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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-41 (विषय: आस्था)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-41 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है, प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-41
"विषय: "आस्था" 
अवधि : 30-08-2018  से 31-08-2018 
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अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक हिंदी लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।बेहतरीन लघुकथा।

आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय तेजवीर जी।

सहवास

दो हफ़्ते से ज्यादा हो गये हैं  उन्हें आय.सी.यू. में भर्ति हुए. बुढापा, डयबिटिज, ब्लडप्रेशर सबने एक साथ जोर मार दिया हैं.वेंटिलेटर सारे शरीर में नलियाँ ही नलियाँ .दस मिनट बैठने देती है सिस्टर.  मैं  भी तो बुढा गई हूँ . थक जाती हूँ काम  करते-करते , पचास साल का साथ हैं उनका अकेले कैसे छोड दू. आज  बेटा-बेटी भी आ गये है सहारे के लिए. उनकी भी भाग-दौड चल रही हैं, ये एक्सपर्ट वो एकस्पर्ट. अकेलेपन की कल्पना से मैं भी भयभित हो जाती हूँ कभी-कभी. कई दिन से ठीक से खा नहीं पा रही. वे भी ये  जानते हैं मैं उनके बगैर कभी अकेले कुछ नहीं खाती. हमेशा नाराज होते रहते

" राधा! तुम सुनती क्यों नहीं हो मेरा काम ही ऐसा हैं देर-सबेर हो ही जाती हैं तुम वक्त पर खा लिया करो.  वर्ना बाद में बिमारीया  घेर लेंगी तुम्हें." पर मैं जानती थी मैंने खा लिया तो वे खुद के साथ बेपरवाह हो जाएँगे......" फिर साथ ही खाना हमारे जीवन का हिस्सा बन गया था.

मैं अपने विचारों में मग्न . बेटा-बेटी और डा. साहब कब आकर मेरे समीप खडे हो गये. पता ही नहीं चला. वे तीनों अंग्रेजी में आपस में कुछ बातें कर रहे थे पर मेरा ध्यान नहीं था. बस अब वेंटिलेटर हटा देते हैं जैसे शब्द जरुर मेरे कानों तक पहूँच गये थें . 
" माताजी ! अब आप घर जाईए पिछले कई दिनों से आप यहाँ है. बच्चें हैं अब यहाँ पर. आप थोडा आराम किजिए और लौकी का सूप बनाकर भेजिए पेशेंट के लिए." डा. साहब कहते हुए बाहर निकल गये
" चलो माँ ! चलते हैं.....भैया है यहाँ पर." शिनू मेरा हाथ पकडकर उठाते हुए बोली.
मैं अनमने मन से उठकर चल दी पर मेरा मन वहीं छूट गया. घर आकर नहाया, खाना खाया थोडा और सूप बनाकर बेटी से जिद करने लगी अब चलो भी फिर से अस्पताल तुम्हारे पापा इतने सालो में कभी... दो घंटा गुजर गया हैं हमें घर आए.
" मम्मा! आप थोडा आराम कर लेती तो... मैं ड्रायवर के साथ सूप....." शिनू ने कहा
" तो तु रहने दे. तू आराम कर. मैं अपने से निकल जाऊँगी." मैनें उससे कहा और बाहर निकलने लगी तभी
" मम्मा! मम्मा! रुको तो. भैया का फोन....." मगर मैं कहा सुनने वाली . 
"तुमने मुझे जबरन खिला दिया.पापा वहा भूखे बैठे हैं"  थर्मस उठाकर मैं बाहर निकलने को हुई
गेट पर पडौसी शर्मा जी और... को देखते ही धडकन बढ गई. 
"शिनू! शिनू! मैं ना कहती थी वो मेरे बिना ....नहीं---नहीं ...." 
शानू-शिनू ने मेरी दोनो बाहें थाम रखी थी.

मौलिक व अप्रकाशित

आपसी प्रेम भी तो आस्था का ही एक रूप हैI बहुत अच्छी लघुकथा हुई है नयना ताई, बधाई प्रेषित  हैI  पंक्चुएशन/भाषा-वर्तनी/हिज्जे की त्रुटियाँ पोस्ट करने से पहले अवश्य देख लिया करें I क्योंकि रचना चांगली लगणी पाहिजे न?

 नमस्कार सर. पता नहीं क्यो जब मैं अतिव्यस्त होती हूँ तभी मुझे कथा सुझती हैं आप तो जानते आज का अंतिम दिन हैं रिटर्न फाइलिंग का और अचानक ये कथानक सुझा. ये सोचकर पोस्ट कर दी कि वर्तनी सुधार मैं संकलन में कर लूँगी. अगली बार के लिए ध्यान रखूँगी. आपने रचना पसंद की इस हेतु आभार. सभी की रचनाएँ भी अब कल पढूँगी. इस बार क्षमा.

कोणत्याही परिस्थितीला या वेळी दिला जाणार नाही, अन्यथा आपण तात्पुरते व्हाल ताई.

भीतर तक छिन्न-छिन्न कर देती एक एक पंक्ति, एक एक संवाद।

आपसी प्रेम और समर्पण में आस्था का उदाहरण देती लघुकथा। बहुत अच्छी लगी।

आपसी प्रेम के कथ्य को जिस प्रभावी ढंग से आपने प्रस्तुत किया आदरणीया नयना जी। वह सहज ही प्रभावी और पदत्त विषय को सार्थक करने में सक्षम है, और कुछ त्रुटियों के कारण अवश्य भाव असहज होते है। बरहाल अनुज की ओर से बधाई स्वीकारें आदरणीया नयना जी। 

आदरणीया नयना आरती जी आदाब,

                                   प्रेम को बेहतरीन कथ्य बनकर लिखी गई सशक्त लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

हार्दिक बधाई आदरणीय नयना जी।मार्मिक प्रस्तुति।

बढ़िया उम्दा भावपूर्ण रचना। हार्दिक बधाई आदरणीया नयना(आरती) कानिटकर जी।

प्रदत्त विषय को प्रेम के संदर्भ में अभिव्यक्त कर बढ़िया लघुकथा कही है आपने आदरणीया नयना जी। मेरी तरफ़ से भी हार्दिक बधाई प्रेषित है। सादर।

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