For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,996)

पिघला था चाँद

शब-ए-अमावस को चिढ़ाने कल निकला था चाँद

काली चादर ओढ़कर भी कितना उजला था चाँद



खूब कोशिशों पर भी कुछ समेट ना पाया आसमाँ

सुबह होते ही बुलबुले सा फूटकर बिखरा था चाँद



दिखती है दरिया में कैद आज तलक परछाई

उस रोज़ कभी नहाते वक़्त जो फिसला था चाँद



क्या पता रंजिश थी या जमाने का कोई दस्तूर

रोज़ की तरह आज भी सूरज निगला था चाँद



दोनों जले थे रात भर अलाव भी और चाँद भी

तेरे लम्स के पश्मीने में भी… Continue

Added by विवेक मिश्र on November 9, 2010 at 12:23pm — 4 Comments

तुम दीप जला-के तो देखो... डॉ नूतन गैरोला

तुम दीप जला-के तो देखो... डॉ नूतन गैरोला







हमने अँधेरा देखा है



एक अहसास बुराई का



ये दोष अँधेरे का नहीं



ये दोष हमारा है





हमने क्यों मन के कोने में



इक आग सुलगाई अँधेरे की



खुद का नाम नहीं लिया हमने



बदनाम किया अँधेरे को.......





एक पक्ष अँधेरे का है गुणी



कुछ गुणगान उसका तुम करो



अँधेरा है तो दीया भी… Continue

Added by Dr Nutan on November 8, 2010 at 7:34pm — 4 Comments

बाल कविता: अंशू-मिंशू संजीव 'सलिल'

बाल कविता:



अंशू-मिंशू



संजीव 'सलिल'

*

अंशू-मिंशू दो भाई हिल-मिल रहते थे हरदम साथ.

साथ खेलते साथ कूदते दोनों लिये हाथ में हाथ..



अंशू तो सीधा-सादा था, मिंशू था बातूनी.

ख्वाब देखता तारों के, बातें थीं अफलातूनी..



एक सुबह दोनों ने सोचा: 'आज करेंगे सैर'.

जंगल की हरियाली देखें, नहा, नदी में तैर..



अगर बड़ों को बता दिया तो हमें न जाने देंगे,

बहला-फुसला, डांट-डपट कर नहीं घूमने देंगे..



छिपकर दोनों भाई चल दिये हवा… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 8, 2010 at 6:14pm — 5 Comments

तलब तेरी ,इश्क तेरा ,मुहब्बत का असर तेरा .



तलब तेरी ,इश्क तेरा ,मुहब्बत का असर तेरा .



हुई मुद्दत कहा तू ने ,है सब कुछ ये सनम तेरा .



हवा तेरी महक लाये ,फिजा तेरा पता लाये ;



धनक तेरी ,उफक तेराललक तेरी अहम तेरा .



जिस्म तेरा ,अमानत है किसी का, तो रहे होकर;



सुमन तेरा ,महक तेरी , मगर ,तेरा चमन मेरा .



हमारी आस को विश्वास है तेरी मुहब्बत का ;



रहे बन के सनम मेरे ,रहूँ में ही बलम तेरा .



सुरीली तुम ही सरगम हो… Continue

Added by DEEP ZIRVI on November 8, 2010 at 5:00pm — 1 Comment

खाब की ताबीर होने से रही

खाब की ताबीर होने से रही
ऐसी भी तकदीर होने से रही


पहले सी झुकती नहीं तेरी नज़र
अब कमां ये तीर होने से रही

चाहे जितने रंग भर लो खाब के
पानी मे तस्वीर होने से रही

कर लो पैनी ' फ़िक्र' जितनी तुम कलम
जौक, ग़ालिब, मीर, होने से रही 

Added by vikas rana janumanu 'fikr' on November 8, 2010 at 10:25am — 3 Comments

तुम्हारे ये दो आँसू ::: ©



तुम्हारे ये दो आँसू ::: ©



कुछ घाव हरे कर गए है..

तुम्हारे ये दो आँसू मेरी..

संवेदना को गहरा कर गए हैं..

किसी पुराने जख्म का रिसना..

और भर-भर कर उसका..

रिसते चले जाना..

नियति बन गया है अब..



तुम्हारे मन की पीड़ा..

आँसू की पहली बूँद से..

उजागर हो रही है..

एक ह्रदय से दूसरे तक..

क्यों इस पीड़ा का गमन..

हो रहा है निरंतर..



सतत अविरल बहते आँसू..

मेरे… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on November 8, 2010 at 12:38am — No Comments

हौसला

दीपक की देखी बाती

तेल में डूबी निज तन जलाती

महा तमस में अकेले ही

उजियारा फैलाती

सबका हौसला बढाती

देखी दीपक की बाती...

एक सैनिक

जो युद्ध-भूमि में पड़ा है

मातृभूमि के लिए

आखिरी साँस तक लड़ा है

उसके सीने में देशभक्त का

गौरव जड़ा है ....



हम युद्ध जीतेंगे हर बार

दुश्मन से भी और

बुराइयों से भी...

ऐ मेरे रहबर !

समझौते की मेज़ पर

अपना मनोबल न गिराना

खुद के आत्म सम्मान के लिए

देश को दांव पर न… Continue

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on November 7, 2010 at 11:00pm — No Comments

राजनीति की निराली कहानी

अभी हाल ही में मुझसे एक पुराने जान-पहचान का अरसे बाद मिला। बरसों पहले जब मैं उससे मिला करता था तो उसके पास खाने के लाले पड़े थे। वह कुछ एक आपराधिक कार्यों में भी लिप्त था। कई बार जेेेल की हवा भी खा चुका था। कल तक जो पूरे मोहल्ले को फूटी आंख नहीं सुहाता था, आज वही लोगों की आंख का तारा बना हुआ है। जब वह मुझे मिला तो मैंने उससे कुषलक्षेम पूछा। उसने बताया कि वह इन दिनों राजनीति में खूब कमाल दिखा रहा है। मैंने कहा कि ऐसा कर लिया, जो बिना किसी योग्यता के, नाम भी कमा लिया और पोटली भी भर ली, वह भी ऐसे,… Continue

Added by rajkumar sahu on November 7, 2010 at 2:49pm — No Comments

विकास पथ पर छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़, देश का 26 वां राज्य है और यह प्रदेश 1 नवंबर सन् 2000 में अस्तित्व में आया। मध्यप्रदेश से अलग होने के बाद बहुमत के आधार पर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को सत्ता मिली और राज्य के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी बने। 2003 में जब छग में पहला विधानसभा चुनाव हुए तो भाजपा, सत्ता में आई तथा डा. रमन सिंह मुख्यमंत्री बने। इसके बाद दोबारा विधानसभा चुनाव 2008 में हुए, इस दौरान भाजपा फिर सत्ता में काबिज हो गई। इस तरह डा. रमन सिंह दोबारा मुख्यमंत्री बने।

अभी हाल ही में 1 नवंबर, 2010 को छत्तीसगढ़ ने 10 बरस… Continue

Added by rajkumar sahu on November 7, 2010 at 2:15pm — No Comments

गहन तमसा में खिली एक ज्योत्सना है

मधु गीति सं. १५०२ दि. ४ नवम्बर, २०१०



गहन तमसा में खिली एक ज्योत्सना है, ज्योति की वह क्षीण रेखा उन्मना है;

नहीं अपना नजर उसको कोई आता, जोड़ पाती ना प्रकाशों से है वो नाता.



प्रकाशों की नाभि से वह निकल आयी, स्रोत के उस केंद्र से ना जुड़ है पायी;

खोजती रहती वही निज स्रोत सत्ता, दीप लौ बन खोजती है बृहत सत्ता.

अंधेरों से भिड़ प्रकाशों को संजोये, वाती जब तब स्वयं भी है झुलस जाए;

घृत प्रचुर दीपक की वाती जब न पाये, उर दिये का भी कभी वाती… Continue

Added by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on November 7, 2010 at 1:05pm — 3 Comments

आयी है दीवाली

मधु गीति सं. १५०१ दि. ४ नवम्बर २०१०

आयी है दीवाली, घर घर में खुशहाली;
नाचें दे सब ताली, विघ्न हरें वन माली

जागा है मानव मन, साजा है शोधित तन;
सौन्दर्यित भाव भुवन, श्रद्धा से खिलत सुमन.
मम उर कितने दीपक, मम सुर खिलते सरगम;
नयनों में जो ज्योति, प्रभु से ही वह आती.

हर रश्मि रम मम उर, दीप्तित करती चेतन;
हर प्राणी ज्योतित कर, देता मम ज्योति सुर.
सब जग के उर दीपक, ज्योतित करते मम मन;
हर मन की दीवाली, मम मन की दीवाली.

Added by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on November 7, 2010 at 1:02pm — 1 Comment

दिया प्रभु ने जलाया था

मधु गीति सं. १५०३ दि. ४ नवम्बर, २०१०





दिया प्रभु ने जलाया था, सृष्टि अपनी जब कभी भी;

आत्मा को तरंगित कर, उठाया था निज हृदय ही.



निराकारी भाव निर्गुण, बदलना वे जभी चाहे;

जला दीपक आत्मा में, सगुण का संकल्प लाये.

हुई सृष्टि प्रकृति की तब, तीन गुण अस्तित्व पाये;

संचरित हो बृाह्मी मन, पञ्च तत्व विकास पाये.



धरा के विक्षुब्ध मन में, बृाह्मी मन किया दीपन;

वनस्पति जन जन्तु हर मन, बृह्म ही तो किये चेतन.

वे जलाते दीप आत्मा, नित्य… Continue

Added by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on November 7, 2010 at 12:59pm — 1 Comment

खयाल जिंदा रहे तेरा ::: ©

खयाल जिंदा रहे तेरा..

जिंदगी के पिघलने तक..

और मैं रहूँ आगोश में तेरे..

बन महकती साँसें तेरी..



तुझे पिघलाते हुए अब..

पिघल जाना मुकद्दर है..

बह गया देखो तरल बनकर..

अनजान अनदेखे नये..

ख्वाहिशों के सफर पर..



तुझे छोड़कर तुझे ढूँढने..

खामोश पथ का राही बन..

बेसाख्ता ही दूर तक..

निकल आया हूँ मैं..



सुनसान वीराने में तुझे पाना..

तेरी वीणा के तारों को..

नए सिरे से झंकृत..

कर पाना मुमकिन नहीं..

तुझसे दूर,… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on November 7, 2010 at 12:00am — 3 Comments

उस बापू की जरुरत हैं ,

उस बापू की जरुरत हैं ,
आज हिंदुस्तान की चाह हैं ,
हमारी सोच को आंदोलित कर ,
नई राह दिखने के लिए ,
उस बापू की जरुरत हैं ,
उस बाबु की नहीं ,
जो स्वघोषित हो ,
उस बापू का भी नहीं ,
जो चमचो द्वारा बिकसित हो ,
जो मन पे राज करे ,
उस बाबु की जरुरत हैं ,

Added by Rash Bihari Ravi on November 6, 2010 at 6:30pm — No Comments

पहुंचे हुए बड़े खिलाड़ी

आज का दौर बड़ा कठिन हो गया है। जब भी कोई भ्रष्टाचार करना हो या फिर कोई अपराध करना हो तो पहुंचे हुए होना बहुत जरूरी है। ऐसा काम कोई विशेष व्यक्ति ही कर सकता है, ऐसे महत्वपूर्ण काम करने की हम जैसे कायरों की हिम्मत कहां। बीते कुछ समय से पहुंच की महिमा बढ़ गई है, तभी तो जब भी किसी बड़े पदों पर किसी को काबिज होना होता है तो वहां उसकी योग्यता कम काम आती है, बल्कि पहुंच का पूरा जलवा होता है। पहुंच वाले का भला कोई बाल-बांका कैसे कर सकता है। हम तो अदने से और तुच्छ प्राणी हैं, जो पहुंच जैसी बात सोचकर खुश हो… Continue

Added by rajkumar sahu on November 6, 2010 at 3:08pm — No Comments

नवगीत: --- संजीव 'सलिल'

नव गीत



संजीव 'सलिल'



मौन देखकर

यह मत समझो,

मुंह में नहीं जुबान...



शांति-शिष्ट,

चिर नवीनता,

जीवन की पहचान.

शांत सतह के

नीचे हलचल

मचल रहे अरमान.

श्याम-श्वेत लख,

यह मत समझो

रंगों से अनजान...



ऊपर-नीचे

हैं हम लेकिन

ऊँच-नीच से दूर.

दूर गगन पर

नजर गड़ाये

आशा से भरपूर.

मुस्कानों से

कर न सकोगे

पीड़ा का अनुमान...



ले-दे बढ़ते,

ऊपर चढ़ते,

पा लेते हैं… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 4, 2010 at 8:38pm — 2 Comments

विश्वास

विश्वास
ढके शब्दों में नंगे हमाम पर लिखेंगे ,
समय थम कर पढ़ेगा इतना प्राणवान लिखेंगे,
हमने जब ठाना तो तस्वीर का रुख बदलकर माना,
हम सोच का एक स्रोत है, जब भी निकले अपनी जगह बना के माना
कुछ इतना खास कर गुजरेंगे ,
जब सचे-सच्चे अहसास शब्दों में ढालेंगे ,
हम वो जड़ है, जब चाहा तभी जड़ हुए ,जब चाहा जड़ कर दिया
बंद शब्दों में खुले आसमान पर लिखेंगे.
अलका तिवारी

Added by alka tiwari on November 4, 2010 at 2:01pm — 5 Comments

बोधकथा ''भाव ही भगवान है'' ---संजीव 'सलिल'

बोधकथा



''भाव ही भगवान है''.



संजीव 'सलिल'



*

एक वृद्ध के मन में अंतिम समय में नर्मदा-स्नान की चाह हुई. लोगों ने बता दिया की नर्मदा जी अमुक दिशा में कोसों दूर बहती हैं, तुम नहीं जा पाओगी. वृद्धा न मानी... भगवान् का नाम लेकर चल पड़ी...कई दिनों के बाद उसे एक नदी... उसने 'नरमदा तो ऐसी मिलीं रे जैसे मिल गै मतारे औ' बाप रे' गाते हुए परम संतोष से डुबकी लगाई. कुछ दिन बाद साधुओं का एक दल आया... शिष्यों ने वृद्धा की खिल्ली उड़ाते हुए बताया कि यह तो नाला है. नर्मदा जी तो… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 4, 2010 at 8:29am — 2 Comments

बाल्टी भर पसीने की अमर कहानी

बढ़ते तापमान और दिनों-दिन घटते जल स्तर से भले ही सरकार चिंतित न हो, मगर मुझ जैसे गरीब को जरूर चिंता में डाल दिया है। सरकार के बड़े-बड़े नुमाइंदें के लिए मिनरल वाटर है और कमरों में ठंडकता के लिए एयरकंडीषनर की सुविधा। ऐसे में उन जैसों के माथे पर पसीने की बूंद की क्या जरूरत है, इसके लिए गरीबों को कोटा जो मिला हुआ है। पसीने बहाने की जवाबदारी गरीबों के पास है, क्योंकि यही तो हैं, जिनके पास ऐसे संसाधन नहीं होते या फिर उन जैसे नुमाइंदों को फिक्र नहीं होती कि खुद की तरह तो नहीं, पर इतना जरूर सुविधा दे दे,… Continue

Added by rajkumar sahu on November 3, 2010 at 8:21pm — 1 Comment

दस्तक

मेरे दरवाजे पे दस्तक हुई,

मैंने अन्दर से ही पूछा,

आप कौन हो,

उत्तर मिला,

सुख समृद्धि,

झट से दरवाजा खोला,

अन्दर आइये उनसे बोला,

उनका जबाब था,

मैं हमेशा से उनके साथ रहता हूँ,

जो प्यार से मिल कर रहते हैं,

जहा भी मेल मिलाप रहेगा,

वहाँ मैं दस्तक देता रहूँगा,



एक दिन घर में हो गया,

अपनों में झगड़ा,

बिना मतलब का,

बाते बढ़ी,

कोई भी किसी काम में,

विचार लेना देना छोड़ दिया,

घर को विपत्ति के रूप में,

कलह जकड़… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on November 3, 2010 at 12:30pm — 3 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

रामबली गुप्ता posted a blog post

कुंडलिया छंद

सामाजिक संदर्भ हों, कुछ हों लोकाचार। लेखन को इनके बिना, मिले नहीं आधार।। मिले नहीं आधार, सत्य के…See More
3 hours ago
Yatharth Vishnu updated their profile
16 hours ago
Sushil Sarna commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"वाह आदरणीय जी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल बनी है ।दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर ।"
Friday
Mamta gupta commented on Mamta gupta's blog post ग़ज़ल
"जी सर आपकी बेहतरीन इस्लाह के लिए शुक्रिया 🙏 🌺  सुधार की कोशिश करती हूँ "
Thursday
Samar kabeer commented on Mamta gupta's blog post ग़ज़ल
"मुहतरमा ममता गुप्ता जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें । 'जज़्बात के शोलों को…"
Wednesday
Samar kabeer commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें । मतले के सानी में…"
Wednesday
रामबली गुप्ता commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आहा क्या कहने। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल हुई है आदरणीय। हार्दिक बधाई स्वीकारें।"
Nov 4
Samar kabeer commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब, बहुत समय बाद आपकी ग़ज़ल ओबीओ पर पढ़ने को मिली, बहुत च्छी ग़ज़ल कही आपने, इस…"
Nov 2
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहा (ग़ज़ल)

बह्र: 1212 1122 1212 22किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहातमाम उम्र मैं तन्हा इसी सफ़र में…See More
Nov 1
सालिक गणवीर posted a blog post

ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...

२१२२-१२१२-२२/११२ और कितना बता दे टालूँ मैं क्यों न तुमको गले लगा लूँ मैं (१)छोड़ते ही नहीं ये ग़म…See More
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"चल मुसाफ़िर तोहफ़ों की ओर (लघुकथा) : इंसानों की आधुनिक दुनिया से डरी हुई प्रकृति की दुनिया के शासक…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"सादर नमस्कार। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया सकारात्मक विचारोत्तेजक और प्रेरक रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Oct 31

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service