, 2011 at 3:00pm — No Comments
Added by rajkumar sahu on June 9, 2011 at 6:44pm — No Comments
Added by rajkumar sahu on June 9, 2011 at 2:51pm — 1 Comment
Added by moin shamsi on June 9, 2011 at 2:00pm — No Comments
अब भगवान पैदा कर...
मेरा कहना अगर मानो तो,
एक इन्सान पैदा कर.
सम्हाले डोलती नैया,
बना बलवान पैदा कर.
तुम्हारे ही इशारे पर,
सभी ये दृश्य आते हैं.
हमारी प्रार्थना तुमसे…
ContinueAdded by R N Tiwari on June 9, 2011 at 8:00am — 2 Comments
Added by Chandraprakash Jha on June 8, 2011 at 10:00pm — 1 Comment
Added by rajkumar sahu on June 8, 2011 at 2:44pm — 1 Comment
Added by rajkumar sahu on June 8, 2011 at 1:34am — 1 Comment
Added by shalini kaushik on June 8, 2011 at 12:14am — 1 Comment
Added by Noorain Ansari on June 7, 2011 at 11:00am — No Comments
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