(अदबी महफ़िल की अज़ीम शख्सियात को मेरा आदाब ! मैं बस ऐसे ही किसी को ढूंढते हुए यहाँ चला आया !वो मुझे मिल गया .. लेकिन साथ ही जादूयी जगह भी मिली ! मुझ जैसे शख्स, जो बहुत कुछ लिखना चाहता है सुनना चाहता है ! न तो मुझ पर कुछ कहना आता है न ही साथ निभाना, जब ओपन बुक ज्वाइन कर ही ली है तो सोचा.. अपनी तुकबंदी भी यहाँ पर जोड़ता चलूँ ! गुज़ारिश है सभी से के कुछ तनक़ीद ज़रूर करैं ... तरीफ के लायक तो मेरे अलफ़ाज़ हैं नहीं !)
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मेरे अहसास चरागाँ मेरी पुरनूर डगर
मुझपे छाया है नशा, बनके उम्मीदों का शजर....
आज बरहम है तलातुम के हिसारों की गली,
आज भरकर रानाई मेरे ज़ख्मों को चली,
आज खुद बाम सजानी मेरा दिल सीख गया है,
आज अँधेरा-ए-गम-ए-ज़ीश्त बहुत दूर गया है,
मेरा शम्स न डूबेगा रात की आमद नहीं होनी,
दर-ए-गैरां पे अब और खुशामद नहीं होनी,
अब तो महताब भी मुझसे ये हसद रखता है,
के मेरे साथ मैं, अब तो ये फलक हँसता है,
तुमने देखे नहीं होंगे ये नज़ारे देखो,
मेरी झोली मैं चले आये हैं सितारे देखो,
मेरे अहसास चरागाँ मेरी पुरनूर डगर
मुझपे छाया है नशा, बनके उम्मीदों का शजर
(....... अज़ क़लम इमरान खान मेवाती)
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