For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,932)


मुख्य प्रबंधक
साधु बन बोले राम राम

जिन्दगी आधी बीत गई,

कभी न किया धर्म का काम,

पूलिस पिछे जब पड़ी तो,

साधु बन बोले राम राम,



लूट मार, चोरी डकैती,

किये बहुत कुकर्म मे नाम,

सभी पाप छिप गया,

जनता पूजे अब सुबह शाम,



जनता पूजे सुबह शाम,

अब मजा ही मजा है,

पहले पुलिस से छुप के,

करना पड़ता था गन्दा काम,

अब नेता पुलिस करते रखवाली,

खुब है ऐशोआराम,



खुब है ऐशोआराम,

आप भी बाबा के बन…

Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 11, 2010 at 7:00am — 1 Comment

का पूछातानी सम्राट जी ?

लोटे बिन चलता नहीं किसका जग में काम!

जिस पशु को माता कहे उसका क्या है नाम !!

उसका क्या ही नाम क्योन पशु मिमियाता है !

भुन्का करता क्योन,क्योन पच्छी गाता है !!

पूछे सम्राट जी ,मिले क्या सिक्के खोटे!

क्या पानी या ढूध,भरा करते है लोटे !!









सोते जागते जिव सब ,क्या लेते है चीज !

धोकर क्या तुम पहनते ,चड्ढी ,पैंट कमीज !!

चड्ढी पैंट कमीज ,साफ क्या पहनो टाई!

मलिन कपडे जब धरो ,मीत क्या करे खिचाई !

पूछे सम्राट जी ,बिना कारन क्या रोते… Continue

Added by santosh samrat on March 10, 2010 at 10:24am — 5 Comments


मुख्य प्रबंधक
मेरी नादानी

मेरी पहली कविता जो मैने १९९६ मे लिखी थी  .....





भूली मुहब्बत की दास्तान हो तुम ,
जहाँ सूरज चाँद सितारे न हो…
Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 9, 2010 at 9:00am — 1 Comment

जिन्दगी ,By Guru Jee

जिन्दगी ,
इस उम्र की इस पराव पर ,
मुझे अब लगाने लगा हैं ,
जिन्दगी एक खुबसूरत ख्वाब हैं ,
और मैं इस ख्वाब को ,
खूबसूरती से जीना चाहता हूँ ,
जिन्दगी ,
इसी का नाम हैं ,
जो जीने के लिए ,
उत्साहित करे ,
औरो के लिए ,
कुछ करने की तमन्ना हो ,
जिन्दगी ,
दोस्तों की दोस्ती ,
अपनो की अपनापन ,
दुस्मानो से सिख ,
गैरो से मुहबत ,
समझ जिन्दगी की ,
इस उम्र की इस पराव पर ,

Added by Rash Bihari Ravi on March 8, 2010 at 7:46pm — 3 Comments

अग्नि परीक्षा ( हरिवंशराय बच्चन )

यह मानव की अग्नि-परीक्षा।



बढ़ती हैं लपटें भयकारी

अगणित अग्नि-सर्प-सी बन-बन,

गरुड़ व्यूह से धँसकर इनमें

इनका कर स्वीकार निमंत्रण;

देख व्यर्थ मत जाने पाये विगत युगों की शीक्षा-दीक्षा।

यह मानव की अग्नि-परीक्षा।



सच है, राख बहुत कुछ होगा

जिस पर मोहित है तेरा मन,

किंतु बचेगा जो कुछ, होगा

सत्य और शिव, सुंदर कंचन;

किंतु अभी तो लड़ ज्वाला से, व्यर्थ अभी अज्ञात-समीक्षा।

यह मानव की अग्नि-परीक्षा।



खड़े स्वर्ग में बुद्ध,… Continue

Added by Admin on March 7, 2010 at 9:29pm — 2 Comments

दूर का सितारा (निदा फाज़ली )

कवि - निदा फाज़ली

Added by Admin on February 24, 2010 at 10:20am — 3 Comments

कही तुम (श्री बालश्वरुप राही)

कवि - श्री बालश्वरुप राही

Added by Admin on February 24, 2010 at 10:14am — 4 Comments

एक बरस बीत गया ( अटल बिहरी बाजपेयी )

कवि - श्री अटल बिहारी बाजपेयी

Added by Admin on February 24, 2010 at 10:05am — 3 Comments

बहाने पर ज़माना चल रहा है-ग़ज़ल

1222 1222 122

बहाना ही बहाना चल रहा है
बहाने पर ज़माना चल रहा है

बदलना रंग है फ़ितरत जहाँ की
अटल सच पर दिवाना चल रहा है

नही गम में हँसा जाता है फिर भी
अबस इक मुस्कुराना चल रहा है

निव%

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 30, 1999 at 12:00pm — No Comments

सवालों का पंछी सताता बहुत है-गीत

मुझे रात भर ये भगाता बहुत है

सवालों का पंछी सताता बहुत है



कभी भूख से बिलबिलाता ये आये

कभी आँख पानी भरी ले के आये



कभी खूँ से लथपथ लुटी आबरू बन

तो आये कभी मेनका खूबरू बन



धड़कन को मेरी थकाता बहुत है

सवालों का पंछी सताता बहुत है।।1।।



कभी युद्ध की खुद वकालत करे ये

अचानक शहीदों की बेवा बने ये



कभी गर्भ अनचाहा कचरे में बनकर

मिले है कभी भ्रूण कन्या का बनकर



निगाहों को मेरी रुलाता बहुत है

सवालों का पंछी… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 30, 1999 at 12:00pm — No Comments

उदार नीति / लघुकथा

उसे देख कर सबकी धड़कनें बेकाबू हो रही थी क्योंकि वह बेहद खूबसूरत थी।लोग टकटकी लगाये दिल थाम रहे थे। वह धीरे -धीरे आगे की ओर बढ़ती हुई करीब पहुँचने वाली थी।

इधर डरे हुए लोग सतर्क हो मन को मजबूती से थामे संतुष्ट होने के भाव से उसको आते हुए देखते रहे।

उसके आने की जानकारी सबको थी क्योंकि देश के कर्णधारों के कंधे पर बैठकर खिलखिलाती हुई जो आई थी! लेकिन यहाँ किसी ने उसका स्वागत नहीं किया।

ढीठ थी, सो ढिठाई दिखा रही थी।

गद्दी पर बैठा सेठ उसको देखकर मुस्कुरा दिया और अपने काम में पुनः… Continue

Added by kanta roy on November 30, 1999 at 12:00pm — No Comments

नई सुबह

नई सुबह का इन्तिज़ार

मुझे भी है.....

काले पीले पत्ते पेड़ों पर

सूखगए हैं, किसी नमी

आँखों में पानी नहीं है

हो गयी हैं निष्ठुर पीतल सी !

नई सुबह क्या बेहतर होगी

प्रश्न खड़ा है, मेरे सम्मुख

नये साल का मैं लिखूँ क्या

आमुख.......?

हर दिन एक नया दिन होता है

कल से आज सदा बेहतर होता है

निर्विवाद यह उक्ति अब तो

शरमाई सी अलग खड़ी है......!

नई सुबह का इन्तिज़ार भी

करना बेमानी है, यारो !

परिवेश जब इतना अंधकार मय है

पौ…

Continue

Added by Chetan Prakash on January 1, 1970 at 12:00am — 1 Comment

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल -- दिनेश कुमार ( दस्तार ही जो सर पे सलामत नहीं रही )
"आदरणीय दिनेश कुमार जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। इस शेर पर…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई। गौरैया के झुंड का, सुंदर सा संसार…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post यह धर्म युद्ध है
"आदरणीय अमन सिन्हा जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"वाह वाह वाह... क्या ही खूब शृंगार का रसास्वाद कराया है। बहुत बढ़िया दोहे हुए है। आखिरी दोहे ने तो…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Ashok Kumar Raktale's blog post कैसे खैर मनाएँ
"आदरणीय अशोक रक्ताले जी, बहुत शानदार गीत हुआ है। तल्ला और कल्ला ने मुग्ध कर दिया। जो पेड़ों को काटे…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"आपकी ज़िंदगी ओबीओ  मेरी भी आशिकी ओबीओ  इस समर में फले कुछ समर ऐ समर ये खुशी…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं। सादर।"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम. . . . रोटी
"आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति। हार्दिक बधाई। आख़री दोहे में  गोल गोल ये रोटियां,…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय सुशील सरना जी, मयखाने से बढ़िया दोहे लेकर आए हैं। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर।"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि
"आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया दोहा छंद की प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। इस दोहे…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"वक्त / समय बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ ।। आदरणीय सुशील सरना…"
2 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service