एक कवि ने
अपनी कवितायें
पत्रिका में
प्रकाशित करने को भेजी ॥
संपादक महोदय ने
कचड़ा कह लौटा दिया ॥
पुनः दूसरी पत्रिका में भेजी
सहर्ष स्वीकृत की गयी
और प्रकाशित हुई ॥
इधर रिश्ते बनाने के क्रम में
माँ ने
लड़की को नापसंद कर दी ॥
पुनः उसी लड़की को
दुसरे लड़के की माँ ने देखा
फूलों की मलिका की संज्ञा से नवाजा ॥
सच
हर चीज में दो चेहरा नहीं होता
बल्कि हम
अपने -अपने तरीके से देखते है ॥
Added by baban pandey on July 17, 2010 at 7:26am —
3 Comments
बैंक अधिकारी है मेरे मित्र
कृषि ऋण देने में कहते है
बैंक का फायदा कम हो जाएगा ॥
मगर ...
किसानों से पूछते है
भिन्डी २५ रूपये किलो क्यों ?
महिला आयोग की सदस्यों ने
मंच पर
दहेज़ प्रथा के खिलाफ खूब बोली ॥
पर जब
रिश्तों की बात चली
भरपूर मांग कर दीं ॥
याद दिलाने पर कहा
मंच की बात मंच पर ही ॥
Added by baban pandey on July 16, 2010 at 9:11pm —
3 Comments
मुंबई पर
आतंकवादी हमलों (२६/११) के बाद
रेलवे स्टेशनों पर
लगाए गए थे
मेटल डिटेक्टर ॥
अब
हटा दिए गए ॥
पूछने पर अधिकारी ने बताया
पकिस्तान से
हमारे रिश्ते सुधर गए है ॥
मैं सोच रहा था
क्या सचमुच
एक बिच्छू
डंक मारना छोड़ सकता है ?
Added by baban pandey on July 16, 2010 at 9:09pm —
3 Comments
उसका हर गीत ही अखबार हुआ जाता है,
क्यों ये फनकार पत्रकार हुआ जाता है !
जबसे आशार का मौजू बना लिया सच को,
बेवजन शेअर भी शाहकार हुआ जाता है !
अपने बच्चों को जो बाँट के खाते देखा ,
दौर ग़ुरबत का भी त्यौहार हुआ जाता है !
बेल बेख़ौफ़ हो गले से क्या लगी उसके
बूढा पीपल तो शर्मसार हुआ जाता है !
हरेक दीवार फासलों की गिरा दी जब से
सारा संसार भी परिवार हुआ जाता है !
Added by योगराज प्रभाकर on July 16, 2010 at 9:00pm —
5 Comments
कमर तोड़ दी ये बेदर्द महंगाई ,
जीने नहीं देती हैं बेशर्म महंगाई ,
गेहू जो आज कल राशन में आता हैं ,
तीन दिन तक भोजन चल पाता हैं ,
सत्ताईस की हर दम रहती है जोहाई,
कमर तोड़ दी ये बेदर्द महंगाई ,
चीनी के दाम बढे आलू रुलाता हैं ,
चावल लेने में आसू आ जाता हैं ,
नौकरी नहीं हैं करता खेती बारी ,
बारिश ना होती हैं जाती जान हमारी ,
बचालो जीवन मेरा सरकार दुहाई ,
कमर तोड़ दी ये बेदर्द महंगाई ,
Added by Rash Bihari Ravi on July 16, 2010 at 5:30pm —
1 Comment
जिंदगी फ़िर हमें उस मोड़ पे क्यों ले आई । याद आई वो घड़ी आँख मेरी भर आई ।
जिंदगी तेरे हर फ़साने को , मैंने कोशिश किया भुलाने को ।
मेरी आंखों से खून के आंसू , कब से बेताब हैं गिर जाने को ।
मेरे माजी को मेरे सामने क्यों ले आई । याद आई वो घड़ी आँख मेरी भर आई ।
मैंने बस मुठ्ठी भर खुशी मांगी , प्यार की थोड़ी सी ज़मीं मांगी ।
अपनी तन्हाइयों से घबड़ाकर , अपनेपन की कुछ नमीं मांगी ।
क्या मिला- क्या ना मिला फ़िर वो बात याद आई । याद आई वो आँख मेरी भर आई ।
जिंदगी मैंने तेरा रूप…
Continue
Added by satish mapatpuri on July 16, 2010 at 3:58pm —
6 Comments
उत्तर मे हिमालय से प्रारंभ हो कर दक्षिण मे जहाँ सागर की उत्ताल तरंगे इस अप्रतिम राष्ट्र के पैर पाखार रहीं है, और कराची से कंबोडिया तक जहाँ अपनी भारत मा अपनी बाहें फैलाए अपने पुत्रों के हर दुख को आत्मसात करती खड़ी दिखती है,संपूर्ण आर्यावर्त को अपने वात्सल्य के मजबूत.डोरी मे बांधती दिखती है वह सारी की सारी सांसकृतिक भूमि हिंदुस्तान है.इससे कोई अंतर नही पड़ता कि आप उसे हिंदुस्तान कहते है या भारत या फिर इंडिया.
राज्य अनेक हो सकते हैं... राजनीतिक सत्ताएँ भी अनेक हो सकती हैं...किन्तु सांस्कृतिक…
Continue
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on July 16, 2010 at 6:00am —
1 Comment
किस पे करू भरोसा मन ये मेरा पूछे ,
जिसको भी दिल से चाह वो मुझसे रूठे ,
मैंने तो जिन्दगी में सबकुछ उनको माना ,
कब हुए पराये ये दिल जान ना पाया ,
जिनके लिए ये जीवन ओ बोलते हैं झूठे ,
किस पे करू भरोसा मन ये मेरा पूछे ,
उनको बसाया दिल में देवी बना के पूजा ,
केसे बताऊ क्या हुआ की उनके संग दूजा ,
हस हस के बात करे ओ जैसे ना देखे हो ,
जलता हुआ देख हसे औरो से पूछे ओ ,
हैं अभी ओ यहा या की दुनिया अब छूटे ,
किस पे करू भरोसा मन ये मेरा पूछे…
Continue
Added by Rash Bihari Ravi on July 15, 2010 at 6:13pm —
1 Comment
सत्य दिखता नही ,
या सच्चाई से परहेज हैं ,
सच्चाई स्वीकारते नहीं ,
इसी बात का खेद हैं ,
सच्चाई न स्वीकारना ,
कितना महंगा पड़ता है ,
आप ही देखिये ,
महाभारत गवाह हैं ,
रामायण ही लीजिये ,
रावण की लंका जली ,
सत्य दिखा तुलसी को ,
तो तुलसी दास बने ,
सत्य दिखा बाल्मीकि को ,
तो उत्तम प्रकाश बने ,
सत्य दिखा अर्जुन को ,
कितनो का कल्याण किये ,
सत्य दिखा सिद्धार्थ को ,
तो गौतम महान बने ,
सत्य दिखा हरिश्चंद्र को…
Continue
Added by Rash Bihari Ravi on July 15, 2010 at 3:00pm —
1 Comment
मैं नदियो पर बाँध बनाकर
और नहरें खोदकर ,
पानी किसानों के खेतों तक पहुचाता हू ॥
मैं सिंचाई विभाग में काम करता हू ॥
किसान कहते है
सर , जब फसलों में बालियां आती है
मेरे चेहरे में खुशियाली आती है ॥
पत्नी कहती है
जब किचन में लौकी काट देते हो
तुम अच्छे और सच्चे लगने लगते हो ॥
जब एक खिलाडी कम होता है
बच्चे कहते है ...
अंकल , बोल्लिंग कर दो न
कर देता हू ...
फिर कहते है ..थैंक अन्कल ॥
मैं…
Continue
Added by baban pandey on July 14, 2010 at 6:37am —
1 Comment
हे ! प्रभु !!
महंगाई की तरह
मेरी कविता को लिफ्ट करो ॥
सब मेरे प्रशंसक बन जाए
ऐसा कुछ गिफ्ट करो ॥
जब भारतीय नेता न माने
जनता -जनार्दन की बात
डंके की चोट पर
वोटिंग मशीन पर हीट करो ॥
मेरी कविता को लिफ्ट करो
जब न पटे , हमारी - तुम्हारी
और काम न बने न्यारी -न्यारी
मत देखो इधर - उधर
दूसरी पार्टी में शिफ्ट करो ॥
मेरी कविता को लिफ्ट करो ॥
जब कानून की जड़े हिल जायें
और न्याय व्यवस्था सिल…
Continue
Added by baban pandey on July 13, 2010 at 10:50pm —
2 Comments
सिंध में हिन्दुओ पर हो रहा है हमला ,
पर हम क्यों बोले ये उनके घर का है मामला ,
मगर मानवता के नाते हमारी सरकार को ,
साथ में हिंद के नहीं बिस्व के मानवा अधिकार को ,
आना चाहिए था इनके तरफ से जुमला ,
सिंध में हिन्दुओ पर हो रहा है हमला ,
हमारे नेता कुछ नहीं बोलेंगे ,
उन्हें भोट का चिंता है ,
ये क्यों पूछे ओ मर गया या जिन्दा है ,
पानी पिने पर इतना बिबाद हो रहा है ,
लाखो लोग हिंद में आने के लिए रो रहा हैं ,
पर ये तो बन रहा है ,
बीजा और पासपोट…
Continue
Added by Rash Bihari Ravi on July 13, 2010 at 6:46pm —
1 Comment
मित्रो , कविता पढना प्रायः दुरूह कार्य है ...यह तब और कठिन हो जाता है ..जब कविता जलेबी हो हो जाती है , मेरा मतलब है , उसका अर्थ केवल ही कवि महोदय ही
explain कर सकते है ...कई मित्रो ने चाटिंग के दौरान मुझे बताया कि आप सरल रूप में लिखते है और कविता का भाव मन में घुस ... जाती है ।, आज अभी इसी के ऊपर एक कविता ....धन्यवाद
मेरी कविता कोई जलेबी नहीं है ॥
रहती है गरीबों के घर
किसानों की सुनती है यह
ये कोई हवेली नहीं है
मेरी कविता कोई जलेबी नहीं है…
Continue
Added by baban pandey on July 13, 2010 at 12:52pm —
3 Comments
जब बंजारा मन
ज़िन्दगी के किसी
अनजान मोड़ पे
पा जाता है
मनचाहा हमसफ़र
चाहता है,कभी न
रुके यह सफ़र
एक एक पल बन जाये
एक युग का और
सफ़र यूं ही चलता रहे
युग युगांतर
Added by rajni chhabra on July 12, 2010 at 10:13pm —
2 Comments
मेरा क्या होगा ,
कभी एक गब्बर हुआ करता था ,
अब गब्बर ही गब्बर हैं ,
कालिया तो एक बार सुना ,
तेरा क्या होगा ,
और हालात देख कर ,
मेरा दिल बार बार सोचता हैं ,
मेरा क्या होगा ,
हर गली में ,
मिल जाते हैं ,
डराने वाले ,
बीरू जय कम ,
ज्यादा समभा ,
कहलाने वाले ,
जिसे हम ठाकुर समझाते हैं ,
अक्सर ओ गब्बर का बाप होता हैं ,
जिस कुनबा को देखना हैं ,
उसी को लुटता हैं ,
बसंती को छोरिये ,
अब धन्नू का इज्जत…
Continue
Added by Rash Bihari Ravi on July 12, 2010 at 3:14pm —
No Comments
हिंद के लिए
भाई मेरे जो सोचते हो ,
खुद के लिए ,
उसका सौआ सोचो ,
हिंद के लिए ,
हिंद के तस्वीर बदल जायेगा ,
भाई मेरे जितना करते हो ,
खुद के लिए ,
उसका सौआ करो ,
हिंद के लिए ,
हिंद के तस्वीर बदल जायेगा ,
Added by Rash Bihari Ravi on July 12, 2010 at 3:02pm —
No Comments
मुझे भी हक है
कुछ भी करूँ.
दूँ सबको दुख-दर्द
या करुँ किसी का कत्ल.
सबको मारूँ,
लाशों की ढेर पर नाचूँ,
देखकर मेरा मृत्युताण्डव,
काँप जाएँ,भाग जाएँ,
मौत का खेल खेलनेवाले दानव.
मुझे भी हक है
दूँ सबको गाली,
हो जाएँ
अपशब्द की पुस्तकें खाली.
ना देखूँ मैं,
माँ,बहन,भाई,
लगूँ मैं कसाई.
देखकर मेरा ऐसा रंग,
मर जाए मानवता,भाईचारा
और प्रेम का तन.
जब मैं ऐसा हो जाऊँगा,
थर्रा जाएँगे,
अपशब्द बोलने… Continue
Added by Prabhakar Pandey on July 12, 2010 at 2:18pm —
4 Comments
जब सत्य की नदी बहती है
तो, झूठ के पत्थर
अपना वजूद खो देते है ॥
जब सत्य की आंधी आती है
तो, झूठ के बांस -बल्लियों से
बने मकान ढह जाते है ॥
जब सत्य के रामचन्द्र आते है
तो झूठ का रावण
भस्म हो जाता है ॥
और जब सत्य से प्यार हो जाता है
तो , हम शबरी की तरह
जूठे बैर भगवान को भोग लगाते है ॥
Added by baban pandey on July 12, 2010 at 7:39am —
2 Comments
**********
" आँगन "
**********
अब कोई चिड़िया नहीं आती मेरे आँगन के दरख़्त पर...
बेटे को गाँव के मेले से एक गुलेल दिलाई थी मैंने...
अब कोई तितली नहीं मंडराती
मेरे आँगन में बने कुए के पास लगे गेंदे के पौधे पर...
बेटे ने कुछ तितलियाँ पकड़ कर अपनी कॉपी में दबा ली थीं..
अब गैया नहीं खड़ी होती मेरे द्वार पर...
भगवान को लगे भोग की रोटी खाने...
बहुएं अब आँगन को गोबर से…
Continue
Added by Dinesh Choubey on July 11, 2010 at 6:58pm —
6 Comments
maa ki mamta......
dosto aaj me aapko ek kahani sunane ja raha hu jo ki ek ma or bete per he .............................. ek lady thi jo vidhwa thi ,, uske ek hi ladka tha .. bechari maa logo ke ghar ke bartan saaf karke apna or apne bete ka pet palti thi ..
uska beta kuch b kaam nahi karta tha.. bas aawara gardi... to janab wakya u he ki... us ladke ko kisi ladki se pyar ho gya...wo din rat usi ke aage piche chaker nikalta rahta ... ek din usne himmat karke ye baat us ladki ko bata…
Continue
Added by advocate mukund vyas on July 11, 2010 at 4:36pm —
1 Comment